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सोमवार, 30 जुलाई 2012

भोजन(meal ) के नियम .........


                                                    भोजन(meal ) के नियम 

 दोस्तों, पिछले article achhibatein: जिगर मा बड़ी आग है ........  मे हमने जठराग्नि (appetite) के बारे मे बात की थी!  हमारे स्वास्थ्य का सीधा सम्बन्ध  हमारी जठराग्नि से है और इसका सीधा सम्बन्ध  हमारे भोजन से है ,  हमारी भूख सही बनी रहे ,  खाना सही से पचता रहे ,  इसके लिए जरूरी है   की हम हमारे खाने पर ध्यान दें!  क्या खाना है  और कब खाना है, ये २ जरूरी बातें हैं!   हम खाना तो अच्छा खाते हैं, पोष्टिक खाते हैं पर टाइम बे टाइम खाते हैं तो उसका कोई फायदा नहीं !


जिस प्रकार आपकी लाखों की गाडी का ईंधन उसका पेट्रोल होता है ,  उसी तरह आपके  इस अनमोल शरीर  का ईंधन आपका खाना होता है !   यह खाने से मिली energy ही है   जो आपके शरीर  रूपी गाडी को अपने रास्ते पर चलाये रखती है!
भोजन का महत्व ----दोस्तों ,जिस तरह एक गाय हरा चारा खाती है ,  वो उसके शरीर मे दूध मे बदलता है ,  दूध से दही , दही से मक्खन   और मक्खन से घी बनता है और घी ताकत मिलती है !    उसी तरह हम जो खाना खाते हैं ,  वो पेट मे अच्छे से पच कर रस बनता है,  रस से रक्त (blood ),रक्त से मांस ,मांस से मेद(fat ),मेद  से अस्थि (bones ),अस्थि से मज्जा (bone marrow ),मज्जा से शुक्र (semen ) और शुक्र से ओज (energy ) बनता है !    इसलिए सही खाना और सही समय पर खाना बहुत जरूरी है !   इसीलिए आयुर्वेद मे भोजन से संबंधित कुछ नियम बताये गए हैं ,जिनका सहज रूप से पालन कर हम हमारी जठराग्नि,  हमारे शरीर  को स्वस्थ और सबल रख सकते हैं ! 
भोजन(meal ) के नियम ---    
  • जिस तरह भट्टी की आग इंधन के बिना बुझ जाती है   उसी तरह भूख लगने पर खाना नहीं खाने से जठराग्नि मंद (slow )हो जाती है !
  • जो व्यक्ति खाने के समय के पहले ही खा लेते हैं उन्हें headache ,indigestion ,अजीर्ण जैसे रोग हो जाते हैं!
  • और जो व्यक्ति खाने के समय के बहुत बाद खाना खाते हैं   उनकी जठराग्नि को पेट की वायु नष्ठ कर देती है , जिससे उस खाने के पचने मे कठनाई होती है ,  और बाद मे खाना खाने की भी इच्छा नहीं होती है , शरीर  मे आलस्य सा बना रहता है !
  • दोस्तों अगर आप कुकर मे चावल पकाने को रखें , लेकिन अगर आप कूकर को पूरा ही चावल से भर दें !  या चावल  , पानी  और  हवा का अनुपात सही नहीं रखें तो आप भी जानते हैं   चावल नहीं पकेंगे या वो जल जायेंगे ,  या कच्चे रह जाएँगे !  उसी तरह आपका पेट भी एक pressure -cooker की ही तरह है !    खाना अच्छे से पचे इसके लिए आप पेट के काल्पनिक 4 भाग कीजिये ,  उनमे से 2 भाग अन्न से भरिये ,1 भाग पानी के लिए और 1भाग  हवा के लिए रहने दीजिये ! 
  • जिस तरह पहिये मे हवा कम भरेंगे तो वो puncher हो जाएगा और जरुरत से ज्यादा हवा भरने से वो फूट भी सकता है,  उसी तरह कम खाने से शारीर कमजोर हो जाता है ताकत घट जाती है , और जरूरत से ज्यादा खाने से आलस्य ,भारीपन, पेट दर्द, vomit ,diarroheaआदी हो जाते हैं!
  • प्यास लगने पर खाना खाना  और भूख  मे पानी नहीं पीना चहिये!
  • खाने के तुरंत पहले पानी पीने से जठराग्नि मंद और शरीर निर्बल हो जाता है !   खाने के तुरंत बाद  पानी पीने से कफ  बढता है ,लेकिन खाने के बीच बीच मे थोडा थोडा पानी पीने से अग्नि बढती है ! 
  • खाने  के तुरंत पहले पानी पीने से शरीर पतला ,खाने के तुरंत बाद पानी पीने से शरीर मोटा और बीच बीच मे थोडा पानी पीने से शरीर समान(ना मोटा ना दुबला ) रहता है!
  • खाना खाते ही तुरंत पैदल चलना, महनत करना ,या तुरंत नींद भर कर  सोना सही नहीं है !
  • जो व्यक्ति किसी तरह की शारीरिक महनत के तुरंत बाद ,या कही से थका हुआ आकर बिना पसीना सुखाये   खाने लगता है या बहुत सारा पानी पी लेता है उसे fever  या वमन (vomit ) हो जाता है !
इसीलिए खाना सही समय पर ,सही तरीके से और सही मात्रा मे खाना चहिये !

गुरुवार, 26 जुलाई 2012

जिगर मा बड़ी आग है ..........

                                            जिगर मा बड़ी आग है ..........


