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मंगलवार, 28 अगस्त 2012

कैसे हासिल करें अपने जीवन का लक्ष्य





  कैसे हासिल करें अपने जीवन का लक्ष्य 

दोस्तों  पिछले artical  क्या है आपके जीवन का लक्ष्य ?  मे हमने जीवन के लक्ष्य के बारे मे जाना !  दोस्तों जीवन का लक्ष्य decide करना एक बात है और उसे सही तरीके से achieve करना बिलकुल दूसरी बात है !  हम जिंदगी मे goals तो decide कर लेते हैं पर उन्हें पाने का तरीका सही नहीं होता है  कई बार जाने अनजाने हम कुछ कमियां अपने लक्ष्य को पाने के प्रयास मे छोड़ देते हैं   जिससे हम  लक्ष्य के पास पहुँच कर भी उसे प्राप्त नहीं कर पाते  !

आइये जानते है वो बिंदु जिन्हें अपना कर हम अपने लक्ष्य  को आसानी से और पूरी तरह से पा सकते हैं ------

कैसे करें लक्ष्य निर्धारण ------
  • विवेक से ,सोच समझ कर अपना लक्ष्य चुनें ----ऐसा अधिकतर होता है की किसी और की सफलता से प्रभावित होकर हम उस  जैसा बनने का निर्णय लेते हैं जो की सही नहीं है ! हमे अपनी क्षमता  ,स्थिति  ,परिस्थिति और रूचि के हिसाब से लक्ष्य चुनना चाहिये !    एक  ऊँट का लक्ष्य तेज गहरी नदी को खड़े खड़े पार करना हो सकता है,  लेकिन वही  लक्ष्य एक  हिरन या लोमड़ी का नहीं हो सकता !  है ना?                                                                                                                         
  • लक्ष्य पर चट्टान की तरह अडिग रहे----  main   लक्ष्य वो होता है जो एक बार ठान लिया तो फिर ठान लिया !  उसे पाने से दुनिया की कोई भी ताकत  या प्रलोभन आपको विचलित नहीं कर सकती !                                                 लेकिन अफ़सोस हम मे   से अधिकतर  लोगों के लक्ष्य चट्टान की तरह दृढ  (rigid) नहीं , रूई की तरह ढुलमुल होते हैं , जो किसी अन्य व्यक्ति के प्रभाव की जरा सी हवा से अपना स्थान बदलते रहते हैं!      ऐसा अधिकतर होता है कि  किसी हीरो को देख कर हम हीरो बनना चाहते हैं  एक्टिंग करने की कोशिश करते हैं !  तभी किसी पहलवान को पदक जीतते देख हम उससे impress हो जाते हैं और फिर एक्टिंग  सीखना छोड़    दंड पेलने (exercise करने) पर ध्यान देने लगते हैं !  किसी दिन किसी IAS  select student   का interview देख ,  उसके रुतबे से प्रभावित हो   कसरत छोड़  किताब मे अपना ध्यान लगाने लगते हैं !  फिर कुछ दिनों बाद कोई नया आकर्षण हमे आकर्षित कर लेता है !  होता है ना दोस्तों?  अधिकतर ऐसा ही होता है !                                                                                                                                 जमीन से पानी पाना अगर लक्ष्य है तो खुदाई तो एक ही जगह और गहराई से ही करनी पड़ेगी    ना की छोटे छोटे गडडे   बहुत सारी    जगह !   है ना  
  • ब्रह्मास्त्र  ना चलायें  -----ऐसा अधिकतर होता है की या तो हम जिंदगी मे कोई लक्ष्य  निर्धारित ही नहीं करते ! और    जब करते हैं तो इतने सारे goals    एक साथ निर्धारित कर लेते हैं की prectically   वे पूरे ही नहीं हो सकते !                                                                                                                   for example----हम बहुत आराम से अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं!  मौज-मस्ती ,घूमना -फिरना, खाना -सोना , कोई फिक्र नहीं कोई लक्ष्य नहीं ,बस पानी मे बहते हुए तिनके की तरह रीढ़  विहीन जिए जा रहे हैं ! लेकिन किसी दिन माँ -बाप की फटकार या  किसी motivational   article  को पढ़ कर या कोई मूवी देख कर अचानक आपका आत्मविवेक  जागता है ! आपका पोरुष आपको ललकारता है !  दूध मे आये उफान की तरह आप एकदम से उठ खड़े होते हैं  और फिर आप संकल्प करते हैं की मुझे जिंदगी मे बहुत कुछ पाना है !  (अब जरा ध्यान दें )  फिर आप एक कॉपी पेन लेकर धीर गंभीर मुद्रा मे अपनी टेबल पर बैठते हैं  बहुत सोचते हैं और कागज पर अपने लक्ष्यों को लिखना शुरू कर देते हैं !  कहाँ तो आपकी जिंदगी का एक भी लक्ष्य नहीं होता और कहाँ आप लक्ष्यों की पूरी रामायण तैयार कर लेते हैं !  आप अपने लक्ष्यों की लिस्ट बनाते हैं--------
  • कल से   सुबह जल्दी उठना
  • रोज exercise करना 
  • हर काम regular  और time से पूरा करना 
  • english spoken  ( ये हम में से अधिकतर लोगों की ख्वाहिश होती है, और ख्वाहिश ही बनी रह जाती है )  सीखना 
  • dance  class  join करना
  • गिटार  बजाना सीखना 
  •  gym जाना ,बॉडी बनाना(for boys)-ये बात अलग है की gym की फीस तो हम पूरे month की देते हैं , पर जाते अधिकतर 4 या 5 दिन ही हैं , है ना  वैसे ये सब पर लागू नहीं होता है  पर अधिकतर पर तो होता ही है !
  • cookery  classes join करना (for  girls)
  • पढाई मे टॉप आना 
  • daily  का टाइम -टेबल बनाना ................................................                                                                                 
हंसिये मत दोस्तों , आप और मै   हम सब अधिकतर ये ही करते हैं , है ना?
या तो हम बिलकुल ही ढीले ढाले रहते हैं या फिर एकदम से अपने आप को कसना शुरू कर देते हैं !

ये तो आप सब भी जानते है की जीवन एक वीणा या सितार की तरह होता है , इसके तारों को अगर ढीला छोड़ दिया जाए तो सुर ही नहीं निकलेंगे और जरूरत से ज्यादा कस  देंगे तो तार ही टूट जाएँगे !

