may14

मंगलवार, 27 नवंबर 2012

सूरज की चाह रखो ,चाँद तो मिल ही जाएगा





                                    सूरज की चाह रखो ,चाँद तो मिल ही जाएगा 

एक बार सागर ने एक खाली तालाब से पूछा,"बोल कितना पानी चाहिये ?"  तालाब बोला ,महाराज ,इतना तो दे ही देना की मेरे पेंदे की मिटटी  गीली हो जाए !
सागर  हंसा ,बोला "अरे बावरे , तू चाहता तो मै तुझे एक छोटा सागर बना देता ! पर तेरी चाह (इच्छा ) ही बहुत छोटी है !  अरे ,ज्यादा नहीं तो अपने आप को लबालब पानी से भरने की इच्छा तो रखता !
मैं तो दिल खोल कर देने को तैयार था !  मेरा मन था आज  अपना अनुदान तुझ पर  लुटाने का !  पर तुमने तो अपनी झोली भी पूरी नहीं फैलाई ! अब मैं अपनी अनुग्रह की बारिश भी कर दूँ ,तो भी तुम पाओगे तो उतना ही  जितनी तुमने झोली फैलाई है ! 

दोस्तों ,वो तालाब हम ही हैं ,सागर है  परमात्मा (अवसर )!   हम इच्छा भी बड़ी कंजूसी से करते हैं !  ये दुनिया का नियम है की हम जो चाहते हैं ,उससे कम ही पाते हैं !   एक विद्यार्थी 100% no. लाने की चाह रखता है ,उस हिसाब से मेहनत  करता है ! तब भी उसके 80-90%  से ज्यादा no. मुश्किल से ही आ पाते हैं ! 

अब अगर कोई विद्यार्थी केवल 50 % no. की ही चाह रखे ,तो जाहिर है वो मेहनत भी 50% के हिसाब से ही करेगा ! और शायद 45-48% बना भी लेगा ! 

आप किसी ओसत इंसान से पूछिए , जीवन मे कितना कमाना चाहते हो ?  तो अधिकतर का जवाव ये ही होगा , बस  दाल -रोटी अच्छे से चल जाए !  अब जिसने अपना लक्ष्य ही दाल -रोटी तक सीमित कर लिया ,वो उससे ऊपर के लक्ष्य पनीर ,कोफ्ता ,छप्पन भोग को क्या देख पाएगा !

   एक ऊँची कूद का धावक उतनी ही ऊंचाई तक कूद पाता है , जितनी ऊंचाई तक उसका लक्ष्य होता है !  एक फुट के लक्ष्य वाला धावक 7 फुट की छलांग कभी नहीं लगा सकता !  लेकिन 7 फुट के लक्ष्य वाला धावक 7 नहीं तो 6 फुट छलांग तो लगा ही लेगा !

दोस्तों  जिंदगी मे हमेशा सूरज की (श्रेष्ठतम  की ) चाह रखो ,ताकि अगर वो ना भी मिला तो चाँद (श्रेष्ठ ,अच्छा ) तो हाथ आ ही जाएगा !

डॉ. नीरज यादव ,
MD(आयुर्वेद),

बुधवार, 21 नवंबर 2012

सर्दी आई सेहत लाई ..........









                                            सर्दी आई सेहत लाई ..........

सर्दी का मौसम ,शरीर की बेट्री को चार्ज करने का मोसम है !   आयुर्वेद के अनुसार ,विसर्ग काल और शरद हेमंत शिशिर ऋतुएं सहज ही शरीर के बल को बड़ा देती हैं !  इस समय शरीर की जठराग्नि (पेट की अग्नि ) अपनी तीव्रता पर होती है , जिससे वो खाए हुये हर  तरह के गरिष्ठ पदार्थों को सहज ही पचा देती है !  

सर्दी का मोसम सेहत बनाने का मोसम है ! इस समय सही और पोष्टिक  आहार विहार का सेवन और पालन कर हम पूरे  साल के लिए बल और शक्ति का संचय कर सकते हैं !

सर्दी में पालने योग्य कुछ स्वर्णिम सूत्र -----

  • सूर्योदय के पहले उठें ,प्रातः काल किया गया योग ,व्यायाम और प्राणायाम सहज ही शरीर की शक्ति को बड़ा देगा !