दोस्तों हम यहाँ गुलजार साहब की बीडी जलाने वाली जिगर की आग की बात नहीं कर रहे हैं, हम बात करेंगे जिगर की आग यानि पेट की अग्नि (जठराग्नि) की ,जो हमारे स्वस्थ रहने का एक मुख्य साधन है ! जब तक हमारी जठराग्नि सही है ,तब तक हमारा स्वास्थ्य भी अच्छा है,और जहाँ यह disturb हुई  वहीँ पेट की बीमारियों को आमंत्रण शुरू हो जाता है !

आयुर्वेद मे 13 तरह की अग्नियाँ(fire ) बताई गई हैं ,जिनमे से एक है जठराग्नि  !   जठर=पेट (stomach )       अग्नि =आग (fire )
जिस तरह रसोई मे खाना पकाने के लिए हमें गैस की जरुरत होती है , उसी तरह पेट मे गया  हुआ खाना पचाने के लिए हमें जिस उर्जा की जरुरत होती है उसे ही जठराग्नि कहते हैं ! 
आपने देखा होगा कई व्यक्ति बहुत गरिष्ठ (भारी),  heavy खाना खाकर भी उसे आराम से पचा लेते हैं,जबकि कई मूंग की खिचड़ी जैसा हल्का भोजन भी नहीं पचा पाते !  कभी हमें भूख बहुत अच्छी लगती है,  तो कभी हमारा खाने की तरफ देखने का भी मन नहीं करता ,है ना?
दोस्तों इसके पीछे कई कारण काम करते हैं ,जिनकी चर्चा हम आगे करेंगे!

जठराग्नि 4 तरह की होती है-
1 . समाग्नी- जब खाया हुआ अन्न अच्छे से पच जाए!
2 . विषमाग्नि-जब कभी तो खाना पच जाये,कभी नहीं पचे ,digestion  irregular हो !
3 . मन्दाग्नि -जब हमारी पेट की गैस का बर्नर बिलकुल sim पर हो और बहुत हल्का खाना भी नहीं पचे !
4 . तिक्ष्नाग्नी -बड़ी गैस भट्टी के बड़े बर्नर से निकलती तेज आंच जैसी अग्नि जो non veg . ,उरद का  हलुवा जैसे heavy food को भी आसानी से पचा लेती है!

अब ये तो अग्नि की भिन्नता के आधार पर व्यक्तियों के 4 प्रकार हुए !   जिनमे समाग्नी ही स्वास्थ्य की परिचायक है!  जरुरी  नहीं की जिस व्यक्ति की जो अग्नि है ,वही जिंदगी भर उसके पेट मे बनी रहे !
जठराग्नि को प्रभावित करने वाले  factor -
1 काल (टाइम) __  आपने देखा होगा की december , january मे हमारे पेट की अग्नि अपनी पूर्णता पर होती है,  हम जो भी खाते हैं आसानी से पच जाता है!   हमे अच्छी भूख लगती है ,शरीर मे भी हल्कापन रहता है,  इसीलिए गाजर का हलवा या उरद के लड्डू (मुहं मे पानी आ गया ना )  जैसी  गरिष्ठ  चीजे भी हम बड़ी आसानी से पचा जाते हैं !
वहीँ जून ,जुलाई मे जब गर्मी, बारिश, उमस (humidity )से हमारा शरीर आक्रांत रहता है,  हमे भूख नहीं लगती है ,  २ रोटी भी पचाना मुश्किल होता है, है ना?   ये काल का प्रभाव है !
2 . अनियमित खानपान (irregular diet )  --  दोस्तों कुदरत ने हमारे शरीर की प्रत्येक गतिविधि को बड़े ही practically   एक  समय की सारणी मे आबद्ध किया है !   इसे हम आम भाषा मे जैविक घडी / biological clock  कहते हैं !
ऐसा अधिकतर होता है की बिना अलार्म के ठीक 5 बजे  हमारी नींद खुल जाती है,   बिस्तर  से उतरते ही हमे nature call (motion )  आ जाता है,  ठीक 11 बजे हमे भूख लग आती है   ,रात मे ठीक 10  या 11 बजे हमे नींद आने लगती है,  होता है ना?   लेकिन ये उन खुशकिस्मत लोगो के साथ होता है जिनकी नियमित दिनचर्या होती है !

दोस्तों  जठराग्नि मतलब वो पाचक रस जो खाने को पचाते हैं !  हमारा शरीर हमारी जैविक घडी के अनुसार एक निश्चित समय पर , एक  निश्चित मात्रा मे पेट मे  पाचक रस स्रावित करता है  जो की उस अन्न को पचाने के लिए आवश्यक होता है !  और उस पाचक स्राव की मात्रा और secretion  के टाइम का निर्धारण हर इंसान की जैविक घडी के अनुसार अलग अलग होता है!
मान लीजिये आप नियम से रोजाना सुबह 11 बजे और शाम 8 बजे खाना खाते हैं,  तब आपका शरीर  बिना नागा रोज fix time पर पेट मे पाचक रस का स्राव कर देता है और पेट मे आया अन्न सही तरीके से पच कर आपकी सेहत को बनाये रखता है !
दोस्तों समस्या तब होती है जब हमारा  खाने का समय निश्चित नहीं होता ,  कभी हम 9 बजे ही खा लेते हैं   तो कभी काम की व्यस्तता मे दिन के २-३ बजे तक पेट मे खाना डालने की फुर्सत भी नहीं मिलती है ,ऐसे मे आपके शरीर का biological system , जो स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है वो disturb हो जाता है !    फिर ऐसा होने लगता है की   जब आपका पेट पाचक रस (जठराग्नि) छोड़ता है, खाना पचाने के लिए    तब पेट मे खाना नहीं होता ! और अपने काम से निबट कर अपनी सहूलियत से जब आप पेट मे खाना डालते हैं तब पाचक रस का स्राव नहीं होता !  क्योंकि शरीर की biological clock तो अपने ही नियम से चलेगी ,  ना की आपके मूड से, है ना ?