अब आप बड़े उमंग से अपने इन सब लक्ष्यों को पाने का प्रयास करने लगते हैं लेकिन 4-6-10 दिन करने के बाद आपका मनोबल कम होने लगता है ,दूध का उफान ठंडा पड़ने लगता है  और पुनः आप मेढक की तरह महीनो  के लिए अपने लक्ष्य से दूर  आलस्य और लापरवाही की शीत निद्रा मे चले जाते हैं , है ना?
फिर कभी कोई आपको झकझोरता है और फिर वही दूध का उफान !  और ये ही क्रम चलता   रहता है और ये सोने   जागने मे ही  बिना कुछ ख़ास हासिल किये जिंदगी निकल जाती है !  इस बारे मे जरा सोचिएगा ?            
  • लक्ष्य प्राप्ति हेतु निरंतरता बनाये रखें----goal  को पाने के लिए मेहनत  से ज्यादा जरूरी है निरंतरता (continuity ) का होना !      नियमितता और निरंतरता (regularity and  continuity)  ये दो पहिये हैं ,जिन पर चढ़ कर आप अपने लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं !  अगर आपका लक्ष्य बॉडी-बिल्डर बनना है तो daily नियम से सही खाना  खुराक और exercise करना ही पड़ेगा !  ऐसा बिलकुल नहीं चलेगा  की 2 दिन तो खूब दूध बादाम ,केला exercise  और फिर 8 -10  दिन laziness.  फिर वापस दूध बादाम !  ऐसे लक्ष्य नहीं पाए जा सकते !  धीरे धीरे ही सही पर निरंतरता से अगर काम करेंगे तो ही अच्छे से पूरा होगा !  कहा भी है ------- slow and steady wins the race .
  • सिस्टम से चलें ------ दोस्तों हम लक्ष्य तो बना लेते हैं , वे हमे दिखते  भी हैं  पर उन तक पहुँचने का हमारा तरीका सही नहीं होता , इसलिए भी हम अपने लक्ष्यों को नहीं प्राप्त कर पाते !   आपने कचरा बीनने वाले बच्चे देखे होंगे , वे कचरा बीनते समय बीच ढेर पर दिखती कोई काम की चीज पर सीधे हाथ नहीं मारते !  वे system से एक कोने से कचरा बीनना  शुरू करते हैं और धीरे धीरे अपने उस लक्ष्य तक पहुँच जाते हैं !    सीढ़ी   दर सीढ़ी  चढ़ेगे   तो छत पर पहुँच ही जाएंगे !
  • लक्ष्य हमेशा अपनी नजर, अपनी सोच  के सामने रखें -------- दोस्तों एक कहावत है --out of sight,out of mind .                  नजर से दूर तो मन से दूर है ना?           ऐसा अधिकतर होता है की जो इंसान , वस्तु    पाठ ,विचार हमारी नजर से दूर होता है उसे धीरे धीरे हम भूलने लगते हैं !         आपकी नजर और आपके दिमाग मे हमेशा वो लक्ष्य स्पष्ट  होना चाहिये जो आप पाना चाहते हैं !
आप ऐसे  जानवर पर निशाना नहीं लगा सकते  जिसे आप देख ही ना पा   रहे हों !
जिस प्रकार नदी या समुद्र मे हजारों जहाज बहते जाते हैं और किनारे पर उन्हें बांधे रखने के लिए लंगर डालना पड़ता है !  उसी तरह आपके मन और दिमाग से अनेक विचार लगातार निकलते रहते हैं , उन विचारो की बाढ़ मे आपका लक्ष्य रुपी विचार भी ना बह जाए ,  इसके लिए जरूरी है की आप उस विचार को लंगर डाल  कर अपने मन के किनारे पर बाँध लें  ताकि वो आपको लगातार दिखता  रहे !

एक कागज़ पर अपना लक्ष्य लिखें  और अपने बिस्तर  के पास या mirror के पास चिपका लें !  दिन मे जितनी बार आप उस कागज को देखेंगे आप उस लक्ष्य को पाने के लिए motivate होंगे !

दोस्तों ये आर्टिकल लिखा मैंने है पर मुझे लगता है की ये लागू हम सब पर ही होता है ! है ना ?
अगर आप मुझसे सहमत हों तब भी और असहमत हों तब भी अपने कमेंट्स से जरूर वाकिफ कराइएगा! 
Thanks


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रविवार, 26 अगस्त 2012

क्या है आपके जीवन का लक्ष्य ?




                                       क्या है आपके जीवन का लक्ष्य ?


दोस्तों,जब से हमे जिंदगी मे समझ आती है,   तब से हम ये बातें अपने बड़ों से या आसपास के लोगों से अक्सर सुनते रहते हैं,  "जिंदगी का कुछ लक्ष्य बनाओगे या ऐसे ही जिंदगी गुजार दोगे?    जब देखो जब,   दिन भर  समय बर्बाद करते रहते हो   लगता है तुम्हारी जिंदगी का कोई लक्ष्य ही नहीं है?

दोस्तों,  उस परमशक्ति ने हमे इस संसार मे भेजा है तो किसी मकसद से ,  किसी लक्ष्य को पाने के लिए !   हम इस धरती पर केवल  घूमने-फिरने ,खाने -पीने या  सिर्फ बच्चे पैदा करने के लिए ही नहीं आये हैं !  जरा सोचिये असंख्य योनियों मे से उस परमात्मा ने हमे ही इस सुर दुर्लभ मानव जीवन के लिए क्यों चुना है?   हमे ये  मनुष्य जन्म मिला है  कुछ हासिल करने के लिए , जिंदगी का लक्ष्य पाने के लिए!

जीवन का लक्ष्य आखिर है क्या ?   इस एक सवाल के असंख्य जवाव हैं  और बहुत गूढ़ और गहरे जवाव भी हैं !   जिनके बारे मे चर्चा हम आगे किसी लेख मे करेंगे !
जीवन के लक्ष्य अधिकतर 2 तरह के होते हैं--
1 .भोतिक लक्ष्य (physical goals )--  गाडी,बंगला,IAS या बड़ा आदमी बनना ,femous होना rich होना ,खूब नाम कमाना वगेरह 
2 .आध्यात्मिक लक्ष्य (spiritual goals )--  मै क्या हूँ? मेरा अस्तित्व क्यों है ?  ,अपने आप को अपनी आत्मा को जानना     इस संसार के उथल पुथल से दूर अपने आत्मतत्व को जानना ,  उस परम सत्ता को जानना ,जिससे सारी universe और हम बने हैं!
यदि हम भोतिक रूप से इस जीवन के लक्ष्यों की बात करें तो जिंदगी मे मोटे तोर पर 2 तरह के लक्ष्य होते हैं --
1 . मुख्य लक्ष्य (major aim )-वो लक्ष्य जो आपकी जिंदगी की दिशा  को निर्धारित करते हैं ,  या यो कहें की जो आप जिंदगी मे बनना या पाना चाहते हैं! 
2 . गौण लक्ष्य (minor aim )--वे लक्ष्य जो मुख्य लक्ष्य को पाने के सफ़र मे सहायक होते हैं,  जिन्हें achive कर आप अपने मुख्य लक्ष्य तक पहुँच जाते हैं!
for example   delhi से mumbai तक चलने  वाली ट्रेन का मुख्य लक्ष्य तो मुंबई ही है   पर रास्ते मे आने वाले मथुरा,भरतपुर,कोटा अहमदाबाद इसके  गौण लक्ष्य हैं ,  जिनको पाए बिना ट्रेन अपने destination तक नहीं पहुँच सकती !  है ना?
मान लीजिये बचपन मे   आपने अपना major goal deside किया था की   आपको बड़ा होकर एक femous ,successful doctor बनना है !इसके लिए आप अब जो छोटे या secondery लक्ष्य निर्धारित करेंगे वो ऐसे होने चाहियें  जो आपके मुख्य लक्ष्य को पाने मे मददगार हों !      जैसे -science मे intrest लेना ,medical releted programme देखना ,optional subject science लेना,PMT की तैयारी करना ,medical college मे पढ़ना ,MBBS की degree लेना !
ये सब गौण लक्ष्य मिल कर फिर आपके main लक्ष्य  (be a femous doctor)  को पाने मे मददगार होंगे !

अगर fit,young and atrective body पाना आपका main goal है तो आपके minor goal होने चाहियें --
  • सुबह जल्दी उठाना
  • regular exercise ,yoga ,प्राणायाम करना 
  • nutritional food लेना 
  • active रहना 
  • आलस ना करना 
  • workout करना etc.
minor goals को आप minor नहीं मान सकते   ये अपने आप मे main  goal जितने ही important होते हैं !
हम सब अपनी जिंदगी मे कुछ ख़ास बनना चाहते हैं ,कुछ बड़ा लक्ष्य पाना चाहते हैं ,पर इस लक्ष्य निर्धारण मे हम कुछ जल्दीबाजी और कुछ गलतियाँ कर जाते हैं ,  जिससे चाह कर भी हम हमारे लक्ष्य तक पूर्ण रूप से नहीं पहुँच पाते !

