दोस्तों प्रस्तुत article पूज्य गुरुदेव पंडित श्री राम शर्मा आचार्य जी के ज्ञान के अथाह सागर मे से कुछ बूंदें हैं , जो आज की युवा पीढ़ी के द्वन्द को , उनकी पीड़ा को आकार देती हैं , और हमें आत्ममंथन करने को प्रेरित करती हैं --------
समझें युवा मन का दर्द
आज के युवा का दर्द गहरा है ! उनमे कुछ खास करने की चाहत है , वे कुछ खास बनना चाहते हैं, पर किस तरह उन्हें पता नहीं ! उन्हें कोई बताने वाला , राह दिखाने वाला नहीं मिलता ! माँ-बाप अपने बेटे -बेटी को आसमान की बुलंदियों पर देखना चाहते हैं, लेकिन बेटे-बेटी के दिल का हाल जानने के लिए उनके पास वक़्त नहीं है! माँ-बाप की अपेक्षाओं के बोझ तले उनके लाडले -लाडली का मन कितना दबा जा रहा है ,इसकी उन्हें खबर भी नहीं होती !
युवक-युवतियों के इस दर्द की पहली शुरुआत तब होती है , जब वे किशोरवय की दहलीज(teen age ) पर पहला कदम रखते हैं! यहाँ शरीर और मन में परिवर्तनों का दौर होता है ! शरीर की फिजिक्स भी बदलती है और कैमिस्ट्री भी ! परिवर्तन आकृति मे आते हैं और प्रकृति मे भी ! इन परिवर्तनों के साथ मन की चाहतें भी बदलती हैं , कल्पनाओं और इच्छाओ का नया संसार शुरू होता है ! इसे वे बताना तो चाहते हैं ,पर कोई उन्हें सुनने के लिए तैयार नहीं होता है ! हाँ ,बात बात मे अपने माता पिता से ये झिडकियां जरूर सुनने को मिलती हैं -अब तुम छोटे नहीं रहे ,बड़े हो रहे हो ! तुम्हें सोचना -समझना चाहिये , अपनी जिम्म्मेदारी का अहसास होना चाहिये !
जवाव मे वे कहना भी चाहते हैं की माँ मेरी भी कुछ सुन लो , पापा मेरी बात भी सुन लो ! पर उनकी ये आवाज मन के किसी कोने मे ही गूँज कर रह जाती है , उन्हें सुनने वाला कोई नहीं होता !
इसी आयु मे पढाई और कैरियर की दिशा तय होती है ! मेडिकल, इंजनियरिंग, मेनेजमेंट, कंप्यूटर, या फिर अन्य कोई राह! इस दिशा और विषयों के चयन मे बहुत कम माँ-बाप ऐसे होते हैं, जो बेटे -बेटी की रूचि अथवा उसकी आन्तरिक संभावनाओं का ख्याल रखते हैं ! अभिभावकों की दमित आकांशाओ के आधार पर ही तय किया जाता है की क्या पढ़ा जाना है ! युवावस्था की दहलीज मे पाँव रख रहे छात्र -छात्रा तो स्वयं मे भ्रमित होते ही हैं , इसलिए थोड़े विरोध के बाद वे भी अपने अभिवावकों की बात स्वीकार कर लेते हैं , आखिर उन्ही के पैसों पर उनको जिंदगी जो जीनी है!
यहीं से शुरू होता है बेमेल जीवन का दर्द ! रूचि, प्रकृति एवं संभावनाओं के विपरीत पढ़ाई का चयन युवाओं मे कुंठा को जनम देता है ! मन का मेल ना होने से इस पढ़ाई मे स्वाभाविक ही उन्हें कम अंक मिलते हैं ! तब उन्हें सुननी पड़ती है - अभिवावकों से कड़ी फटकार ! सुनने को मिलते हैं अपने नाकारा होने के किस्से ! बार-बार की जाती है ,उनकी सफल ? लोगों से तुलना ! कभी कभी तो उनके मन में अपने अभिभावकों के प्रति गहरा डर समां जाता है ! वे फिर कतराते और कटते हैं उनसे ! साथ ही उनके मन में गहरी होती जाती है निराशा और चिंता ! कहीं किसी गहरे कोने मे बनती है --गाँठ, अपराध बोध की !