ये कुछ उसी तरह है की जब गैस की लो (आंच) तेज होती है तब उस पर पकाने के लिए कुछ नहीं होता ,बर्तन खाली होता है तो जाहिर है बर्तन ज्यादा गरम हो जाएगा या जल जाएगा (एसिडिटी की शुरुआत ) और जब आप गैस चूल्हे  पर बर्तन मे बहुत सारी चीजें पकाने के लिए रखते हैं   तो पता पड़ता है की गैस ही ख़तम हो गई है !   इसी दिनचर्या से फिर शुरुआत होने लगती है पेट की परेशानियों  (भूख ना लगना ,constipation ,acidity ,gastritis जैसी बिमारियों की ).............
दोस्तों article बहुत लम्बा हो रहा है ,  इसलिए आज बस इतना ही .........
आगे के article मे हम पेट,constipation , acidity और स्वास्थ्य से संबन्धित बातों पर चर्चा करेंगे !   आपकी टिप्पणियाँ ये decide करेंगी की आगे इस subject पर लिखना चाहिये या नहीं !    
डॉ.नीरज 

बुधवार, 25 जुलाई 2012

Thank You Readers

                                                    शुक्रिया दोस्तों 


दोस्तों achhibatein को जो responce आप सब ने दिया है !   उससे मेरा होसला कई गुना बढ गया है !   blog शुरु  करने के 7  दिनों मे ही achhibatein का page views 100 cross कर गया है !  इसके लिए मै आप सभी readers का दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ! 

दोस्तों मेरा इस ब्लॉग को बनाने का सिर्फ एक ही मकसद है की मुझे मेरे field (ayurved & yoga)  मै जो भी ज्ञान मिला है  उसे आप सब के साथ share करना!   दोस्तों मेरी personal library मै yog, ayurveda, motivation, personality development,  और दुनिया के बेहतरीन लेखको की अनेको books हैं,  जिन्होंने मेरी जिंदगी के हर क्षण मै मुझे मार्गदर्शन और प्रेरणा दी है !  उन सबका निचोड़ मैं आप सब के साथ share करना चाहता हूँ ! अगर मेरे इस प्रयास से किसी एक  भी reader को प्रेरणा मिलती है तो मेरा इस ब्लॉग को बनाने का मकसद सार्थक होगा !  

दोस्तों जिस तरह किसी vehicle  को चलते रहने के लिए सतत petrol या ईंधन की जरुरत होती है, उसी तरह एक लेखक को लिखते रहने के लिए readers के comments रूपी charger की जरुरत होती है!   आप सब की टिपण्णी मुझे और achhibatein लिखने के लिए प्रेरित करेगी !    so,  please give me your valuable comments.

इक बात और दोस्तों, जिस तरह ग्वाल बालो के सहयोग के बिना भगवन श्री कृष्ण ने गोवर्धन नहीं उठाया था , जिस तरह एक हाथ से आप ताली नहीं बजा सकते, उसी तरह आपके साथ के बिना  मै  भी अपने लक्ष्य(एक अच्छा और उपयोगी ब्लॉग)को नहीं पा सकूँगा ,! आप मै से जो भी पाठक अच्छा लिखते हैं, या आपके पास कोई अच्छा article है ,तो आप उसेmail id-  drneerajbaba@gmail.com  पर  अपने फोटो के साथ भेज दीजिये !  पसंद आने पर आपके नाम और फोटो के साथ उसे यहाँ publish करेंगे.thanks

अंत मै आप सब से मै येही कहना चाहुंगा,  किसी शायर ने कहा है--
                                       मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर,
                                      लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया !
तो दोस्तों अगली पोस्ट तक के लिए good bye