मुगलों के विरुद्ध युद्ध से थके और भूखे वीर शिवाजी एक बार जंगल मे एक  बुढिया   की झोपडी मे गए और खाने पीने की याचना करने लगे !  बुढिया   ने प्रेम पूर्वक खिचड़ी बनाई और पत्तल पर परोस दी ! शिवाजी बहुत भूखे थे ,  इसीलिए खाने की जल्दी मे अपनी उँगलियाँ जला बेठे ! बुढिया   ने देखा और बोली,"सिपाही तेरी शक्ल शिवाजी जैसे लगती है   और जो गलती शिवाजी करता है वही गलती तू भी कर रहा है !
शिवाजी ने पुछा ,  मै और शिवाजी क्या गलती कर रहे हैं ?
बुढिया  ने कहा .'तुने किनारे किनारे की ठंडी होती हुई खिचड़ी खाने की अपेक्षा गरम खिचड़ी के बीचो बीच के हिस्से को पहले खाना चाहा और अपनी उंगलिया जला लीं ,  यही बेअक्ली शिवाजी भी करता है वो दूर किनारे पर बसे हुए छोटे किलो को जीत कर अपनी शक्ति बढ़ाने की अपेक्षा सीधे बड़े किलों पर धावा बोलता है और मात खाता है !
शिवाजी को अपनी रणनीति की विफलता का कारण पता चल गया !  उन्होंने बुढिया   की सीख मानी,  और पहले छोटे छोटे लक्ष्य बनाये और उन्हें हासिल किया !   छोटी छोटी सफलता पाने से उनकी शक्ति बड़ी और अंतत बड़ी विजय पाने मे वो सफल हुए !
इसलिए दोस्तों जीवन मे एक बड़ा लक्ष्य बनाइये  फिर उसे छोटे छोटे लक्ष्यों मे बाँट लीजिये !  फिर जुट जाइए अपने लक्ष्य की प्राप्ति मे !
एक बड़े तरबूज को आप एक बार मे नहीं खा सकते   लेकिन उस के छोटे छोटे टुकड़े कर आप उस तरबूज को आसानी से खा सकते हैं ,है ना?

अगले आर्टिकल कैसे हासिल करें अपने जीवन का लक्ष्य मे हम देखेंगे वो तरीके जिनको अपना कर हम अपने लक्ष्य को पा सकते हैं ,वो कमजोरियां जो हमे हमारे लक्ष्य प्राप्ति मे रूकावट हैं उन्हें कैसे दूर कर सकते हैं !
Thanks..

शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

अच्छी सेहत का राज ...




                                              अच्छी सेहत का फ़ॉर्मूला 

दोस्तों    शायद  आप सोच रहे होंगे की इस artical मे आपको मै   कुछ 2 +2 =4 जैसा सीधा तरीका बताने वाला हूँ ,  सेहत के लिए ,  है ना ? 
चलिए ,सेहत का नुस्खा जानने के पहले हम ये तो जान लें ,  की सेहत या स्वास्थ्य (health ) की परिभाषा क्या है ?   आप किसे स्वस्थ मानेंगे ?किसी bodybuilder को,   किसी हीरो को,   कोई गोरा इंसान ,   कोई बहत सुंदर  महिला ,  कोई femous person ,  कोई अमीर या कोई पहलवान ?
दोस्तों ये सारे आधार सफलता के हो सकते हैं सेहत के नहीं !

आयुर्वेद के  शब्दों मे   स्वस्थ वही है   जिसकी अग्नि सम है ,सारे system     (heart ,kidney ,lungs ,stomach  etc .)   सही काम कर  रहे हैं ,समय से भूख , समय से motion , समय से सही नींद जिसे आती है !   जिसकी आत्मा ,मन और 10 इन्द्रियां प्रसन्न है ,  मतलब देखना,सुनना,बोलना,सूंघना सांस लेना ,महसूस करना वगेरह ,जिसका सही है वही स्वस्थ है !
संपूर्ण स्वस्थ्य वही है   जो ना सिर्फ शरीर  से बल्कि मन से भी स्वस्थ है !   ऐसे लोग आपको अक्सर दिख जाएँगे जो दिखने मे तो पहलवान हैं पर मन से बड़े कमजोर  हैं ,  depressed हैं !   ऐसे लोग भी स्वास्थय की सीमा मे नहीं आते हैं !
चलिए ,  अब बात करते हैं अच्छी सेहत के formule की .....

जिस तरह एक तिपाई (स्टूल)   तीन पैरों पर टिका होता है ,  उसी तरह आपकी health भी स्टूल की तरह इन तीन   पैरों पर टिकी होती है ,  ये हैं ---

1 .  आहार ,भोजन (food )            2 व्यायाम,कसरत (exercise )            3 आराम ( rest ,comfort )

अच्छी सेहत के पेपर को हम 100 numbers  का मान सकते हैं , जिसमे  आहार ,व्यायाम और आराम  इन तीनो sections को हम 30 -30 numbers का मान सकते हैं  ,   बचे हुए 10 no.   grace  के  (medicins etc .) लिए रख सकते हैं !

health के पेपर मे पास होने के लिए तीनो section मे अलग अलग पास होना जरूरी है   तभी totally उसे पास माना जाएगा !   लेकिन दोस्तों होता ये है   की भोजन के section मे तो हम 30 मे से 28 no.  ले आते हैं ,  लेकिन व्यायाम और आराम के section मे 4 या 5 से ज्यादा no.    नहीं ला पाते ,   इसीलिए intotal हम health के पेपर मे अधिकतर   फ़ैल ही हो जाते हैं ,  या supplementery लाते हैं ,  फिर वो जो 10 marks  ग्रेस के हैं   मतलब medicins ,injections ,doctor etc .  उनकी सहायता से फिर हम health के passing marks ला पाते हैं !,है ना?

36 % से पास होने वाला और 90 -95 % से distinction लाने वाले मे जो अंतर होता है   वही अंतर एक healthy और बीमार मे होता है !   और आप जानते हैं की जब numbers बहुत ही कम हों  तो paasing marks (doctors ,medicines ) भी उसे पास नहीं करा सकते ,  वो तो फिर फेल ही होता है finally !
 चलिए  अब इन तीनो के बारे मे भी थोड़ी सी चर्चा  कर ली जाए ------

!. भोजन (food )--   जिस तरह किसी कार का भोजन पेट्रोल होता है जो उसे चलने की energy देता है ,  उसी तरह हमारा खाना हमारी इस machine (बॉडी) को चलाने   की energy देता है !   आप भी जानते हैं की पेट्रोल जितनी बढ़िया quality (speed वाला,)    का होगा उतनी ही ज्यादा milege देगा और  engine  भी उतना ही सही रहेगा .वहीँ  घांसलेट मिला हलकी quality का पेट्रोल गाड़ी की milege और life दोनों कम कर देगा !        उसी तरह बढ़िया ,healthy ,neutritious food आपको healthy और fit रखेगा !   
लेकिन यहाँ मै   एक बात कहना चाहुंगा ,  की  शुरू से ही  खाना हम 2 कारणों से लेते हैं  -----1 .शक्ति (energy ) के लिए और 2 . स्वाद (teste ) के लिए ..
शक्ति और स्वाद की कुश्ती मे ,  अधिकतर जीतता   स्वाद ही है ,  है ना ? और स्वाद ,अपने २ सेकंड   के स्वाद के लिए हमे वो चीजें भी खिला देता है   जो हमारे लिए कही से भी फायदेमंद   नहीं हैं !  (pizza ,burger ,junk फ़ूड, spicy ,cold drink ,drink .............)

