श्रेष्ठ तम की चाह रखो ,श्रेष्ठ तो बन ही जाओगे
एक पहाड़ पर सोना ,चांदी ,हीरा ,ताम्बे की खानें थीं ! कई लोग उनको पाने की कोशिश करते और कुछ लोग पाते भी थे ! एक बार 3 दोस्तों ने निश्चय किया की हम भी इस पहाड़ से सम्पदा लेकर आएँगे !एक दोस्त ने अपना लक्ष्य बनाया की में तो ताम्बे की खान तक पहुँच जाऊं वही मेरे लिए बहुत है ! दुसरे ने अपना लक्ष्य चांदी की खान को रखा ! लेकिन तीसरे ने हीरे की खान तक पहुँचने का लक्ष्य रखा ! तीनों साथ साथ पहाड़ पर चढ़े !
सबसे पहले ताम्बे की खान आई ,पहले वाला दोस्त जिसका लक्ष्य ही तांबे की खान था ,खुश होकर वहीँ रूक गया ! बाकी 2 आगे अपने लक्ष्य की तरफ चल पड़े ! थोड़ी देर बाद चांदी की खान भी आ गई ! दूसरा दोस्त भी खुश होकर वहीँ रूक गया !
तीसरा दोस्त जिसका लक्ष्य हीरे की खान को पाना था ! वो सतत आगे बढता रहा ! रास्ते में सोने और प्लेटिनम की खाने आईं ! पर वो उनको छोड़ आगे बढता रहा ! बहुत कोशिश और परिश्रम करने पर भी उसे हीरे की खान नहीं मिली ! वो वापस लोटा और लोटते समय बहुत सा सोना और प्लेटिनम अपने साथ लेता आया !
दोस्तों , उस तीसरे दोस्त ने भले ही अपना ऊंचा लक्ष्य नहीं पाया लेकिन वो फिर भी अपने उन दोनों दोस्तों से कहीं ज्यादा सम्पदा पा गया ,जिनके लक्ष्य ही बड़े छोटे थे !
कहने का आशय है जिंदगी के हर क्षेत्र में 100 में से 100 की ही इच्छा रखोगे और उस हिसाब से मेहनत भी करोगे तो 100 भले ही ना मिलें 90-95 तो मिलेंगे ही ! लेकिन इच्छा ही अगर 100 में से 36 की हो तो अलग बात है !
दोस्तों ,जिंदगी में हमेशा श्रेष्ठतम की आकांशा रखो तो श्रेष्ठ या अच्छा तो पा ही जाओगे ! लेकिन आकांशा ही अगर ओसत की रखोगे तो ओषत से भी कम ही हासिल कर पाओगे ! इसलिए श्रेष्ठ तम की चाह रखो ,श्रेष्ठ तो बन ही जाओगे !
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