may14

मंगलवार, 28 मई 2013

beti hai anmol in hindi...



                            बिटिया की सीख......


पिछली गर्मियों की बात है ,गर्मी अपने पूरे शबाब पर थी ! सूरज अपनी धधकती आग से सारे वातावरण को जलाये  जा रहा था ! तापमान 45 *c से भी ज्यादा हो रहा था !  ऐसे में एक दिन मैं भरी गर्मी में अपनी duty से घर आया ,पसीने में लथपथ ,गर्मी से बेहाल !  घर आते ही पंखा चला कर पसीना सुखाने लगा !  तभी मेरी साढ़े तीन साल की बेटी मेरे पास आई , बोली --पापा,आपको बोहत पसीना आ रहा है , मैं आपकी हवा कर देती हूँ !  मैंने कहा --बेटा  पंखा चल रहा है, पसीना अभी सूख जाएगा !   बिटिया बोली --नहीं पापा मैं कर देती हूँ ना ! वो मेरे पास आई और अपने छोटे से मुंह  से मेरे मुंह पर फूँक से हवा करने लगी ,और अपनी छोटी छोटी हथेलियों से मेरे माथे का पसीना पोछने लगी !
सच मानिए ,उसके छोटे से मुँह से दी गई वो हवा AC की हवा से कहीं ज्यादा ठंडी और तृप्तिदायक थी ,उस हवा की ठंडक मेरी आत्मा  तक पहुंची ! बेटी ने सहज ही अपनी बालसुलभ निस्वार्थ अपनेपन से मुझे दो बातों का अहसास करा दिया !

पहला ये की हम लोग भी अपने बड़ो का ,माता-पिता ,दादा-दादी आदि का ध्यान तो रखते हैं, उनके घर आते ही उन्हें पानी पेश करते हैं ,चाय बनाते हैं ,लेकिन ये सब यंत्रवत करते हैं ! हमारी इस क्रिया में जिम्मेदारी का अहसास दिखता है लेकिन वो जो प्यार ,अपनेपन  और आपसी संवाद का भाव है ,उसे express नहीं करते ,अपनेपन को उजागर नहीं करते !  है ना ?

दूसरा ये की   जननी तो जननी ही होती है ! प्रकृति ने नारी को बनाया ही ऐसा है ,उसका निर्माण ही कुछ ऐसे तत्वों से किया है जो उसमे समवाय सम्बन्ध से सदा ही विद्यमान रहते हैं ,  जैसे अपनापन ,वात्सल्य , दूसरों का ध्यान रखना , दुसरे की पीड़ा को महसूस करना !  और आज की छोटी सी बिटिया में भी भविष्य की माँ होने का jean छुपा है !    लड़कों में भी कई गुण होते हैं  लेकिन जो ध्यान रखने का ,पालने का भाव ,सहकार और ममत्व का भाव स्त्री में जन्मजात होता है वो पुरुष में उतना नहीं होता !

और आज के वर्तमान समय में माता-पिता का जितना ध्यान बेटियाँ रखती हैं ,उतना बेटे नहीं रख पाते ,  हकीकत है !

बेटियां वो अनमोल हीरा हैं ,जिन्हें कांच के चमकते हुए टुकड़े के लिए उपेक्षित कर दिया जाता है !

आपकी माँ भी एक बेटी ही है ,और आपकी पत्नी भी किसी की बेटी ही है ! और तो और आप भविष्य में अपने लाडले ,कुलदीपक के लिए जो बहू लायेंगे वो भी किसी की बेटी ही होगी !

दोस्तों, आपने चाक देखा है या बैलगाड़ी का पहिया ? ये दोनों एक कील (धूरी ) पर घूमते हैं ,देखने में पूरा पहिया घूमता दिखता है  सिवाय कील के ! लेकिन उस कील उस धूरी के बिना उस पूरे समग्र पहिये का कोई अस्तित्व ही नहीं है !