२.व्यायाम (exercise )----  ये किसी भी रूप मे हो सकती है ,योग,एरोबिक्स,प्राणायाम,morning walk ,jogging ,इत्यादि !
व्यायाम उस police की तरह है  जो सारे शहर    मे मुस्तेदी से गस्त  करती है और कही भी चोर ,बदमाशो का अड्डा नहीं बनने देती !   उसी तरह exercise आपकी body को rhythm  मे ,tone मे   रखती है ,  और मोटापा,B.P.आलस्य    जैसी बिमारियों को शारीर से दूर रखती है ! 
जिस तरह इक शर्ट iron (प्रेस) करने के बाद ही चमकती  है   और सलवट से रहित   सुंदर दिखती है ,  उसी तरह exercise आपकी body को fit  रखती है रिंकल्स देर से पड़ते हैं और बॉडी ग्लो भी करती है !

3 . आराम (rest )--   यहाँ मै आराम की बात कर रहा हूँ   आलस की नहीं !   दिन भर  जीतोड़   मेहनत करने के बाद  जो किया जाता है वो आराम है   और सुबह उठने के बाद जो सज्जन  बिना कुछ किये ही थक    जाते हैं ,  वापस बिस्तर    की शरण मे चले जाते हैं ,वो आलस है ना की आराम !
कोई भी मोटर या मशीन ज्यादा देर लगातार चलाने  पर गरम होकर  ख़राब हो सकती है   इसीलिए बीच बीच मे उसे बंद कर के  आराम देते हैं ,उसी तरह दिन भर ,लगातार शारीर और मन से थकने के बाद हमे भी हमारी मशीन को ठंडा ओर repair करने के लिए आराम की जरूरत होती है !      परमात्मा ने  दिन काम के लिए और रात आराम के लिए बनाई है ! 
तो दोस्तों अगर हमे वाकई मे healthy रहना है तो हमे अपने health के तीनो पेरों को मजबूत रखना पड़ेगा !

अपने कमेंट्स से जरूर वाकिफ कराते रहिये !


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बुधवार, 22 अगस्त 2012

Be humble........


      विद्वान ही नहीं विनम्र भी बनें .....

दोस्तों,   ऐसा अधिकतर होता है  की हम अपने ज्ञान के अहंकार मे अपने आप को सामने वाले से श्रेष्ठ  समझने लगते हैं !   हमे लगता है की हम ही ज्ञानी हैं ,  बाकी लोगों मे हम जैसा ज्ञान कहाँ !   कुछ इंसान ये सोचते हैं की पूरी दुनिया मे 1 .5  अक्ल   (mind ) है   जिसमे से 1 उसके और बाकी आधी  सारी दुनिया के पास है !  मै यहाँ सब इंसानों की बात नहीं कर रहा ,लेकिन अधिकतर लोग इसी category  मे  आते हैं  जो अपने आगे किसी की सुनते ही नहीं !   विश्वास ना हो तो अपने आस पास देख लीजिये ,  आपको अनेक field के कई expert मिल जाएंगे   जो अपने ज्ञान के मद मे आपसे बात करना तो दूर आपको अनदेखा कर देंगे !   है ना ?   एक कहावत है की   चूहे को हल्दी की गाँठ मिल जाए तो वो अपने आप को पंसारी समझने लगता है !  या फिर थोथा चना बाजे घना !    लेकिन कभी कभी ये सीख इसलिए भी अनिवार्य हो जाती है की इंसान अपने व्यर्थ के अहंकार मे ,अपनी knowledge के मद मे चूर भूल जाता है  की वह अभी अपूर्ण है ! 

उज्जैन के महाकवि माघ को अपने पांडित्य का बड़ा अभिमान था !   अधिकतर उनके आचरण से उस अहंकार की झलक भी मिलती रहती थी, पर उनको छेड़ने का किसी को साहस नहीं होता था !
एक बार माघ   राजा भोज के साथ वन से लोट रहे थे !   रास्ते मे एक  झोपडी पड़ी ,  एक  वृद्धा  उसके पास बेठी चरखा काट रही थी !  माघ नें    अपने अहंकार को दिखाते हुए  पुछा ,'   यह रास्ता कहाँ जाता है ?   उस वृद्धा ने माघ को पहचान लिया और हंसकर बोली   ,'बेटा ,रास्ता कहीं नहीं आता जाता !   उस पर आदमी आया जाया करते हैं !    आप लोग कौन  हैं ?             ' हम यात्री हैं '-माघ ने कहा ! 
मुस्कुराते हुए उस वृद्धा ने कहा,   यात्री तो सूर्य और चन्द्रमा  2  ही हैं !      आप लोग कौन  हैं ?    माघ थोडा चिंतित होकर बोले-- ,माता ,हम क्षण भंगुर मनुष्य हैं !      वृद्धा  थोडा गंभीर होकर बोली --बेटा !   "योवन और धन " क्षण भंगुर तो ये ही २ हैं ,  पुराण कहते हैं ,  इन पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिये !     माघ की चिंता थोड़ी और बढ़ी  उन्होंने कहा -हम राजा हैं !   उन्हें लगा शायद इससे बुढ़िया  डर जाए !    पर उसने बिना डरे उनसे कहा ---   नहीं भाई , आप राजा कैसे हो सकते हैं ?  शास्त्रों ने तो "यम और इन्द्र"   इन दो को ही राजा माना है!
अपनी हेकड़ी छुपाते हुए माघ ने फिर कहा हम तो सब को क्षमा करने वाली आत्मा हैं !    वृद्धा ने कहा -"पृथ्वी और नारी" की क्षमा शीलता की तुलना आप कहाँ कर सकते हैं ,  आप तो कोई और ही हैं ?
निरुत्तर माघ ने कहा ,---माँ ,हम हार गए ,  अब रास्ता बताओ ,please .
पर वृद्धा इतनी आसानी से उन्हें मुक्त करने वाली नहीं थी , बोलीं--"जो किसी से कर्ज लेता है या अपना चरित्र बल खो देता है" ,  हारते तो येही २ कोटि के लोग हैं !
अब माघ कुछ ना बोले ,सर झुका कर चुपचाप खड़े रहे !   तब वृद्धा ने कहा --- 'महापंडित!  मै जानती हूँ की आप माघ हैं ,  आप महाविद्वान हैं,   पर विद्वत्ता की  शोभा अहंकार नहीं विनम्रता है !   ये कह कर  बुढ़िया चरखा काटने लगी और लज्जित माघ आगे चल पड़े !

भरे बादल और फले वृक्ष नीचे झुकते हैं ,उसी तरह expert भी knowledge पाकर विनम्र बनते हैं !

नीम भी गुणों से भरपूर है और शहद भी ,लेकिन आप भी जानते है दुनिया किसे ज्यादा   और ख़ुशी से खाना पसंद करती है  !
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रविवार, 19 अगस्त 2012

पैसे की कीमत ....


                                               पैसे की कीमत ....