सोमवार, 23 जुलाई 2012

Pt.Sri Ram Sharma Aacharya quotes in hindi


                          * पूज्य गुरुदेव पंडित श्री राम शर्मा आचार्य जी के अनमोल वचन *
  •  तुम्हे यह सीखना होगा की इस संसार मे कुछ कठिनाइयां हैं जो तुम्हे सहन करनी हैं !  वे पूर्व कर्मो के फलस्वरूप तुम्हें अजय प्रतीत होती हैं !  जहाँ कहीं भी कार्य में घबराहट ,थकावट और निराशाएं हैं, वहां अत्यंत प्रबल शक्ति भी है ! अपना  कार्य कर चुकने पर इक और खड़े होओ!   कर्म के फल को समय की धारा  मैं प्रवाहित हो जाने दो! 
  • अपनी शक्ति भर कार्य करो और तब अपना आत्मसमर्पण करो !  किन्ही भी घटनाओं मे हतोत्साहित ना होओ !  तुम्हारा अपने ही कर्मो पर अधिकार हो सकता है,दुसरो के कर्मो पर नहीं!  आलोचना ना करो,भय ना करो आशा ना करो ,सब अच्छा ही होगा !
  • जब निराशा और असफलता को अपने चारो और मंडराते देखो तो समझो की तुम्हारा चित्त स्थिर नहीं है, तुम अपने ऊपर विश्वास नहीं करते!  वर्तमान दशा से छुटकारा नहीं हो सकता जब तक की अपने पुराने सड़े-गले विचारों को बदल ना डालो!  जब तक ये विश्वास ना हो जाए की तुम अपने अनुकूल चाहे जैसी अवस्था निर्माण कर सकते हो , तब तक तुम्हारे पैर उन्नति की और बढ नहीं सकते!  अगर आगे भी नहीं संभलोगे तो हो सकता है की दिव्य तेज किसी दिन बिलकुल ही क्षीण हो जाए !  यदि तुम अपनी वर्तमान अप्रिय अवस्था से छुटकारा पाना चाहते हो ,तो अपनी मानसिक निर्बलता को दूर भगाओ!  अपने अन्दर आत्मविश्वास जाग्रत करो!
  • इस  बात का शोक मत करो की मुझे बार बार असफल होना पड़ता है !  परवाह मत करो क्योंकि समय अनंत है !   बार बार प्रयत्न करो और आगे की ओर कदम बढाओ !  निरंतर कर्त्तव्य करते रहो ,आज नहीं तो कल तुम सफल होकर रहोगे! 
  • सहायता के लिए दूसरो के सामने मत गिडगिडाओ  क्योंकि यथार्थ मे किसी मे भी इतनी शक्ति नहीं है जो तुम्हारी सहायता कर सके!  किसी कष्ट के लिए दूसरो पर दोषारोपण मत करो ,क्योंकि यथार्थ मे कोई भी तुम्हे दुःख नहीं पहुचा सकता!  तुम स्वयं ही अपने मित्र हो और स्वयं ही अपने शत्रु हो!  जो कुछ भली बुरी स्थितियां  सामने हैं, वह तुम्हारी ही पैदा की हुई हैं ! अपना द्रष्टिकौण बदल दोगे तो दुसरे ही क्षण  यह भय के भूत अंतरिक्ष मे तिरोहित हो जाएंगे!
  • एक साथ बहुत सारे काम निबटने के चक्कर  मे मनोयोग से कोई कार्य पूरा नहीं हो पाता!  आधा अधूरा कार्य छोड़ कर मन दुसरे कार्यो की ओर दौड़ने लगता है ! यहीं  से श्रम ,समय की बर्बादी प्रारम्भ होती है  तथा मन मे खीज उत्पन्न होती है!  विचार और कार्य सीमित एवं संतुलित कर लेने से श्रम और शक्ति का अपव्यय रुक जाता है और व्यक्ति सफलता के सोपानो पर चढ़ता चला जाता है!
  • दूसरो  से यह अपेक्षा करना की सभी हमसे होंगे  और हमारे कहे अनुसार चलेंगे !  मानसिक तनाव बने रहने का , निरर्थक उलझनों मे फंसे रहने का मुख्य कारण है !  इससे छुटकारा पाने के लिए ये आवश्यक है की हम चुपचाप शांतिपूर्वक अपना काम करते चलें और लोगों को अपने  हिसाब से चलने दें !  किसी व्यक्ति पर हावी होने की कोशिश  ना करें  और ना ही हर किसी को खुश रखने के चक्कर मे अपने अमूल्य समय और शक्ति का अपव्यय ही करें !
  • दूसरो का विश्वास तुम्हें अधिकाधिक असहाय और दुखी बनाएगा !  मार्गदर्शन के लिए अपनी ही ओर देखो ,दूसरो की ओर नहीं !  तुम्हारी सत्यता तुम्हें दृढ बनाएगी ! तुम्हारी द्रढता  तुम्हें लक्ष्य तक ले जाएगी !
  • असफलता केवल ये सिद्ध करती है की सफलता का प्रयत्न पूरे मन से नहीं हुआ !

शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

हारिये ना हिम्मत

 दोस्तों ,जिंदगी है तो संघर्ष् हैं,तनाव् है,काम् का pressure है!ख़ुशी है,डर् है!लेकिन् ख़ुशी की बात् है की ये सभी स्था‌ई नहीं हैं!समय् रूपी नदी के प्रवाह् में से सब् प्रवाहमान् हैं!को‌ई भी परिस्थिति चाहे ख़ुशी की हो या डर् तनाव् की, कभी स्था‌ई नहीं होती ,समय् के अविरल् प्रवाह् में विलीन् भी हो जाती है!
ऐसा अधिकतर् होता है की जीवन् की यात्रा के दौरान् हम् अपने आप् को क‌ई बार् दुःख् ,तनाव्,चिंता,डर्,हताशा,निराशा,भय्,रोग् इत्यादि के मकडजाल् में फंसा हु‌आ पाते हैं  हम् तात्कालिक् परिस्थितियों के इतने वशीभूत् हो जाते हैं  कि दूर् दूर् तक् देखने पर् भी हमें को‌ई प्रकाश् की किरण् मात्र् भी दिखा‌ई नहीं देती , दूर् से चींटी की तरह् महसूस् होने वाली परेशानी हमारे नजदीक् आते आते हाथी के जैसा रूप् धारण् कर् लेती है  और् हम् उसकी विशालता और् भयावहता के आगे समर्पण् कर् परिस्थितियों को अपने ऊपर् हावी हो जाने देते हैं,वो परिस्थिति हमारे पूरे वजूद् को हिला डालती है ,हमें हताशा,निराशा के भंवर् में उलझा जाती है!
दोस्तों ,ऐसा अधिकतर् होता है की परिस्थितियां हमारे अनुकूल् नहीं होतीं हम् जो चाहते हैं वह् मिल् नहीं पाता  एक‌एक् क्षण् पहाड़् सा प्रतीत् होता है और् हम् में से अधिकतर् , दूर् को‌ई आशा की किरण् ना देख् पाने से हताश् होकर् परिस्थिति के आगे हथियार् डाल् देते हैं!
अगर् आप् किसी अनजान्,निर्जन् रेगिस्तान् मे फँस् जा‌एँ तो उससे निकलने का एक् ही उपा‌ए है ,बस् -चलते रहें!  अगर् आप् नदी के बीच् जाकर् हाथ् पैर् नहीं चला‌एँगे तो निश्चित् ही डूब् जा‌एंगे !  जीवन् मे कभी ऐसा क्षण् भी आता है, जब् लगता है की बस् अब् कुछ् भी बाकी नहीं है ,ऐसी परिस्थिति मे अपने  आत्मविश्वास् और् साहस् के साथ् सिर्फ् डटे रहें क्योंकि --हर् चीज् का हल् होता है,आज् नहीं तो कल् होता है