दोस्तों, स्त्री,माँ ,बेटी भी वही धूरी है और बाकी का समग्र पहिया है सारा  समाज , सारा संसार !
बिना धूरी के हम पहिये के चलने की कल्पना नहीं कर सकते ,उसी तरह बिना स्त्री ,जननी के हम समाज और परिवार की भी कल्पना  नही कर सकते ,है ना ?

अंत में यही कहूँगा ---बेटियाँ अनमोल हैं ,उनकी कद्र कीजिये !


डॉ नीरज .....


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मंगलवार, 21 मई 2013

article on misconstruction in hindi




समझ का फेर ........


दोस्तों,
 ऐसा कई बार होता है कि आप किसी व्यक्ति से कोई बात कहते हैं , और आप सोचते हैं की मैंने उससे कह दिया है और उसने मेरी बात सुनकर समझ भी  ली है ,ऐसा आपको लगता है ,है ना ?

आप एक boss के रूप में अपने employee को कोई task देते हैं ,समझाते हैं ,और फिर उससे वही result पाने की उम्मीद करते हैं जो आप चाहते हैं ,लेकिन कई बार ऐसा नहीं हो पाता !  आप उनसे चाहते कुछ हैं और वो करते कुछ हैं !  यही बात हम पारिवारिक संबंधों में भी देखते हैं ! माता -पिता बच्चे को समझाते कुछ हैं ,वो समझता कुछ है !  पति पत्नी से कुछ बात किसी और अर्थ में कहता है और पत्नी उसका कोई दूसरा ही अर्थ निकाल लेती है ! (पत्नियाँ नाराज ना हों ,ऐसा ही पतियों के साथ भी है  )

कहने का तात्पर्य   जरुरी नहीं की आप सामने वाले को जो समझा रहे हैं वो उसे ठीक वैसे ही समझे जैसा आप चाह रहे हैं ! सामने वाला इंसान तो अपनी समझ के हिसाब से ही उसे समझेगा !
आप किसी को टयूब -लाइट की दूधिया (सफ़ेद) रौशनी बताना चाहते हैं लेकिन उसने अगर हरा या नीले रंग का चश्मा पहना है तो उसे रौशनी हरी या नीली ही दिखेगी ,आप चाहे फिर कुछ भी कर लीजिये वो तो  वो ही देखेगा और समझेगा जो उसे समझना है !

जब भी किसी को कई जरुरी task दें तो आप cross examine कर यह तसल्ली कर लें की उसने वही समझा है जो आप उसे समझाना चाह रहे हैं ! अन्यथा कुछ ऐसा हो सकता है , जैसा की इस राजा  के साथ हुआ ---

एक बार एक राजा का अपने पडोसी राजा से युद्ध छिड गया ! पडोसी राजा एक छोटे से राज्य का राजा  था ,वो स्वयं अपनी सेना का नेतृत्व कर रहा था !  ये राजा इसका साम्राज्य विशाल था , इसने अपने सेनापति को ही नेतृत्व देकर युद्ध में भेज दिया ! कई दिन युद्ध चला ! एक दिन ये राजा  अपने दरबार में अपने सलाहकारों के साथ किसी गंभीर चर्चा में व्यस्त था , तभी एक सैनिक युद्ध के मैदान से वहां आया और उसने सेनापति का सन्देश राजा को दिया !  उसने कहा --महाराज ! सेनापति जी ने सन्देश भेजा है कि आप युद्ध जीत गए हैं और विरोधी राजा और उसके सिपहसालारों को जीवित बंदी बना लिया गया है ! अब आगे आपके आदेश की प्रतीक्षा है ,आगे उनका क्या करना है ,आदेश दीजिये !
राजा जो की अपने सलाहकारों के साथ किसी अति महत्वपूर्ण बात पर चर्चा में व्यस्त था , उसने उस सैनिक से संक्षेप मे कहा ,सेनापति से कहना की --
अभी उन्हें रोको ,   मत जाने दो !
बाकी मैं इस समस्या से निबट कर सेनापति से आगे की बात करूँगा !