दोस्तों ,  एक इंसान की जिंदगी का सफ़र उसके अपनी मां  के पेट मे आने के समय से ही शुरू हो जाता है !   या हम कहें की संस्कारों का बीजारोपण  माँ के गर्भ से ही होने लगता है,   जिस तरह अभिमन्यु ने माँ   के गर्भ मे ही चक्रव्यूह   तोड़ने का संस्कार पा लिया था !  
हमारे पैदा होने से लेकर बाकी सारी जिंदगी के सफ़र मे कुछ बातें , कुछ द्रश्य ,  कुछ विचार , कोई सीख , किसी की सलाह ,ऐसी अनेक चीज हैं जो हम पर  जाने अनजाने अपनी अमिट छाप छोड़ जाती हैं , वो अनजाने ही हमारे संस्कार बन जाते हैं    हम  उन्हें  ताउम्र नहीं भूल पाते , है ना ?

ऐसे ही बहुत साल पहले जब मै बहुत छोटा था , मै किसी पेपर की xerox   करवाने किसी शॉप पर गया था , उस समय एक रूपया  आज के 10 रुपये के बराबर होता था !  वहां xerox के पैसे देते समय मेरी जेब से एक  रूपए का सिक्का निकल कर जमीन पर गिर गया   और टेबल के नीचे चला गया !  मैंने एक नजर देखा ,  नहीं दिखा  तो मैंने सोचा जाने दो , मुझे बड़ा अजीब सा लगा ,  एक रूपए को ढूंढने के लिए जमीन पर झुकना !
मै xerox   के पैसे देकर आने लगा   तभी वहां  एक  सज्जन बैठे थे , वो city  के माने हुए सेठ थे , वो इस परिस्थिति और मेरी मनस्थिति दोनों को देख रहे थे ! 
मुझे अभी भी वो शब्द याद हैं  , जब मुझे उन्होंने  पास बुला कर कहा , 'बेटा , नीचे झुको और अपना रुपया ढुंढो ,  रूपए की क़द्र करना सीखो, जब स्वयं कमाओगे  तब जानोगे की एक रुपया कैसे कमाया जाता है !  और एक रूपये से ही एक लाख  और करोड़  रुपये बनते हैं ,जो इंसान एक रूपए की क़द्र नहीं करता ,वो एक करोड़  रूपए की भी क़द्र नहीं कर सकता ! 
उन  सज्जन के वो शब्द एक संस्कार की तरह मेरे स्मृति मे अमिट रूप से save हो गए !   आज इतने वर्ष बाद भी वो बात याद रहती है !  सही भी है जो इंसान पैसे की क़द्र नहीं करता एक समय बाद पैसा भी उसकी क़द्र नहीं करता !  और दोस्तों   बूंद बूंद करके तो सागर भी खाली हो जाते हैं ! है ना ?
और हम स्वयं पैसे की कीमत समझेंगे , तभी अपने बच्चों को बचत कि अहमियत और पैसे की कीमत समझा पाएँगे ! 
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शनिवार, 18 अगस्त 2012

Be Rational.......


                                   
                                                   विवेकवान बनें ! 

विवेक का लक्षण है --   तुरंत मिलने वाले लाभ के लोभ (आकर्षण)से या  किसी भी काम के शुरुआत   मे मिलने वाले कष्ट  या परेशानियों के भय से सफलता और top achievement की ओर बढने से रुकें नहीं !

बादलों को देख कर घड़े फोड़ना , विवेक नहीं वेवकूफी होती है !    जो विवेकवान हैं , वे तुरंत ही छोटी हानि को देख कर , शुरूआती  घाटे और कष्टों को सह कर भी अपने लक्ष्य की प्राप्ति मे सतत लगे रहते हैं !  और अंत मे उस प्रयास  के सफल परिणाम का आनंद लेतेहैं !   इनका धेर्य और विवेक ही इन्हें लक्ष्य और सफलता तक पहुंचाता है !  जिस तरह ये विवेकवान लोग ---
  • किसान (farmer )---किसान भूखा होने पर भी पास मे रखे हुए बीज बोने के अन्न को खाने के तात्कालिक आकर्षण से बचा रहता है ! बीज को मिटटी मे डालते समय प्रत्यक्ष हानि दिखती है,  मेहनत भी बहुत लगती है , पर फसल के लिए वो यह सब स्वीकार करता है , तभी फसल पाता है !
  • माली (Gardener )---किसान की तरह सर्दी-गर्मी भूल कर पोधों  को लगाता और पालता  पोसता है !   अपने ही लगाये पोधों को एक स्थान से उखाड़ना ,  दूसरी जगह लगाना बेकार सा श्रम दीखता है !    अपने ही लगाये पोधों को केंची से काटना बेदर्दी का काम दिखता है परन्तु बगीचे की सुन्दरता इसी से ही उभरती  है !
  • विद्यार्थी (student )--- घर  के काम काज छोड़ता है , समय-बेसमय जागता और teachers की कड़ाई सहन करता है ,  जो पैसे मौज मस्ती मे   खाने पीने मे गवां सकता था   वो books इत्यादि मे खर्च करता है ! यह सब प्रत्यक्ष घाटा  और परेशानी पाने जैसा दिखता है पर इन्ही के आधार पर वो एक सफल और सभ्य नागरिक बनता है !
  • व्यापारी (Businessman ) ----अपना धन व्यवसाय मे फंसा देता है,  जिसमे घाटे का भी भय होता है  !   खुद कठनाई से गुजारा करके भी बिज़नस मे पूंजी बढाता है  और इसी प्रत्यक्ष घाटे से जीवन भर  मुनाफा(profit ) कमाता है !
  • पहलवान (Wrestler )--- जिस समय लोग आराम करते हैं ,  वो पसीना बहाता है !  संयम से रहता है !  खुराक और व्यायाम पर ढेरों साधन और समय खर्च करता है ! उस्ताद की रगड़ और सजा भी खाता है !   इन परेशानियों के बीच से उसका शक्तिशाली ,रोबीला व्यक्तित्व बनता है ,  और अजय होने पर यश  और सम्मान पाता है !                                           
  इसीलिए जिंदगी की किसी भी समस्या पर तुरंत निर्णय नहीं लें ! थोडा सोच समझ कर विवेक से सही निर्णय लें !

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मंगलवार, 14 अगस्त 2012

Happy independence day india..........

                                        
                                                    जय हिंद जय भारत .....


आजादी के इस पावन पर्व पर आइये हम सभी माँ भारती के पावन चरणों मे नमन करें ! और प्रार्थना करें सही अर्थो मे आजाद होने की !
प्रार्थना करें अपनी कुप्रथाओं,संकीर्णताओ ,गलत आदतों,खराब व्यवहार रूपी गुलामी की जंजीरों से मुक्त होने की .........

एक बार एक संत समुद्र के किनारे खड़े थे !   उनके कुछ शिष्य भी साथ थे !  समुद्र अपनी लहरों के साथ हर बार कुछ मछलियों को तट पर बहा कर ले आता था और उतरती लहरें  उन मछलियों को तट की बालू मे ही छोड़ जाती थी !  बिना पानी के मछलियाँ तड़पने और मरने लगती थी ! संत से उन मछलियों की तड़प देखी नहीं गई !   वो अपने पास की मछलियों को उठा कर वापस समुद्र मे डालने लगे ! इसे देख उनके कुछ शिष्यों ने कहा ,'स्वामी जी मछलियाँ तो हजारो हैं  जो तड़प रही हैं ,  आप के यह एक -एक मछली उठा कर वापस डालने से क्या फर्क पड़ता है !'
स्वामी जी ने अपने हाथ मे उठाई हुई  मछली को वापस समुद्र मे डालते हुए गंभीरता से कहा , "कम से कम इस एक मछली के लिए तो  फर्क पड़ता है" !
हम सारी दुनिया सारे देश को नहीं सुधार सकते !   लेकिन  हम अपने आप को , अपने आस-पास को तो बदल ही सकते हैं , है ना ?