एक् बार् एक् राजा की सेवा से प्रसन्न् होकर् एक् साधू नें उसे एक् ताबीज् दिया और् कहा की राजन्  इसे अपने गले मे डाल् लो और् जिंदगी में कभी ऐसी परिस्थिति आये की जब् तुम्हे लगे की बस् अब् तो सब् ख़तम् होने वाला है ,परेशानी के भंवर् मे अपने को फंसा पा‌ओ ,को‌ई प्रकाश् की किरण् नजर् ना आ रही हो ,हर् तरफ् निराशा और् हताशा हो तब् तुम् इस् ताबीज् खोल् कर् इसमें रखे कागज़् को पढ़ना ,उससे पहले नहीं!

राजा ने वह् ताबीज् अपने गले मे पहन् लिया !एक् बार् राजा अपने सैनिकों के साथ् शिकार् करने घने जंगल् मे गया!  एक् शेर् का पीछा करते करते राजा अपने सैनिकों से अलग् हो गया और् दुश्मन् राजा की सीमा मे प्रवेश् कर् गया,घना जंगल् और् सांझ् का समय्तभी कुछ् दुश्मन् सैनिकों के घोड़ों की टापों की आवाज् राजा को आ‌ई और् उसने भी अपने घोड़े को एड् लगा‌ईराजा आगे आगे दुश्मन् सैनिक् पीछे पीछे!   बहुत् दूर् तक् भागने पर् भी राजा उन् सैनिकों से पीछा नहीं छुडा पाया !  भूख्  प्यास् से बेहाल् राजा को तभी घने पेड़ों के बीच् मे एक् गुफा सी दिखी ,उसने तुरंत् स्वयं और् घोड़े को उस् गुफा की आड़् मे छुपा लिया !  और् सांस् रोक् कर् बैठ् गया , दुश्मन् के घोड़ों के पैरों की आवाज् धीरे धीरे पास् आने लगी !  दुश्मनों से घिरे हु‌ए अकेले राजा को अपना अंत् नजर् आने लगा ,उसे लगा की बस् कुछ् ही क्षणों में दुश्मन् उसे पकड़् कर् मौत् के घाट् उतार् देंगे !  वो जिंदगी से निराश् हो ही गया था , की उसका हाथ् अपने ताबीज् पर् गया और् उसे साधू की बात् याद् आ ग‌ई !उसने तुरंत् ताबीज् को खोल् कर् कागज् को बाहर् निकाला और् पढ़ा !   उस् पर्ची पर् लिखा था ---"यह्(समय्) भी कट् जा‌एगा "
अचानक् जैसे घोर् अन्धकार् मे एक्  ज्योति की किरण् दिखी , डूबते को जैसे को‌ई सहारा मिला !  उसे अचानक् अपनी आत्मा मे एक् अकथनीय् शान्ति का अनुभव् हु‌आ !  उसे लगा की सचमुच् यह् भयावह् समय् भी कट् ही जा‌एगा ,फिर् मे क्यों चिंतित् हो‌ऊं !  अपने प्रभु और् अपने पर् विश्वासरख् उसने स्वयं से कहा की हाँ ,यह् भी कट् जा‌एगा !
और् हु‌आ भी यही ,दुश्मन् के घोड़ों के पैरों की आवाज् पास् आते आते दूर् जाने लगी ,कुछ् समय् बाद् वहां शांति छा ग‌ई !  राजा रात् मे गुफा से निकला और् किसी तरह् अपने राज्य् मे वापस् आ गया !
दोस्तों,यह् सिर्फ् किसी राजा की कहानी नहीं है यह् हम् सब् की कहानी है !हम् सभी परिस्थिति,काम् ,तनाव् के दवाव् में इतने जकड् जाते हैं की हमे कुछ् सूझता नहीं है ,हमारा डर् हम् पर् हावी होने लगता है ,को‌ई रास्ता ,समाधान् दूर् दूर् तक् नजर् नहीं आता ,लगने लगता है की बस्, अब् सब् ख़तम् ,है ना?
तब् दोस्तों,२ मिनट् शांति से बेठिये ,थोड़ी गहरी गहरी साँसे लीजिये !  अपने आराध्य् को याद् कीजिये और् स्वयं से जोर् से कहिये --यह् भी कट् जा‌एगा !   आप् देखि‌एगा एकदम् से जादू सा महसूस् होगा , और् आप् उस् परिस्थिति से उबरने की शक्ति अपने अन्दर् महसूस् करेंगे !  आजमाया हु‌आ है ! बहुत् कारगर् है
आशा है जैसे यह् सूत्र् मेरे जीवन् मे मुझे प्रेरणा देता है ,आपके जीवन् मे भी प्रेरणादायक् सिद्ध् होगा !
डॉ .नीरज्    

बुधवार, 18 जुलाई 2012

कैसे पायें जिंदगी की परेशानियों से छुटकारा


दोस्तों ,जिंदगी इक संघर्ष है, जिसमे तनाव है समस्याए है और परेशानिया हैं. है ना ?   जिस तरह दूध में मिठास और पानी में शीतलता होती है हम उसे अलग नहीं कर सकते !  उसी तरह जीवन में रोजमर्रा के दवाव ,और परेशानिया भी हमारी जिंदगी का इक हिस्सा हैं ,!अब ये हमारे ऊपर है ,की हम इस को किस नजरिये से देखते हैं, दोस्तों ,   हमारा नजरिया ही है, जो किसी राइ को पहाड़ और पहाड़ को राइ बना देता है,  है ना!