सैनिक आदेश लेकर सेनापति के पास पहुंचा ! सेनापति ने पूछा - इनके लिए महाराज का क्या आदेश है सैनिक ?
सैनिक ने कहा ,महाराज ने कहा है कि --
अभी इन्हें रोको मत ,   जाने दो !
बाकी वो बाद में आपसे बात कर लेंगे ......................

डॉ नीरज ..........

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शुक्रवार, 17 मई 2013

artical-on-self-improvement-in-hindi.






जरा अपने को ही सुधार लें --

दोस्तों,

जब से दुनिया बनी है तब से हर इंसान सिर्फ और सिर्फ दूसरे को ही सुधारने ,उसे अपने मन मुताबिक़ ढालने में ही लगा है ! लेकिन विडम्बना और हकीकत है कि आज तक कोई किसी को सुधार या बदल नहीं पाया है !

माता-पिता बच्चों को बदलना (सुधारना ) चाहते हैं ! पति पत्नी को ,पत्नी पति को , सास बहु को ,बहु सास को , गुरु शिष्य को ,boss  employee को ,,नेता अनुयायी को ,सब एक दुसरे को अपने मुताबिक ढालना चाहते हैं ! लेकिन सारी जिंदगी की इस "दूसरे को  बदलो अभियान" के बाबजूद कोई दूसरे के मुताबिक़ नहीं बदलता !  बदलता वो ही है ,जो खुद अपने अन्दर से (स्वप्रेरणा से ) बदलना चाहता है !

किसी के दवाब में आकर बदलना ,  बदलाव नहीं मजबूरी होती है ! आप किसी spring को दवाब देकर दबाए रख सकते हैं ! लेकिन जैसे ही आप दवाब हटाएँगे ,वो वापस उछलकर अपने पूर्व रूप में आ जाएगी !
हम सामने वाले को डरा-धमका कर,बहला कर ,लालच देकर ,गुस्सा होकर ,साम,दाम,दंड,भेद से क्षणिक रूप में बदल तो सकते हैं लेकिन अस्थाई तोर पर ही !

हमारी सारी शक्ति ,उर्जा ,समय ,सुकून  सामने वाले को बदलने के प्रयास में ही व्यर्थ हो जाता है ,लेकिन अंत में ढाक के वही तीन पात , बदलता कोई नहीं 

दोस्तों, इस दुनिया में अगर कोई किसी दूसरे के सुधारने से सुधर गया होता या दूसरे के बदलने से बदल गया होता तो यह धरती अभी जन्नत से कम नहीं होती !
आप कहेंगे बहुत से लोग हैं जिन्होंने अपने आप को बदला है ,अपने को रूपांतरित किया है ,किसी दूसरे के कहने पर , फिर चाहे वो अंगुलिमाल हो या वाल्मीकि ,है ना ?
लेकिन दोस्तों, बदले वो ही लोग हैं  जिनकी अंतरात्मा ने बदलना चाहा है  ! बिना स्वयं की आंतरिक इच्छा के दुनिया की कोई भी ताकत आपको बदल या सुधार  नहीं सकती ,जब तक की आपका अंतस स्वयं ना चाहे !

तो दोस्तों ,जो शक्ति ,समय हम दूसरों को बदलने में जाया कर रहे हैं उसे स्वयं को बदलने और अपने व्यक्तित्व विकास में लगा लें ! हमारे स्वयं में ही अभी इतनी कमियां और सुधार की गुंजाइश है कि हम अपने को ही सुधारने में लगें तो भी समय कम पड़ जाएगा !

एक खरा सवाल दोस्तों ,आपकी कितनी आदतें हैं जो आप बदलना तो चाहते हैं पर अभी तक बदल नहीं पाए हैं ? फिर चाहे वो जल्दी उठना हो, सिगरेट छोड़ना हो या ऐसी ही कोई दूसरी आदत ? शायद कोई भी नहीं ,या बहुत कम आदतें हम हमारी बदल पाते हैं ,है ना ?