इस अवस्था मे युवा भावनात्मक रूप से अपने को बहुत अकेला पाते हैं ! उन्हें तलाश होती है अपनेपन की , पर ये मिलता नहीं ! घर मे उनकी भावनाओ से कोई सरोकार नहीं रखता और बाहर कॉलेज मे किसी को उनकी निजी जिंदगी या उनके मन की उलझनों से कोई मतलब नहीं होता ! कुछ कहने या बताने पर व्यंग , उपहास या धोखा ही उनके पल्ले पड़ते हैं ! इन्ही वजहों से युवाओं मे व्यावहारिक मनोविक्रतियाँ और मनोरोग जन्मते हैं!
विजन इंडिया की टीम ने I.I.T. ,I.I.M. समेत देश के कई संस्थानों का सर्वेक्षण किया , उनकी कोशिश थी आज के युवा के दर्द को उसके मन की पीड़ा को जाना जाये ! यह अध्ययन 20 से 25 वर्ष की आयु वर्ग पर किया गया ! नतीजे चोंकाने वाले रहे ! हेरानी की बात यह थी की सफल-असफल दोनों ही तरह के युवा किसी ना किसी छटपटाहट से गुजर रहे थे ! दोनों का ही दर्द एक सा है ! उनका दर्द है ---- अपनेपन के अभाव का दर्द , उनको ना सुने , ना पहचाने जाने का दर्द ! माँ-बाप ,रिश्तेदार ,शिक्षक और पुस्तकें जो भी होता है , आदर्शों की सीख देने से नहीं चूकता , पर इस मन का क्या करें ,जहाँ आदर्श की नहीं , सुख की चाहत पैदा होती है ! कोई हमें बताये तो सही की हम उलझनों से कैसे बाहर निकलें !कोई हमे सुनने वाला तो हो दिल से !
दोस्तों किशोरावस्था से लेकर युवावस्था का काल महत्वपूर्ण है, इसमें जरूरत भावनात्मक गुत्थियों को सुलझाने की है ! इस उम्र मे भावनाओं और संवेगों का उफान अपनी पूरी ऊंचाई पर होता है , मन मे बहुत कुछ होता है , जो वो बताना चाहता है जानना चाहता है समझाना चाहता है ! बहुत सारी बातें है जो उसे परेशान करती हैं , शारीरिक ,मानसिक परिवर्तनों की अवस्था से मन मानसिक और भावनात्मक रूप से वडा उद्वेलित होता है ! बहुत सारे सवाल होते हैं , जिनका जवाव वो पाना चाहता है ! पर किससे? माता पिता को उसके भावनात्मक उफान का अंदाजा नहीं होता , नहीं उन्हें इतना समय होता है की भावना के इस अनदेखे भंवर से वो अपने बच्चे को सकुशल बाहर निकालें! माता पिता अपने बच्चों के लिए हर साधन सुविधा जुटाते हैं , उन्हें हर भोतिक चीज मोहिया कराते हैं ! उनको समय ना दे पाने की अपनी ग्लानी को महंगे उपहार देकर मिटाते हैं ! लेकिन नहीं दे पाते तो उनको सिर्फ थोडा सा अपना भावनात्मक समय , जिसके लिए युवा जल बिन मछली की तरह तड़पता है ! जब मन के वेगों का निराकरण अभिभावक से नहीं हो पाता तब युवा अपनी शारीरिक और भावनात्मक समस्या को अपने हम उम्र दोस्तों से शेयर करता है !
लेकिन जिस तरह एक अँधा व्यक्ति दुसरे अंधे व्यक्ति को क्या रास्ता दिखाएगा, उसी तरह एक भ्रमित युवा , दुसरे भ्रमित युवा को भी क्या रास्ता दिखा सकता है ! यही से शुरू होता है ,युवा के भावनात्मक और कभी कभी शारीरिक शोषण का दौर ! समाज मे फेले हुए भेड़ की खाल मे भेड़िये इस अवस्था का पूरा फ़ायदा उठाते हैं ! युवाओं को शारीरिक और भावनात्मक रूप से गलत राह पर चला देते हैं ! इक चिंगारी जो माँ-बाप के संबल और प्रोत्साहन रुपी इंधन से आग बन सकती थी , उसे अपनी गलत इरादों के पंखे से हवा कर बुझा देते हैं !
जरूरत है आज के युवा को भावनात्मक रूप से समझने की , उसे संबल देने की ! उसके मन की गांठों को खोलने की ! आप एक बार अच्छे दोस्त की तरह अपने बच्चे से दिल से बात तो कीजिये , फिर देखिये कैसे वो अपने मन की परतों को खोल कर आपके सामने रखता है !