दोस्तों  सोचिये ,यदि हम अपना वाहन (bike,car) चलाते समय सड़क पर हर दूसरे मिनट ब्रेक लगायें ,ये देख कर की सामने कोई पोलीथिन है, कागज का टुकड़ा है ,या सड़क कांच की तरह साफ़ नहीं है, तो हमें हमारे गंतव्य तक पहुंचना बड़ा मुश्किल हो जाएगा, और वाहन का performence भी  प्रभाव्हित होगा !      हमें ब्रेक लगाने की जरुरत वहा ज्यादा होती है, जहा सामने कोई गड्डा हो, पत्थर हो ,कोई  जानवर सामने आ जाये , या कोई अन्य व्यवधान हो, है ना!        दोस्तों जिंदगी भी कुछ ऐसी ही है, यदि हम जिंदगी की हर छोटी से छोटी परेशानी पर परेशां होने लगे, तनाव लेने लगे, जहा जरूरी नहीं है वहा भी अपनी  शारीरिक और मानसिक  उर्जा लगाने लगे तो हमारा वाहन(शरीर) भी समय से पहले ही ख़राब हो जाएगा,और सफ़र भी(जिंदगी का) बड़ा मुश्किल हो जाएगा !        जिस तरह हम सड़क पर सम्हाल कर चलते  हैं, इक निश्चित रफ़्तार से चलते है,  कागज, पोलीथिन इत्यादि को ignore कर के चलते हैं,जहा जरूरी है वहा ब्रेक लगाते हैं, उसी तरह जिंदगी में भी यदि हम व्यवस्थित  चले, छोटी छोटी परेशानियों को ignore करें  जो जरुरी परेशानिया हैं ,रूककर उनका हल ढूंढे !तो जिंदगी कही ज्यादा smooth होगी!


  जिंदगी में ७० से ८० %परेशानिया तो क्षणिक और मानसिक ज्यादा होती हैं  वो समय के प्रवाह में कब विलीन हो जाती हैं  पताही नहीं चलता! दोस्तों एसा कई बार होता है (आपके साथ भी होता होगा )की आज जिस परेशानी को हम हमारा वजूद हिलाने की अनुमति देते हैं, इक दिन बाद उस परेशानी का ही वजूद नहीं रहता,    अब ये हमारे ऊपर  है की हम उन आभासी परेशानियों से द्वन्द युद्ध कर उन्हें अपने पर हावी होने दे, या समय की तेज नदी में उन्हें अपने नजरो के सामने से सहज रूप से निकल जाने दे, क्योंकि समय के अनवरत प्रवाह में वो परेशानी कब ,कहाँ  ग़ुम हो जाएगी हमें पता ही नहीं चलेगा !

 इक बर्फ का बड़ा सा टुकड़ा (परेशानी), अब ये हमारे ऊपर है की हम उसपर अपना सर मार कर खुद को लहू लुहान कर लें ,या थोडा सब्र के साथ उसको पिघल कर पानी बन जाने दें ! लेकिन हां जो परेशानिया वाकई में महत्वपूर्ण हैं हमें शांत मन और स्थिर दिमाग से उनका हल निकालना चाहिये और जिंदगी के सफ़र में आगे बढ़ना  चाहिये !अब ये आपके ऊपर है की छोटी छोटी चीटियों और मक्खियों को मारने मे आप अपनी बन्दुक की कारतूस खर्च करना चाहते है या शेर और हाथी को काबू में करने मे !           डॉ. नीरज 

स्वस्थ रहने के उपाय


स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणम्

 बारिश में भीगकर सर्दी का उपचार कराने से बेहतर है कि  -
बारिश आने के पूर्व ही छाता लगाकर अपना बचाव कर लिया जाए।
रोगी होकर चिकित्सा कराने से अच्छा है कि बीमार ही न पड़ा जाए। आयुर्वेद का प्रयोजन भी यही है। स्वस्थ के स्वास्थ्य की रक्षा एवं रोगी के रोग का शमन। आयुर्वेद की दिनचर्या, ऋतुचर्या, विहार से सम्बन्धित छोटे-छोटे किन्तु महत्वपूर्ण सूत्रों को अपने दैनिक जीवन में सहज रूप से धारण कर हम अपने आपको स्वस्थ एवं निरोगी बनाए रख सकते हैं -