तो दोस्तों ,जब हम खुद को ही नहीं बदल पा रहे हैं तो किसी दूसरे से कैसे बदलने की अपेक्षा कर सकते हैं ?

अगर आप चाहते हैं कि मधुमक्खियाँ आप पर मंडराएं तो बजाये उनको पकड़ के किसी पिंजरे में अपने पास जबरदस्ती रखने के क्यों नहीं आप स्वयं गुलाब बन जाएँ ,मधुमक्खियाँ बिना कहे आपके चारों और मंडराने लगेंगी ,है ना ?

 बरसों पहले की बात है ,जब आदमी धरती पर नंगे पैर रहता था , आये दिन जमीन के कंकड़-पत्थर ,काँटों से उसके पैर लहुलुहान हो जाते थे ! इसी समस्या को लेकर एक दिन राजा  ने दरबार बुलाया ! और इस समस्या का समाधान पूछा ! सब दरबारियों ने अपने अपने विचार रखे ! किसी ने कहा ,महाराज कुछ सफाई वालों ,झाड़ू वालों को नियुक्त किया जाए ,जो रास्तों को लगातार साफ़ करते रहे ,लेकिन पूरी पृथ्वी के हर हिस्से को बार बार साफ़ करना लगभग असंभव है,इसलिए ये विचार मान्य  नहीं हुआ !
किसी और ने कहा ,महाराज ! पूरी धरती को चमड़े से ढक  दिया जाए ताकि इस समस्या से छुटकारा मिले ! लेकिन इतना चमड़ा लायेंगे कहाँ से और पूरी धरती को उससे ढकेंगे कैसे ?
अंत में एक समझदार आदमी बोला  , महाराज एक छोटा सा निवेदन है , बजाये पूरी धरती को चमड़े से ढकने के आप सिर्फ अपने पैरों को, उनके तलवों को ही चमड़े से ढक लें ! इससे ना सिर्फ कंकड़-पत्थर ,काँटों से आपका हमेशा बचाव होगा ,बल्कि चमड़ा भी कम खर्च होगा ! और इस तरह दुनिया की पहली जूती अस्तित्व में आई !
कहने का तात्पर्य  बजाये सभी को अपने मुताबिक़ ढालने का असंभव प्रयत्न करने के हम स्वयं को ही अपने मुताबिक़ बदल लें !

आखिर ..........हम बदलेंगे तभी तो युग बदलेगा ,है ना ?



डॉ नीरज 
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क्यों नहीं मिलती है मंजिल .




              क्यों नहीं मिलती है मंजिल .......



दोस्तों,

गहरे समुद्र में चलने वाला विशाल जहाज जिसमे हजारों यात्रियों को ले जाने की और गहरे समुद्र में सतत अपनी मंजिल की तरफ बढ़ने की क्षमता होती है ! वो जहाज 2 कारणों से अपने लक्ष्य से चूक सकता है ! गहरे समुद्र में डूब सकता है ! 
वो 2 कारण हैं --

1. बाहरी कारण --तेज समुद्री तूफ़ान ,भीमकाय लहरों या भंवर में फंस जाना  और
2. आंतरिक कारण -- उस विशालकाय जहाज के पेंदे में हुआ एक छोटा सा छेद ,जिसके द्वारा जहाज में पानी भर कर उसे डुबो सकता है !

उसी तरह दोस्तों हमारे शरीर रूपी जहाज को भी 2 कारण अपने लक्ष्य से भटका सकते हैं ! हमें मंजिल पर पहुँचने से पहले ही बीच सफ़र में डूबा सकते हैं !

उदाहरण के लिए अगर हम किसी student की बात करें तो उसके लिए बाहरी कारण हैं ----

1. बाहरी कारण --exam के समय बीमार हो जाना ,समय से notes ना मिलना ,teachers द्वारा सही तरीके से ना पढाया जाना , college या school दूर होने से आने जाने में समय बर्बाद होना  इत्यादि !