और इससे फर्क तो पड़ेगा ही , अगर हमारे पड़ोस मे खुशबु होगी तो वो हमारे घर  तक भी आएगी ही !
जिस तरह अच्छी और मजबूत  ईंटों  से ही मजबूत इमारत बनती है ,  उसी तरह अच्छे और मजबूत चरित्रवान नागरिकों से ही मजबूत देश बनता है ! 
आइये भारत माता के चरणों मे हम संकल्प करें ,की --
हम सुधरेंगे  तो देश जरूर सुधरेगा !
हम बदलेंगे  तो  देश जरूर बदलेगा !
पुनः आप सभी को हमारी आजादी के पर्व की अनेको शुभकामनायें ............जय हिंद 

शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

रुको मत ,आगे बढ चलो ........


दोस्तों जीवन चलने  का नाम ,चलते  रहो सुबहो  शाम  ! 

  ये गाना तो आप सबने सुना ही होगा !   सही ही है बच्चा जब पैदा होता है तब से उसकी यात्रा प्रारंभ होती है ,  वो जिंदगी के सफ़र मे अपने कदम बढाता है!   बचपन से किशोर ,युवा फिर बुजुर्ग  की तरफ उसकी ये यात्रा अनवरत चलती  रहती है ! 
ये सूत्र हमारे जीवन के हर पहलु पर लागू होता है!     कुछ पाने के लिए , नई उपलब्धियां हासिल करने के लिए हमें हमेशा आगे बढते रहना पड़ता है !   दोस्तों ऐसा अधिकतर होता है की हमारा मन हमारे किसी नए निर्णय का ,  नए कदम का विरोध करता है !  क्योंकि मन बदलाव पसंद  नहीं करता है ,  हम जहाँ  है, जिस परिस्थिति मे हैं ,वही पर ही मन हमें सन्तुष्ट रहना सिखा देता है !  इसीलिए अधिकतर लोग अपना जीवन औसत रूप से ही काट देते है ! 

नदी भी सतत बहती रहती है,  इसीलिए उसका पानी साफ़ शुद्ध  और निर्मल होता है,  वही एक तालाब का पानी सडा ,बदबूदार और काई युक्त होता है , क्योंकि तालाब का पानी ठहर गया है ! और फिर  चाहे ठहरा  हुआ पानी हो या इंसान     काई  (आलस्य ,प्रमाद युक्त) तो  फिर उनपर जमा हो ही जाती है !

यहाँ हम सिर्फ पाँव से चलने  की बात नहीं कर रहे , हम बात कर रहे है जीवन के हर पहलु मे आगे बदने की ! हमें आगे बदना है सेहत कीतरफ ,शरीर और मन की ताकत  की तरफ ,अपने लक्ष्यों की तरफ ,सफलता ,ख़ुशी,सुख, उमंग आदि की तरफ ! 
दोस्तों   जिन पगडंडियों (रास्तों ) पर लोग नहीं चलते  वहां  घास उग जाती है , रखे रखे लोहे मे जंग लग जाती है  ठहरा  हुआ पानी बदबू मारता है ! बैठा ठाला मनुष्य या जानवर धीरे धीरे निकम्मा बन जाता है  और अपनी सहज विसेषताओं से हाथ धो बेठता है !  
दोस्तों वो क्या है जो हमें आगे बदने से रोकता है --वो है --
  • साहस की कमी -हम में से अधिकतर सुयोग्य और समर्थ लोग साहस ना होने की वजह से कुछ नया और बड़ा नहीं कर पाते ! अवसर रहते हुवे भी पिछड़ेपन की स्थिति मे ही पड़े रहते हैं!          
  • आलस्य ,प्रमाद --ये दो ऐसे ब्रेक हैं जो आपके जीवन की गाडी के पहियों को रोक देते हैं उन्हें आगे नहीं बढने देते !   
  • अज्ञात का डर -जो गोताखोर  अज्ञात समुद्र मे गोता लगाता है , मोती और अनमोल सम्पदा तो उसे ही मिलती है, किनारे पर कांटा डाल कर बेठने वाले को तो सिर्फ मछली ही हाथ आती है ,और कभी कभी तो वो भी नहीं !
योजनाबद्ध दिनचर्या  अपना कर जो अनवरत परिश्रम में लगे रहते हैं, उनका स्वास्थ्य सुद्रढ़ रहता है ,  बुद्धिमता बढती है और बुराइयों से बचे रहने का अवसर मिलता है!

जब हमारे अन्दर साहस खोया बैठा रहता है ,पराक्रम नहीं जागता ,  तो सत्प्रेरणा  नया जीवन ,नया सन्देश लेकर आती है !  उस दिन लहर बड़ी उदास और निराश बेठी थी ! समुद्र उसे आगे बढने और बिखरने के लिए कह रहा था , किन्तु वह डर रही थी !   वह इतने मे ही संतुस्थ  रहना चाहती थी ! समुद्र ने उसे समझाया , आगे बड़ो !    मिलन का आनंद जड़ता मे नहीं   गति मे है !  लहर अनिश्चितता की कल्पना से भयभीत हो रही थी !
समुद्र गंभीर हो गया  उसने कहा -   देखती नहीं मेरे अन्दर कितना दर्द है !  उस दर्द मे हिस्सा बटाए बिना तुम कैसे मेरी प्रियतमा बन सकती हो ? उससे अगली लहर ने समझाया और बोली - सखी,बिछुड़कर ही हम अनंत की और बढ रहे हैं ,सीमित से असीमित बनकर हमने प्रणय की सरसता को खोया नहीं ,बढाया ही तो है !  चर्चा बड़ी मधुर थी सुनकर महकती गंध भी वहा आ गयी और बोली -फूल की गरिमा को  जगत मे फेलाते हुवे बिछुरन का नहीं, पुलकन का अनुभव करती हूँ , तुम क्यों रुक बेठने के लिए मचल रही हो !
समुद्र इस चर्चा को शांत चित्त  सुन रहा था !   इतने मे इन्द्र ने द्वार खटखटाया और कहा -  चलने  मे विलम्ब ना करो , दुनिया तुम्हारी प्रतीक्षा मे कब से बेठी है ! मेघ का वाहन तैयार था,समुद्र इन्द्र के इशारे पर सुदूर यात्रा पर चल पड़ा !  गमन का त्याग रने पर सडन हाथ लगता है ! लहर की आँख खुली और उसने चलना  प्रारंभ कर दिया !

कछुवे ने खरगोश से बाजी जीती थी , चींटी धीरे धीरे किन्तु अनवरत श्रम करके बोझ लिए पर्वत शिखर पर जा पहुँचती है !  यदि लगन सच्ची हो,संकल्प बल दृढ हो एवं श्रम करते रहने पर भी निरंतरता और धेर्य रखे रहने का गुण मनुष्य मे हो तो भले ही प्रगति की गति धीमी हो ,सफलता अंतत मिलकर ही रहती है!