   स्वस्थ रहने के स्वर्णिम सूत्र  

  • सदा ब्रह्ममुहूर्त (पातः 4-5 बजे) में उठना चाहिए। इस समय प्रकृति  मुक्तहस्त  से स्वास्थ्य, प्राणवायु, प्रसन्नता, मेघा, बुद्धि की वर्षा करती है।
  • बिस्तर से उठते ही मूत्र त्याग के पश्चात उषा पान अर्थात बासी मुँह 2-3 गिलास शीतल जल के सेवन की आदत सिरदर्द, अम्लपित्त, कब्ज, मोटापा, रक्तचाप, नैत्र रोग, अपच सहित कई रोगों से हमारा बचाव करती है।
  • स्नान सदा सामान्य शीतल जल से करना चाहिए। (जहाँ निषेध न हो)
  • स्नान के समय सर्वप्रथम जल सिर पर डालना चाहिए, ऐसा करने से मस्तिष्क की गर्मी पैरों से निकल जाती है।
  • दिन में 2 बार मुँह में जल भरकर, नैत्रों को शीतल जल से धोना नेत्र दृष्टि के लिए लाभकारी है।
  • नहाने से पूर्व, सोने से पूर्व एवं भोजन के पश्चात् मूत्र त्याग अवश्य करना चाहिए। यह आदत आपको कमर दर्द, पथरी तथा मूत्र सम्बन्धी बीमारियों से बचाती है।
  • सरसों, तिल या अन्य औषधीय तेल की मालिश नित्यप्रति करने से वात विकार,, बुढ़ापा, थकावट नहीं होती है। त्वचा सुन्दर , दृष्टि स्वच्छ एवं शरीर पुष्ट होता है।
  • शरीर की क्षमतानुसार प्रातः भ्रमण, योग, व्यायाम करना चाहिए।
  • अपच, कब्ज, अजीर्ण, मोटापा जैसी बीमारियों से बचने के लिए भोजन के 30 मिनट पहले तथा 30 मिनट बाद तक जल नहीं पीना चाहिए। भोजन के साथ जल नहीं पीना चाहिए। घूँट-दो घूँट ले सकते हैं।
  • दिनभर में 3-4 लीटर जल थोड़ा-थोड़ा करके पीते रहना चाहिए।
  • भोजन के प्रारम्भ में मधुर-रस (मीठा), मध्य में अम्ल, लवण रस (खट्टा, नमकीन) तथा अन्त में कटु, तिक्त, कषाय (तीखा, चटपटा, कसेला) रस के पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
  • भोजन के उपरान्त वज्रासन में  5-10 मिनट बैठना तथा बांयी करवट 5-10 मिनट लेटना चाहिए।
  • भोजन के तुरन्त बाद दौड़ना, तैरना, नहाना, मैथुन करना स्वास्थ्य के बहुत हानिकारक है।
  • भोजन करके तत्काल सो जाने से पाचनशक्ति का नाश हो जाता है जिसमें अजीर्ण, कब्ज, आध्मान, अम्लपित्त (प्दकपहमेजपवदए ब्वदेजपचंजपवदए ळंेजतपजपेए ।बपकपजल) जैसी व्याधियाँ हो जाती है। इसलिए सायं का भोजन सोने से 2 घन्टे पूर्व हल्का एवं सुपाच्य करना चाहिए।
  • शरीर एवं मन को तरोताजा एवं क्रियाशील रखने के लिए औसतन 6-7 घन्टे की नींद आवश्यक है।
  • गर्मी के अलावा अन्य ऋतुओं में दिन में सोने एवं रात्री में अधिक देर तक जगने से शरीर में भारीपन, ज्वर, जुकाम, सिर दर्द एवं अग्निमांध होता है।
  • दूध के साथ दही, नीबू, नमक, तिल उड़द, जामुन, मूली, मछली, करेला आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। त्वचा रोग एवं ।ससमतहल होने की सम्भावना रहती है।
  • स्वास्थ्य चाहने वाले व्यक्ति को मूत्र, मल, शुक्र, अपानवायु, वमन, छींक, डकार, जंभाई, प्यास, आँसू नींद और परिश्रमजन्य श्वास के वेगों को उत्पन्न होने के साथ ही शरीर से बाहर निकाल देना चाहिए।
  • रात्री में सोने से पूर्व दाँतों की सफाई, नैत्रों की सफाई एवं पैरों को शीतल जल से धोकर सोना चाहिए।
  • रात्री में  शयन से पूर्व अपने किये गये कार्यों की समीक्षा कर अगले दिन की कार्य योजना बनानी चाहिए। तत्पश्चात् गहरी एवं लम्बी सहज श्वास लेकर शरीर को एवं मन को शिथिल करना चाहिए। शान्त मन से अपने दैनिक क्रियाकलाप, तनाव, चिन्ता, विचार सब परात्म चेतना को सौंपकर निश्चिंत भाव से निद्रा की गोद में जाना चाहिए।

मंगलवार, 17 जुलाई 2012

importence of a mentor


                                                                      तस्मै श्री गुरुवः नमः 
दोस्तों वैसे तो गुरु पूर्णिमा ३ जुलाई को निकल गई है ,लेकिन जिस तरह सूरज की importance    को हम किसी एक दिन विशेष मै   नहीं बाँध सकते है !   उसी  तरह माता-पिता और गुरु की महत्ता को भी हम father's day ,mother's day या गुरु पूर्णिमा के दिन उत्सव मना  कर ही नहीं छोड़ सकते!   जिस तरह सूर्य की importance हमारी  पूरी जिन्दगी मै रहती है,  उसी तरह माता,पिता और गुरु की महत्ता और मार्गदर्शन भी हमारी जिंदगी के हर पल मै रहता है!

दोस्तों माता पिता तो हमें भगवान देते हैं,  पर गुरु तो हमे ही बनाना पड़ता है!   गुरु का आशय सिर्फ ये नहीं है की जिनकी बाल दाडी बढ़ी  हो जो किसी आश्रम या कही एकांत मै रहते हो !        गु का मतलब होता है-अन्धकार     और रु अर्थात प्रकाश !      जो इंसान हमे अँधेरे से उजाले ,गलत से सही और   निराशा से विश्वास   की ओर  ले जाए वही गुरु होता है ,ये गुरु अब आपके teacher भी हो सकते हैं,  आपके अच्छे दोस्त,पडोसी,कोई जानवर ,पेड़ नदी या कुछ भी जो आपको कोई दिशा दे ,   वही आपका गुरु होता है !  basically  गुरु एक नाव  की तरह होता है जो आपको  जिंदगी के एक  किनारे से    दुसरे किनारे तक ले जाता है ,  नदी के भंवर मैं आपको बचने की दिशा दिखाता है!