  • सर्दी में  शरीर  में वात का प्रकोप और रूखापन दोनों बढ़ते  हैं ,  इसलिए रोज नहीं तो सप्ताह में 2 या 3 बार सारे शरीर  की तिल  या सरसों के तेल से मालिश (अभ्यंग)करें ,थोड़ी देर सुबह की धूप  का सेवन करें फिर कसुने(गुनगुने ) जल से नहाएं !

  • जिस प्रकार लकड़ी को तेल पिलाने से वो मजबूत और लचीली हो जाती है उसी प्रकार अभ्यंग हमारे शरीर को लचीला ,बलवान और कान्तिमान बनाता  है ! मालिश के बाद हलकी धूप का सेवन सहज ही विटामिन D का निर्माण कर देता है जो हड्डियों की मजबूती के लिए जरुरी है ! 

  • नस्य लें ,नहाने के बाद और रात्री में सोने से पहले सरसों या तिल तेल की एक एक बूँद अपनी कनिष्ठा ऊँगली से दोनों नथुनों में लगा लें !

  • नाभि में एक बूँद तेल लगाना आपके होठों को नर्म रखेगा !

  • सर्दी का मुख्य  फल आंवला ,जो की जीवनीय शक्ति का अकूत भण्डार है ,इसका किसी भी रूप में सेवन करें !

  • प्रकृति ने ऋतुओं के हिसाब से ही फलों और सब्जियों की रचना की है ,गाजर ,सेव,अंजीर ,बादाम ,आंवला ,मूली ,मटर, मेथी, पिण्ड खजूर ,अदरक का सेवन भरपूर करें !

  • गाजर का हलवा ,उरद के लड्डू ,बादाम पाक ,असगंध पाक ,च्यवनप्राश ,ब्राह्म रसायन ,हल्दी वाले दूध का सेवन आपकी ताकत और जीवनीय  शक्ति को बढ़ा देगा !
  •    तिल  और इसके बने पदार्थों का सेवन शरीर  की आंतरिक शक्ति और स्निग्धता को बढ़ा  देगा !

  • सर्दी में बहुत ज्यादा गर्म जल से स्नान नहीं करें !यह शरीर की प्राकृतिक स्निग्धता को कम कर रूखापन बढ़ा देगा !                                    
  • नहाते समय कभी सर पर गर्म जल नहीं डालें !

  • अच्छे च्यवनप्राश का सही सेवन  ना सिर्फ आपकी रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ा देगा ,बल्कि  एलर्जी   से आये दिन होने वाले जुकाम ,खांसी आदि रोगों से भी मुक्त रखेगा !    च्यवनप्राश एक रसायन है ! प्रातः काल लिया गया च्यवनप्राश सारे दिन शरीर में स्फूर्ति और शक्ति का संचार करता है !

  • सर्दी में रुखा ,हल्का ,ठंडा भोजन ,भूखा रहना ,ठन्डे जल से स्नान ,और दिन में सोना त्याग देना चाहिये !

डॉ नीरज यादव 
MD(आयुर्वेद )

शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

आ से आंवला ,आ से आरोग्य







                     आ से आंवला ,आ से आरोग्य 

हमारे देश में बहुतायत से मिलने वाला फल ,जिसे धात्रीफल ,अमृत फल भी कहते हैं !  अमृत  जिसके सेवन से देवता अमर और चिरयुवा हो गए !  और इस अमृत फल के सेवन से वृद्ध च्यवन ऋषि पुनः युवा हो गए थे ! आयुर्वेद के अनुसार ये त्रिदोषनाशक है ! इसके गुण इसके अमृत फल नाम को सार्थक करते हैं !


  • वय स्थापक (शरीर को युवा रखने वाले ) द्रव्यों में यह सर्वश्रेष्ठ है !  यह शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढाता है ! आंवले में नारंगी से 20 गुना अधिक vitamin c होता है !  यह एक बेहतर antioxident है जो शरीर  को युवा और स्वस्थ रखता है !


  • आंवला एक उत्तम रक्तशोधक है !     खून में जमा हुए विजातीय तत्वों को दूर करता है !  इसलिए   रक्तविकार (फोड़े-फुंसी )  नाशक है !