2.आंतरिक कारण -- पूरे साल को यूँ ही व्यर्थ गँवा देना ,सुबह देर से उठना ,लापरवाही ,आलस ,पढ़ाई में मन ना लगना ,आज की पढ़ाई कल पर टालना .....!

तो दोस्तों कारण दोनों में से कोई भी हो ,परिणाम एक ही होगा ---साल की बर्बादी या exam में fail . है ना ?

उसी तरह येही कारण हम सबकी जिंदगी पर भी लागू होते हैं !

हमारा लक्ष्य चाहे जो भी हो ,मंजिल चाहे जो भी हो ! हम बाहरी कारणों को ज्यादा नहीं बदल सकते ! लेकिन अपने आलस,लापरवाही जैसे आन्तरिक  कारणों को तो दूर कर ही सकते हैं ! 

आपने आलस ,अनियमितता ,कल पर टालने की आदत ,दीर्घसूत्रता ,समय को बर्बाद करना ,सेहत पर ध्यान ना देना ,लक्ष्य को निर्धारित ना करना जैसे कई कारण रूपी छिद्र हैं जो हमारे शरीर रूपी जहाज को मंजिल पर पहुँचने के पहले ही भटका सकते हैं ,डूबा सकते हैं ! तो आइये दूर करें अपनी आन्तरिक कमजोरियों को और बढ चलें अपनी मंजिल की तरफ ..............!


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रविवार, 12 मई 2013

"माँ" तो आखिर माँ होती है ..




"माँ" तो आखिर माँ होती है .....



विशाल मरुथल ,सगन अगन 
अग्नि सी     बरसाता  गगन 
या तेज हवा ,घनघोर घटा 
जग प्रलय सा बरसता सावन 
मावस का वो गहन अँधियारा 
दूर तक न दिखे  उजियारा 
पास आती वो शेरों की दहाड़ 
महसूस होती साँपों की फुफकार 
खतरे असुरक्षा से भरा ये जीवन 
पग पग पर संग्राम है हर क्षण 
मुझे पता है ये सब संकट 
फिर भी इनसे मै बच  जाऊँगा 
पा के तुम्हारी ममता की पतवार 
जीवन भंवर से मैं तर जाऊँगा 
भले कठिन हो कितना जीवन 
चाहे हो    कठिनाईयाँ अपार 
निकालेगा इस भंवर से सकुशल 
"माँ " मुझे तेरी ममता और प्यार 
लगे बच्चे को गर चोट जरा सी 
उसकी पीड़ा माँ को होती है 
जन्मदात्री हो या जगजननी 
माँ तो आखिर माँ होती है !


डॉ नीरज .......

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शनिवार, 11 मई 2013

Osho quotes in hindi -kya mera kya tera




दोस्तों प्रस्तुत artical ओशो की book --क्या मेरा क्या तेरा (कबीर वाणी ) से है !

ओशो के अनमोल वचन ---

  • जो पछताएगा नहीं ,वह पहुंचेगा नहीं ! क्योंकि जो पछताएगा नहीं ,वह झुकेगा नहीं ! क्योंकि जो पछताएगा नहीं, वह समर्पित नहीं होगा !

  • जो हो गया ,हो गया ! जो जा चुका ,जा चुका ! अब भविष्य की तरफ देखो !

  • सुख का उपाय है --जो है उसका आनंद लो ! जो नहीं है ,उसकी चिंता न करो !

  • दुःख का उपाय है --जो है ,उसकी तो फ़िक्र ही  मत लो ! जो नहीं है ,उसकी चिंता करो !

  • सुख का सूत्र है --जो तुम्हारे पास है ,उसके लिए परमात्मा को धन्यवाद दो ! जो है --वह पर्याप्त है !

  • मिटाना जरुरी है --बनाने के लिए ! विध्वंस जरुरी है -- निर्माण के लिए !

  • जब किसी आदमी को तुम निराश देखो ,तो यह मत समझना कि उसने आशा छोड़ दी है ! निराश होने का मतलब ही यही होता है की आशा अभी भी कायम है !