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रविवार, 5 अगस्त 2012

समझें युवा मन का दर्द


दोस्तों प्रस्तुत article पूज्य गुरुदेव पंडित श्री राम शर्मा आचार्य जी के ज्ञान के अथाह सागर मे से कुछ बूंदें हैं ,  जो आज की युवा पीढ़ी  के द्वन्द को , उनकी पीड़ा को आकार देती हैं ,  और हमें आत्ममंथन करने को प्रेरित करती हैं --------

                                              समझें युवा मन का दर्द 

आज के युवा का दर्द गहरा है !  उनमे कुछ खास करने की चाहत है ,  वे कुछ खास बनना चाहते हैं,  पर किस तरह    उन्हें पता नहीं !    उन्हें कोई बताने वाला , राह दिखाने वाला नहीं मिलता !   माँ-बाप अपने बेटे -बेटी को आसमान की बुलंदियों पर देखना चाहते हैं,  लेकिन बेटे-बेटी के दिल का हाल जानने के लिए उनके पास वक़्त नहीं है!  माँ-बाप की अपेक्षाओं के बोझ  तले उनके लाडले -लाडली का मन कितना दबा जा रहा है ,इसकी उन्हें खबर भी नहीं होती !
युवक-युवतियों के इस दर्द की पहली शुरुआत तब होती है ,  जब वे किशोरवय  की दहलीज(teen age ) पर पहला कदम रखते हैं!   यहाँ शरीर और मन में परिवर्तनों का दौर होता है !  शरीर  की फिजिक्स भी बदलती है और कैमिस्ट्री  भी !   परिवर्तन आकृति मे आते हैं और प्रकृति मे भी !  इन परिवर्तनों के साथ मन की चाहतें भी बदलती हैं ,  कल्पनाओं और इच्छाओ का नया संसार शुरू होता है !  इसे वे बताना तो चाहते हैं ,पर कोई उन्हें सुनने के लिए तैयार नहीं होता  है !   हाँ ,बात बात मे अपने माता पिता से ये झिडकियां जरूर सुनने को मिलती हैं   -अब तुम छोटे नहीं रहे ,बड़े हो रहे हो !  तुम्हें सोचना -समझना चाहिये , अपनी जिम्म्मेदारी का अहसास होना चाहिये !  
जवाव मे वे कहना भी चाहते हैं की   माँ मेरी भी कुछ सुन लो ,  पापा मेरी बात भी सुन लो ! पर उनकी ये आवाज मन के किसी कोने मे ही गूँज कर रह जाती है ,  उन्हें सुनने वाला कोई नहीं होता !

इसी आयु मे पढाई और कैरियर की दिशा तय होती है !   मेडिकल, इंजनियरिंग,   मेनेजमेंट, कंप्यूटर, या फिर अन्य कोई राह!   इस दिशा और विषयों के चयन मे बहुत कम माँ-बाप ऐसे होते हैं,  जो बेटे -बेटी की रूचि अथवा उसकी आन्तरिक संभावनाओं का ख्याल रखते हैं !  अभिभावकों की दमित आकांशाओ के आधार पर ही तय किया जाता है की क्या पढ़ा  जाना है !   युवावस्था की दहलीज मे पाँव रख रहे छात्र -छात्रा तो स्वयं मे भ्रमित होते ही हैं ,  इसलिए थोड़े विरोध के बाद वे भी अपने अभिवावकों की बात स्वीकार कर लेते हैं ,  आखिर उन्ही के पैसों पर उनको जिंदगी जो जीनी है!

यहीं   से शुरू होता है  बेमेल जीवन का दर्द !   रूचि, प्रकृति एवं संभावनाओं के विपरीत पढ़ाई का चयन युवाओं मे कुंठा को जनम देता है !  मन का मेल ना होने से इस पढ़ाई मे स्वाभाविक ही उन्हें कम अंक मिलते हैं !   तब उन्हें सुननी पड़ती है -  अभिवावकों से कड़ी फटकार !  सुनने को मिलते हैं अपने नाकारा होने के किस्से !   बार-बार की जाती है ,उनकी सफल ? लोगों से तुलना !  कभी कभी तो उनके मन में अपने अभिभावकों के प्रति गहरा डर समां जाता है !  वे फिर कतराते और कटते हैं उनसे !   साथ ही उनके मन में गहरी होती जाती है निराशा और चिंता !   कहीं किसी गहरे कोने मे बनती है --गाँठ,   अपराध बोध की !
इस अवस्था मे युवा भावनात्मक रूप से अपने को बहुत अकेला पाते हैं !  उन्हें तलाश होती है अपनेपन की , पर ये मिलता नहीं !  घर  मे उनकी भावनाओ से कोई सरोकार नहीं रखता  और बाहर कॉलेज मे किसी को उनकी निजी जिंदगी या उनके मन की उलझनों से कोई मतलब नहीं होता !  कुछ कहने या बताने पर व्यंग , उपहास या धोखा  ही उनके पल्ले पड़ते हैं !  इन्ही वजहों से युवाओं मे व्यावहारिक मनोविक्रतियाँ और मनोरोग जन्मते हैं! 
विजन इंडिया की टीम ने  I.I.T. ,I.I.M. समेत देश के कई संस्थानों का सर्वेक्षण किया ,  उनकी कोशिश थी   आज के युवा के दर्द को उसके मन की पीड़ा को जाना जाये !   यह अध्ययन  20 से 25 वर्ष की आयु वर्ग पर किया गया !  नतीजे चोंकाने वाले रहे !  हेरानी की बात यह थी की सफल-असफल दोनों ही तरह के युवा किसी ना किसी छटपटाहट से गुजर रहे थे !  दोनों का ही दर्द एक सा है !  उनका दर्द है ----  अपनेपन के अभाव का दर्द ,  उनको ना सुने , ना पहचाने जाने का दर्द !    माँ-बाप ,रिश्तेदार ,शिक्षक और पुस्तकें  जो भी होता है ,  आदर्शों की सीख देने से नहीं चूकता ,  पर इस मन का क्या करें ,जहाँ आदर्श की नहीं , सुख की चाहत पैदा होती है !  कोई  हमें बताये तो सही की हम उलझनों से कैसे बाहर निकलें !कोई हमे सुनने वाला तो हो दिल से !

दोस्तों   किशोरावस्था से लेकर युवावस्था  का काल महत्वपूर्ण है,  इसमें जरूरत भावनात्मक गुत्थियों को सुलझाने की है !  इस उम्र मे भावनाओं और संवेगों का उफान अपनी पूरी ऊंचाई पर होता है , मन मे बहुत कुछ होता है ,  जो वो बताना चाहता है  जानना चाहता है   समझाना चाहता है !   बहुत सारी बातें है जो उसे परेशान करती हैं ,  शारीरिक ,मानसिक  परिवर्तनों की अवस्था से मन मानसिक  और भावनात्मक रूप से वडा उद्वेलित होता है !   बहुत सारे सवाल होते हैं ,  जिनका जवाव वो पाना चाहता है !   पर किससे?   माता पिता को उसके भावनात्मक उफान का अंदाजा नहीं होता ,  नहीं उन्हें इतना समय होता है की   भावना के इस अनदेखे भंवर से वो अपने बच्चे को सकुशल बाहर निकालें!   माता पिता अपने बच्चों के लिए हर साधन सुविधा जुटाते हैं , उन्हें  हर भोतिक चीज मोहिया कराते हैं !   उनको समय ना दे पाने  की अपनी ग्लानी को महंगे उपहार देकर मिटाते हैं !   लेकिन नहीं दे पाते तो उनको सिर्फ थोडा  सा अपना भावनात्मक समय , जिसके लिए युवा    जल बिन मछली की तरह तड़पता है !     जब मन के वेगों का निराकरण अभिभावक से नहीं हो पाता   तब युवा अपनी शारीरिक और भावनात्मक समस्या को अपने हम उम्र दोस्तों से शेयर करता है ! 
लेकिन जिस तरह एक अँधा व्यक्ति दुसरे अंधे व्यक्ति को क्या रास्ता दिखाएगा,  उसी तरह एक भ्रमित युवा ,  दुसरे भ्रमित युवा को भी क्या रास्ता दिखा सकता है !  यही से शुरू होता है ,युवा के भावनात्मक  और कभी कभी शारीरिक शोषण का दौर !   समाज मे फेले हुए भेड़ की खाल मे भेड़िये  इस अवस्था का पूरा फ़ायदा उठाते हैं !   युवाओं को शारीरिक और भावनात्मक रूप से गलत राह पर चला देते हैं !   इक चिंगारी जो माँ-बाप के संबल और प्रोत्साहन रुपी इंधन से आग बन सकती थी ,  उसे अपनी गलत इरादों के पंखे से हवा कर बुझा देते हैं !

