may14

रविवार, 9 फ़रवरी 2014

advice for human being in hindi





करें विश्वास ,पर विवेक के साथ 


दोस्तों,
दुनिया में गणित की तरह हमेशा 2+2=4  नहीं होते हैं ! एक अच्छा आदमी जिंदगी भर अच्छा ही रहे ,जरुरी नहीं ! वहीं  एक खराब ,बुरा इंसान जिंदगी भर बुरा ही बना रहे ,यह भी जरुरी नहीं !
हम इंसान हैं ,भावनाओं,इच्छाओं से भरे हुए इंसान ,कोई मशीन नहीं कि जिसमे एक programme set कर दिया तो वो जिंदगी भर वैसे ही चलेगी ! ऊपर वाले ने हमें सोच-विचार की शक्ति दी है ,अपना लाभ-हानि देखने का विवेक दिया है ! वहीं  काम ,क्रोध ,लोभ,मोह,वासना,अहंकार, जैसे भावों को भी हमारे मन में स्थापित किया है ! हम एक जीवन्त रचना हैं ,पत्थर की मूर्ति नहीं ,जो एक बार जिस रूप में बन गई ,हमेशा वैसी ही रहेगी !

हमारा मन पल पल बदलता है ! किसी इंसान के मन में क्या चल रहा है कोई नहीं बता सकता ! भेड़ की खाल में कई भेड़िये दिखते हैं ! वहीं  नारियल के कड़क खोल के अंदर मीठी नरम गिरी भी होती है !

कहने का आशय कि हम आँख मूंद कर किसी पर विश्वास न करें ! ऊपर वाले ने हमें विवेक दिया है ,सोचने की क्षमता दी है ! हम किसी भी इंसान पर कोई ठप्पा नहीं लगा सकते हैं हमेशा के लिए ! ईमानदार आदमी हमेशा ईमानदार ही रहे ,जरुरी नहीं,  वहीं बेईमान भी कभी ईमानदार से ज्यादा ईमान वाला हो सकता है ,परिस्थिति पर निर्भर है !

आम मीठा होता है ,पर शुरुवात में वही आम (कच्चा आम -कैरी ) खटाई से भरपूर होता है ! समय और परिस्थिति के साथ रूपांतरित होकर खटास ,मिठास में बदलती है ! हम यह नहीं कह सकते कि ये तो खट्टा है ,कभी मीठा नहीं हो सकता ! हो सकता है ,परिस्थिति पर निर्भर है ! साधू शैतान हो सकता है ,डाकू संत हो सकता है !

मैं यह नहीं कहता कि हम रिश्तों को ,सम्बंधों को शक़ की नजरों से देखने लगें ,बस थोडा विवेक बनाये रखें ! आज जो हमारा लंगोटिया यार है ,कल जानी -दुश्मन भी हो सकता है ! हमारा मन पल पल बदलता है ,विचार बदलते हैं !

हम यानि मनुष्य उस पुल की तरह हैं ,जिसमे एक तरफ देवत्व,अच्छाई है वहीं दूसरी तरफ असुरता,बुराई है ! उस पुल की ढलान कब किधर हो जाए ,कह नहीं सकते ! परिस्थिति पर निर्भर है ! 
24 घंटों में हमारे अंदर देवत्व भी जागता है ,वहीँ असुरता भी पनप जाती है ! 

हर चमकती चीज सोना नहीं होती ! क्यों न हम अपने विवेक के दायरे को इतना व्यापक रखें कि कोई भटका अगर सुधर कर वापस आना चाहे तो हम दिल खोल कर उसका स्वागत कर सकें ! वहीं अगर किसी अपने ने हमारे भरोसे की पीठ पर खंजर मारा हो ,तो उसे बेधड़क अपने दिल से बाहर भी कर सकें ! rigid न हों ,है ना ?

वैसे भी कहा है ,सावधानी हटी ,दुर्घटना घटी ! यही बात हमारे सम्बंधों पर भी लागू होती है !
सही है कि विश्वास पर समाज चलता है ,बस उस विश्वास को विवेक की कसौटी पर थोडा कस लें ,तो ज्यादा अच्छा हो ,है ना ?

डॉ नीरज यादव 


              -----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------