  • लेकिन यह भी समझना जरुरी है कि मन की यह दशा कि इतना भी तय न कर पाए की पूछूँ कि न पूछूँ --शुभ नहीं है ! पूछना --तो पूछना ! नहीं पूछना --तो नहीं पूछना ! लेकिन मन की यह डांवाडोल स्थिति को सहारा नहीं देना चाहिए ! मन हर चीज में डांवाडोल होता है ,छोटी छोटी चीज में डांवाडोल होता है !

  • जिंदगी को सरल करो ! और सरल करना हो ,तो मन के विकल्पों को बहुत सहारा मत दो ! और धीरे धीरे मन के विकल्प गिरते चले जाएं,तो निर्विकल्प की दशा करीब आएगी !  ये सब विकल्प हैं --ऐसा करूँ ,वैसा करूँ ! जो लगे करने जैसा ,कर लेना ! फिर उस पर और ज्यादा उहापोह मत करना !

  • एक ही सूत्र में देना चाहता हूँ ---अगर किसी को हानि न होती हो ,तो उसे कर ही लो ! उसमे क्या विचार करना है ? शुभ करना हो ,तो तत्क्षण कर लो ! अशुभ करना हो ,तो कल पर टालो ! पाप को कल पर टालो ,पुण्य आज कर लो !

  • कहीं से भी शुरू करो ! इस प्रश्न को बहुत मूल्य मत दो ! मूल्य दो शुरू करने को ! शुरू करो !

  • अगर बच्चा चलने के पहले यही पूछे की कहाँ से शुरू करूँ ,कैसे शुरू करूँ ,कहीं गिर न जाऊं ,घुटने में चोट न आ जाए ,तो फिर बच्चा कभी चल नहीं पाएगा ! उसे तो शुरू करना पड़ता है ! सब खतरे मोल ले लेने पड़ते हैं !

  • बच्चे को चलना पड़ेगा ! खतरा मोल लेना पड़ेगा ,अन्यथा लंगड़ा ही रह जाएगा ! और कई बार गिरेगा !

  • लेकिन बच्चे हिम्मत करते हैं --तुतलाने की ! इसीलिए एक दिन बोल पाते हैं !

  • जो आदमी जो करेगा  स्वभावतः वैसा हो जाएगा !

  
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 साभार --क्या मेरा क्या तेरा (कबीर वाणी ) पुस्तक से 
 सोजन्य --ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन 
 प्रकाशक--डायमंड पॉकेट बुक्स

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रविवार, 5 मई 2013

समय की कीमत






                                   समय की कीमत 


एक बार एक इंसान की सेवा से प्रसन्न होकर एक साधू ने उसे एक ATM machine दी  ,कहा -बेटा ,तेरी निस्स्वार्थ सेवा से प्रसन्न होकर मैं तुझे एक उपहार देता हूँ ! यह कोई साधारण ATM machine नहीं है ! इसमें रोज सुबह तुझे हजार हजार के 24 नोट (rupees ) रखे मिलेंगे !
आदमी बड़ा खुश  हुआ , बोला -महाराज रोजाना ? हर दिन 24 नोट ?
साधू ने कहा ,हाँ भाई ,रोज 1000 के 24 कड़क नोट , लेकिन एक condition है ?
वो क्या महाराज ?
वो यह की ये रुपये तुम्हें रोजाना के रोजाना ही खर्च करने होंगे ! एक दिन भर में 24 में से जितने रुपये तुम खर्च कर पाओगे उतने ही तुम्हारे होंगे ,बाकी बचे हुए सारे रुपये अपने आप ही lapse हो जाएंगे ,गायब हो जाएंगे ! फिर अगले दिन 24 नए नोट हाजिर ..