जरूरत है आज के युवा को भावनात्मक रूप से समझने की ,  उसे संबल देने की !   उसके मन की गांठों को खोलने की !  आप एक बार अच्छे दोस्त की तरह अपने बच्चे से दिल से बात तो कीजिये ,  फिर देखिये कैसे वो अपने मन की परतों को खोल कर आपके सामने रखता है !

गुरुवार, 2 अगस्त 2012

जरा संभल कर ..........

                                                   जरा संभल कर ..........
दोस्तों आज हम जिंदगी के इक अहम् विषय पर बात करेंगे !मनुष्य इक सामाजिक प्राणी है ,वो समाज मे रहता है और इस संसार रूपी रंगमंच मे  अपनी हर भूमिका को निभाता है !हमारा हर कदम ,हर व्यवहार ,हर बात हर क्रिया कलाप हमारा उठना,  बैठना,बोलना हर चीज इस समाज मे लोगों की नजरो मे रहती है!  इस संसार की भूमिका को निभाते हुए कई बार ऐसा होता है की जाने अनजाने हमारा कोई कदम, या बात ,या व्यवहार हमारे पूरे व्यक्तित्व पर नकारात्मक प्रभाव डाल देता है!

हम कई बार गुस्से मे या तनाव मे कुछ ऐसा कर या बोल जाते हैं की बाद मे हमे बहुत पछतावा होता है, और हम उसे सुधारने की कोशिश भी करते हैं!  उदहारण के लिए कभी कभी हम अपने बच्चो या पति ,पत्नी या माता -पिता से अपशब्द बोल देते हैं,  उनका दिल दुखा    देते हैं!   फिर भूल समझ मे आने पर हम उन्हें उपहार देकर,या बाहर घुमाकर अपनी गलती को मिटाने की कोशिश करते हैं,  है ना?

दोस्तों जिंदगी की गणित मे 3 -2 =1 +2 =3 नहीं होता है,  अगर आपने 3 मे से 2 minus कर दिए आपके व्यवहार से, फिर आप आपके गिफ्ट या दूसरी तरह से 2 को plus करेंगे तो 3 तो हो जाएंगे  mathematically  !   लेकिन  जिंदगी की गणित के हिसाब से वो पहले वाले 3 नहीं होंगे!
कहने का आशय,की अगर धागे मे गाँठ आ जाये ,फिर आप गाँठ को दुबारा खोल भी दें   तो भी गाँठ वाली जगह पर धागे  मे सल आ जाती है ?  है ना!
और दोस्तों याद रखिये इक बार आपकी जो छवि ,image दुनिया मे बन गई  उसे बदलने मे जिंदगी लग जाती है!

इक बार इक राजा के दरबार मे इरान से इक इत्र (perfume )का व्यापारी आया ! उस व्यापारी के पास दुनिया का बेशकीमती इत्र था !  उसकी  हर छोटी से छोटी bottle की कीमत भी हजारों सोने की मोहरें थी ! वो अपना इत्र राजा को बेचने आया था !  उसने राजा से कहा ,  महाराज आपकी दरियादिली और आपकी अनमोल चीजों को क़द्र करने की आपकी पहचान की वजह से  मै आपके लिए बेशकीमती इत्र लाया हूँ!   उसने राजा को एक bottle सूंघने के लिए दी,  राजा ने जैसे ही bottle अपने हाथ मे ली,  उसमे से इक बूँद इत्र जमीं पर गिर गया, राजा ने सोचा इतना कीमती इत्र,  इसकी तो  इक बूँद ही कई मोहरों की है,  उसने कनखियों से अपने दरबार को देखा,  सब अपने मे मशगूल थे , उसे लगा की कोई नहीं देख रहा है,  और उसने धीरे से वो जमीन की गिरी हुयी  बूँद अपनी  ऊँगली से उठा ली, और अपने कपड़ों मे लगा ली!  लेकिन तभी उसकी नजर अपने मंत्री पर पड़ी,  वो मंद मंद मुस्कुरा रहा था ,  राजा की चोरी पकड़ी गई  थी , उसके मंत्री ने ये सारा नजारा देख लिया था !
अब राजा ने सोचा की   मेरी तो पूरी इज्जत ही ख़तम हो जाएगी अगर इस मंत्री ने ये बात सारी सभा को बता दी तो,  उसने सोचा की अब मे अपनी  इस भूल का सुधार कैसे करूँ?उसने  इत्र वाले से कहा की तुम्हारे पास जो सबसे कीमती इत्र की bottle है  वो दिखाओ, अत्तार (इत्र वाला) ने सबसे बेशकीमती इत्र जो की एक मटके मे रखा था  जिसकी कीमत लाखो सोने की मोहरें थी , उसका जैसे ही ढक्कन खोला ,इत्र की सुगंध  पूरे दरबार मे फ़ेल गई  !
उसने  बड़ी सावधानी से वो मटका राजा के हाथ मे दिया ,  राजा ने उसे हाथ मे लेते हुए असावधानी का दिखावा करते हुए   उस मटके को जमीन मे गिरा दिया ,  सारा कीमती इत्र जमीन पर गिर गया, सब दरबारी एकदम से खड़े हो गए ,और इत्र गिरने का अफ़सोस करने लगे!
लेकिन राजा बिना किसी अफ़सोस के ऐसे बैठा रहा जैसे कुछ नुकसान हुआ ही नहीं,  वो ऐसा दिखाने की कोशिश करने लगा  जैसे लाखो का नुकसान होने पर भी उसे कुछ फर्क ही नहीं पड़ा ,उसने फिर गर्व से अपने मंत्री की तरफ देखा !मंत्री अब भी मुस्कुरा रहा था !  राजा दुविधा  मे पड़ गया , उसने मंत्री  से पूछा की इतना नुकसान हो गया लेकिन आप मुस्कुरा क्यों रहे हैं?
तब मंत्री ने कहा ,'महाराज ,अब आप कितने भी मटके इत्र के गिरा दो , उससे कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला ,क्योंकि बूँद तो गिर ही गई ! 
अब उस बूँद की भरपाई  आपके हजार मटके गिराने से भी नहीं होगी!

कहने का आशय है की आपकी एक गलती आपके पूरे व्यक्तित्व पर भारी हो जाती है ! फिर आप जिंदगी भर  अपनी उस छवि से बाहर नहीं निकल पाते !  फिर चाहे आप कितने भी मटके अपनी अच्छे व्यवहार के गिरा दें!
इसलिए दोस्तों अपने व्यवहार का हर कदम बढे ही ध्यान से रखिये ! क्योंकि ये सीख जिंदगी के सफ़र मे भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है की--------
                           (व्यव्हार मे)सावधानी  हटी , (संबंधों  मे) दुर्घटना घटी ! है ना?
अपने कमेंट्स जरूर दीजिएगा !