  •  यह  एक श्रेष्ठ रसायन है ,जो शरीर  की कोशिकाओं को लम्बे समय तक स्वस्थ और युवा रखता है !  इसका सेवन बालों एवं आँखों  के लिए लाभकारी है !

  • शारीर में महसूस होने वाली झूठी गर्मी ,दाह (acidity ),और पुरुषों में वीर्य की गर्मी को दूर करता है !

  • इसके रस को मिश्री के साथ लेने से गुर्दों में जमा मल  दूर होता है !


  • शरीर में होने वाली थकान ,विबंध (constipation),यकृत विकार ,महिलाओं में अत्यधिक रक्तस्राव ,प्रदर ,गर्भाशय की दुर्बलता और पुरुषों में प्रमेह और शुक्रमेह को दूर करता है !  पोरुष को बढाता  है !


  • आंवला सुप्रसिद्ध योग च्यवनप्राश और त्रिफला का मुख्य घटक है !


  • चूर्ण,मुरब्बा ,केन्डी ,आमलकी रसायन ,स्वरस(मिश्री या शहद मिला कर ) ,च्यवनप्राश किसी भी रूप में इसका सेवन किया जा सकता है !

तो आइये इन सर्दियों में आंवला खाएं ,आरोग्य पाएं !
                         
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डॉ नीरज यादव ,
M .D .(Ayurved)

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सोमवार, 12 नवंबर 2012

happy diwali....in hindi



 दीपक का संकल्प ...



दोस्तों ,

आप सभी Achhibatein के पाठकों और प्रियजनों  को ...

दीपावली की अनेकों शुभ कामनाएं .............

दुआ है ...

रौशनी का ये पर्व जीवन में ....

उजाला ,खुशियाँ ,उमंग ,सुख ,समृद्धि और संतोष लेकर आये .........

आइये ,
अँधेरे की इस रात में हम भी दीपक सा एक संकल्प करें ...........अँधेरा मिटाने  का , रौशनी को फेलाने का !  
अपनी दुर्बलताओं ,डर ,भय ,तनाव के अन्धकार को   अपने  विवेक ,विश्वास और पुरुषार्थ के प्रकाश से मिटाने  का !







                                 दीपक का संकल्प 

ढल चुका  था सूरज ,अन्धकार था छाया !
तम  ने अपना रूप बढ़ा ,अपने को सर्वत्र फेलाया !

हर  तरफ घनघोर कालिमा ,कर को कर ना सूझ रहा था !
कौन  लड़े इस घनघोर तिमिर से ,हर कोई यह सोच रहा था !

सबने अपने पाँव थे खींचे ,सबने अपने को सिमटाया !
उस तम से लड़ने को  किन्तु ,कोई भी आगे ना आया !

अट्टहास कर हंसा फिर तिमिर ,प्रकाश को उसने था दबाया !
सर्वत्र छा गई फिर कालिमा .हर तरफ अँधेरा था छाया !

उसी समय कहीं दूर धरा पर , छोटा सा एक दीप जला !
दूर करने तम  की सत्ता को , तम से फिर वो सतत लड़ा !

दूर हुआ अन्धकार धरा से ,दूर हुई तम  की कालिमा !
छाया फिर नव प्रकाश धरा पर ,फैल गई सर्वत्र लालिमा !

जब तक उदित ना होगा सूरज ,तब तक मै स्वयं सतत जलूँगा !
नहीं बढेगा अब अँधियारा ,अन्धकार से सतत लडूंगा !

डॉ. नीरज यादव .... 
बारां 

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बुधवार, 7 नवंबर 2012

अवधूत दत्तात्रेय के गुरु





                            अवधूत दत्तात्रेय के गुरु

दोस्तों पिछली पोस्ट में हमने दत्तात्रेय के 12 गुरु के बारे में जाना , आइये बाकी बचे 12 गुरु को भी जाने और उन्हें अपने जीवन में माने भी --


  • मधुमक्खी -- फूलों का मधुर रस संचय कर दूसरों के लिए समर्पित करने वाली मधुमक्खी ने मुझे सिखाया की मनुष्य को स्वार्थी नहीं परमार्थी होना चाहिये !


