व्यवहारिक भी बनिए.....
दोस्तों ,
जिंदगी में ऐसा अधिकतर होता है की हम किताबी ज्ञान तो बहुत पा लेते हैं ,लेकिन जिंदगी का व्यावहारिक ज्ञान पाने में पीछे रह जाते हैं ! सिर्फ बड़ी बड़ी डिग्री लेने से ही हम हमारे जीवन में सफल नहीं हो सकते , जब तक की हमें छोटी छोटी लेकिन जरूरी चीजों की जानकारी न हो ! इसमें कोई दो राय नहीं की किताबी ज्ञान भी जरूरी है ,बिलकुल है , लेकिन उससे कहीं ज्यादा जरूरी व्यवहारिक ज्ञान है !
अब आप कहेंगे की हमारे पास बड़ी डिग्री है रुतबा है power है हम किसी से भी अपने काम करवा सकते हैं , नोकरों की एक पूरी फ़ौज है हमारे पास ! हमें काम करने की कहाँ जरुरत है ?
दोस्तों हम दूसरे की नाव पर पाँव रख कर अपनी जिंदगी नहीं गुजार सकते ! या हमारी नाव की पतवार भी किसी दुसरे को नहीं दे सकते ! अगर हम हर काम के लिए दूसरों पर आश्रित हो जाएंगे तो एक पंगु की तरह हो जाएंगे ,जो किसी दुसरे के सहारे के बिना नहीं चल सकता ! हो सकता है की हम कभी किसी ऐसी परिस्थिति में फँस जाएँ ,की जहाँ कोई दूसरा हमारी सहायता न कर पाए ,तब हमें ही अपनी सहायता करनी पड़ती है ! आप अकेले अपनी गाडी चला रहे हों और सुनसान रास्ते पर आपका टायर पंक्चर हो जाए ,कोई मेहमान रात में आ जाए और चाय के लिए दूध न हो और नोकर भी जा चुका हो ! कोई बोल्ट कसना हो ,या नल टपकने लगे ,कोई बल्ब लगाना हो या चाय ही बनानी हो ,लाइट का फ्यूज बांधना हो ! कहने का आशय है की जितना हमारा व्यवहारिक ज्ञान होगा उतना ही हमारी जिंदगी आसान और सहज होगी !
एक प्रकांड पंडित जी को नदी पार करनी थी ,शाम का समय था ! सारे दूसरे मुसाफिर पार जा चुके थे ! अकेले पंडित जी को लेकर मल्लाह नाव नदी में छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुआ ! पंडितजी ने कहा ,'सुन भाई , तेरी मजदूरी से ज्यादा दूंगा और 2 अनमोल उपदेश भी मुफ्त में दूंगा ! मल्लाह राजी हो गया ! नाव चलने लगी तो पंडित जी ने उससे पुछा --कुछ पूजा पाठ करते हो क्या ? मल्लाह ने कहा --नहीं महाराज !
तब तो तुम्हारा एक चोथाई जीवन व्यर्थ हो गया ,पंडितजी बोले !
थोड़ी देर बाद जब नाव नदी के बीच में थी तब फिर सवाल किया ,---कुछ पढ़े लिखे भी हो क्या ?
नहीं महाराज ,बिलकुल नहीं पढ़ा लिखा ' मल्लाह ने बेचारगी से कहा !
अरे ,तब तो तुम्हारा दो तिहाई जीवन बेकार चला गया !
तभी अचानक नाव किसी चट्टान से टकरा कर टूट गई ! पंडित जी डूबने लगे !मल्लाह बोला --महाराज ,तैरना जानते हो ?
पंडित जी घबरा कर बोले --नहीं
"तब तो महाराज अभी आपका पूरा जीवन ही बेकार चला गया होता "! मल्लाह ने उन्हें नदी से बाहर निकालते हुए कहा !
पंडित जी को अब व्यवहारिक ज्ञान की कीमत समझ आ गई थी !
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