आदमी बोला ,-इसमें कोनसी  बड़ी बात है ,आप 24 की कह रहे हैं ,24 की जगह 1000 के 100 नोट भी होते खर्च करने के लिए, तो मुझे तो वो भी कम पड़ते महाराज 
साधू मुस्कुराये 
अगले दिन सुबह जैसे ही उस इंसान की आँख  खुली ,वो सीधा ATM machine के पास गया ,देखा 1000 के 24 कड़क नोट उसकी आँखों के सामने थे !
वो बड़ा खुश हुआ ,दिन भर उन रुपयों को खर्च करता रहा ! रात होने पर देखा अभी भी 1 -2 नोट बच गए थे ,बड़ा दुखी हुआ की अब ये रुपये ऐसे ही व्यर्थ गायब हो जाएंगे ! चलो कल में पूरे 24 नोट ही खर्च करूँगा !
कुछ दिनों तक बड़ी उमंग और उत्साह से वो रुपये खर्च करता रहा ,लेकिन कुछ समय बाद वो 24 में से मुश्किल से 4-5 नोट ही खर्च कर पाता था और बचे हुए सारे नोट lapse हो जाते थे ! वो अपनी आलस,लापरवाही ,टालमटोल की आदत की वजह से  चाह कर भी उन्हें खर्च नहीं कर पाता था !

आइये दोस्तों जरा हिसाब लगायें की उस आदमी को अपने पूरे जीवन में कितने रुपये मिले और उनमे से कितने रुपये वो खर्च कर पाया !

मान लेते हैं उस इंसान की औसत उम्र 80 साल है ,तो .....
एक दिन में -- 24,000 रुपये 
7 दिन में   --   168,000
एक महीने में --लगभग 720,000
एक साल में ---लगभग  8,760,000 ( सत्तासी लाख रुपये )
लगभग पूरे जीवन में  --लगभग 700,800,000 (लगभग सत्तर करोड़ रुपये )

और उसने अपने काम लिए (खर्च किये ) लगभग 5000 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से ( कुछ लोग तो इतना भी खर्च नहीं कर पाते हैं रोज )--
5000 x 365(एक साल में ) = 1,825,000
लगभग पूरे जीवन काल में = 146,000,000 (लगभग 15 करोड़ रुपये )

हम ये मान लेते है की उसे पूरे जीवन काल में ATM machine से लगभग 70 करोड़ रुपये मिले ! और उनमे से उसने खर्च किये 15 करोड़ ..चलिए 15 नहीं 20,30 करोड़ मान लेते हैं ,ठीक है 
फिर भी लगभग 40 करोड़ रुपये तो lapse हो ही गए ! अब ऐसे आदमी को आप क्या कहिएगा ?
आप सोच रहे होंगे  कैसा आदमी है ? जो इतनी सहजता से मिले करोड़ों रुपयों को भी नहीं सम्हाल पाया !

दोस्तों, वो आदमी और कोई नहीं  आप और मैं (हम ) ही हैं !

जरा सोचिये हम अपने रोज के 24 घंटे में से या कहें 24000 रुपयों में से  कितने घंटे या रुपये cash कर पाते हैं ,वसूल पाते हैं ! कितने मिनटों का हम सार्थक उपयोग कर पाते हैं ! और  कितने घंटे (रुपये ) ऐसे ही व्यर्थ जाया हो जाते हैं ! सोचिएगा .....

वैसे दोस्तों ,एक घंटे की कीमत हजार के एक नोट से भी कहीं ज्यादा है ! क्योंकि दुनिया की सारी  दौलत देकर भी हम एक घंटा या मिनट तो क्या पिछले क्षण को भी वापस वर्तमान में नहीं ला सकते ,है ना ?

हाथ की मुट्ठी में रेत  की मानिंद समय क्षरित होता जा रहा है ,और क्षरित होते जा रहे है हम भी ,काल के प्रवाह में ...

आइये हम पूरे 24,000 नहीं तो जितने ज्यादा रुपये ( घंटे ) एक दिन में cash कर सकते हैं ,करें ! क्योंकि समय अमूल्य है और हम इसे ऐसे ही जाया नहीं होने दे सकते ,है ना ?

डॉ नीरज 


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