दोस्तों जिंदगी मै गुरु का होना बहुत जरूरी है !   एकलव्य ने भी धनुर्विद्या सिखने के लिए ,  मिटटी के ही सही    पर गुरु बनाये थे !  जब हम किसी tension  या परेशानी मै होते हैं तब गुरु ही हमे उससे बाहर  निकलने का रास्ता दिखाते हैं!   जो लोग ये मानते हैं की हमे जीवन मै किसी गुरु या मार्गदर्शक की जरुरत नहीं है ,  वो उस कार की तरह होते हैं जो यह मानती है की वो बिना ड्राईवर के भी चल सकती है !

एक बार नारद जी   भगवान विष्णु से मिलने गए, बातो बातो मै  भगवन ने नारद जी से  उनके गुरु के बारे मे पूछा   तो नारद जी ने कहा   प्रभु मुझे गुरु की कहा जरुरत है ,  विष्णु जी ने कहा की गुरु तो  बहुत जरूरी होता है,  इसलिए इंसान तो इंसान ,  देवताओं के भी गुरु होते हैं,  फिर आपका गुरु कैसे नहीं है!   नारद जी ने अहंकार भरी वाणी से कहा , मै अपने आप मे सक्षम हूँ  मुझे गुरु की क्या जरुरत है..............!  उनकी दंभ भरी बातो से नाराज होकर विष्णु भगवान ने उन्हे श्राप दे दिया की जाओ और हमारी बनाई  हुई 84 लाख योनियों मे भ्रमण करो  !  ये बात सुन कर नारद जी के पेरों से जमीन निकल गयी  , उन्होंने कहा ,प्रभु एक योनी मे ही 70 -80 साल निकल जाते हैं तब 84 लाख योनियों मै तो ????  और सिर्फ आदमी की योनी ही नहीं सारी योनियों मे से (जिनमे हाथी ,  घोडा कुत्ता बिल्ली पक्षी इत्यादि )मुझे गुजरना पड़ेगा !  उन्होंने विष्णु जी से क्षमा मांगी और इस श्राप से निकलने का उपाय पूछा !   तब विष्णु जी ने कहा की जाओ और जो भी पहला इंसान तुम्हे दिखे उसे अपना गुरु बनाओ !  फिर वही  तुम्हे इससे निकलने का रास्ता दिखाएगा !
नारद जी बड़े मायूस से चल दिए , तभी उन्हें सबसे पहले एक मछुआरा दिखा  जो नदी मे जाल डाल कर मछली पकड़ रहा था !  नारद जी ने जाकर उस मछुआरे से कहा  महोदय क्या आप मेरा गुरु बनना पसंद करेंगे , मै आपको अपना गुरु बनाना चाहता हूँ !  मछुआरे ने नजर उठा कर नारद जी को देखा और कहा ,' जाओ बाबा टाइम खोटी मत करो   मुझे मछली पकड़ने दो !  तब नारद जी ने बड़े ही याचना भरे शब्दों मे अपनी पूरी बात उस मछुआरे को बताई और कहा की मेरे गुरु बन कर अब आप ही मुझे कोई रास्ता दिखा सकते हैं!
तब मछुआरे ने उनका गुरु बनना स्वीकार किया और कहा की देखिये नारद जी , ऐसा है की  अब आप विष्णु जी के पास वापस जाइए  और  उनसे कहिये की प्रभु,  मै आपकी 84 लाख योनियों मे जरूर भ्रमण करूँगा ,  लेकिन पहले मे उन सभी 84 लाख योनियों की जानकारी चाहता हूँ !  मुझे पता तो हो की मुझे किन किन योनियों मे जाना है !   नारद जी ने जाकर विष्णु जी से कहा प्रभु  मैंने गुरु बना लिया है  और उनके कहे अनुसार मै ये जानकारी लेना चाहता हूँ !   भगवान विष्णु मुस्कुराये और उन्होंने 84 लाख योनियों की जानकारी देने वाली अलोकिक  किताब (encyclopedia ) नारद जी को दे दी!  नारद जी उस book को लेकर वापस उस मछुआरे गुरु के पास आये !  और कहा  गुरु जी ये रही 84 लाख योनियों की किताब !  तब उस मछुआरे ने कहा ,' देख क्या रहे हो  इसे जमीन पर रखो  और इसके चारो तरफ भ्रमण करो, इसका एक चक्कर लगाओ , हो गया तुम्हारा 84 लाख योनियों का भ्रमण !   नारद जी ने ऐसा ही किया   और जब वो उस book को वापस लेकर विष्णु जी के पास गए तब उस book   को खोल के देख कर   मुस्कुराते हुए विष्णु जी ने कहा ,  नारद   तुम्हारा तो 84 लाख योनियों का भ्रमण तो  पूरा होगया!नारद जी बहुत खुश  हुए और  उन्होंने गुरु की महत्ता को स्वीकार किया ! 

दोस्तों इस कहानी को कहने का सिर्फ इतना सा ही मकसद है की जिन्दी मे गुरु रुपी torch का होना बहुत जरूरी है !  जिंदगी मे गुरु जरूरी है लेकिन एक सही गुरु को ढूढना ,  वो आपकी काबिलियत है........कहा भी है...
                                        पानी पीजिये  छान कर  और गुरु कीजिये  जान कर