  • भौंरा -- राग में आसक्त भोंरा अपना जीवन -मरण न सोच कर कमल पुष्प पर ही बैठा  रहा ! रात को हाथी ने वो पुष्प खाया तो भोंरा भी मृत्यु को प्राप्त हुआ ! राग  ,मोह में आसक्त प्राणी किस प्रकार अपने प्राण गँवाता है ! अपने गुरु भोंरे से यह शिक्षा मैंने ली !


  • हाथी -- कामातुर हाथी मायावी हथनियों द्वारा प्रपंच में फँसा  कर बंधन में बाँध दिया गया  और फिर आजीवन त्रास भोगता रहा ! यह देख कर मैंने वासना के दुष्परिणाम को समझा और उस विवेकी प्राणी को भी अपना गुरु माना ?


  • हिरण (मृग)-- कानों के विषय में आसक्त हिरन को शिकारियों के द्वारा पकडे जाते और जीभ की लोलुप मछली को मछुए के जाल में तड़पते देखा तो सोचा की इंद्रियलिप्सा के क्षणिक आकर्षण में जीव का कितना बड़ा अहित होता है ,इससे बचे रहना ही बुद्धिमानी है ! इस प्रकार ये प्राणी भी मेरे गुरु ही ठहरे !


  • पिंगला वेश्या -- पिंगला वेश्या जब तक युवा रही तब तक उसके अनेक ग्राहक रहे ! लेकिन वृद्ध होते ही वे सब साथ छोड़  गए ! रोग और गरीबी ने उसे घेर लिया ! लोक में निंदा और परलोक में दुर्गति देखकर मैने सोचा की समय चूक जाने पर पछताना ही बाकी रह जाता है ,सो समय रहते ही वे सत्कर्म कर लेने चाहिये जिससे पीछे पश्चाताप न करना पड़े ! अपने पश्चाताप से दूसरों को सावधानी का सन्देश देने वाली पिंगला भी मेरे गुरु पद पर शोभित हुई !


  • काक (कौआ )-- किसी पर विश्वास ना करके और धूर्तता की नीति अपना कर कौवा घाटे  में ही रहा ,उसे सब का तिरस्कार मिला और अभक्ष खा कर संतोष करना पड़ा !यह देख कर मेने जाना की धूर्तता और स्वार्थ की नीति अंतत हानिकारक ही होती है ! यह सीखाने  वाला कौवा भी मेरा गुरु ही है !


  • अबोध बालक -- राग ,द्वेष ,चिंता ,काम ,लोभ ,क्रोध से रहित जीव कितना कोमल ,सोम्य और सुन्दर लगता है कितना सुखी और शांत रहता है यह मैंने अपने नन्हे बालक गुरु से जाना !


  • स्त्री -- एक महिला चूडियाँ पहने धान कूट रही थी ,चूड़ियाँ आपस में खड़कती  थीं ! वो चाहती  थी की घर आये मेहमान को इसका पता ना चले इसलिए उसने हाथों की बाकी चूड़ियाँ उतार दीं और केवल एक एक ही रहने दी तो उनका आवाज करना भी बंद हो गया !यह देख मेने सोचा की अनेक कामनाओ के रहते मन में संघर्ष उठते हैं ,पर यदि एक ही लक्ष्य नियत कर लिया जाए तो सभी उद्वेग शांत हो जाएँ ! जिस स्त्री से ये प्रेरणा  मिली वो भी मेरी गुरु ही तो है !


  • लुहार -- लुहार अपनी भट्टी में लोहे के टूटे फूटे टुकड़े गरम कर के हथोड़े की चोट से कई तरह के औजार बना रहा था ! उसे देख समझ आया की निरुपयोगी और कठोर प्रतीत होने वाला इन्सान भी यदि अपने को तपने और चोट सहने की तैयारी कर ले तो उपयोगी बन सकता है ! 


  • सर्प (सांप)-- दूसरों को त्रास देता है और बदले में सबसे त्रास ही पाता  है यह शिक्षा देने वाला भी मेरा गुरु ही है जो यह बताता है की उद्दंड ,आतताई, आक्रामक और क्रोधी  होना किसी के लिए भी सही नहीं है !


  • मकड़ी -- मकड़ी अपने पेट में से रस  निकाल कर उससे जाला बुन  रही थी और जब चाहे उसे वापस पेट में निगल लेती थी ! इसे देख कर मुझे लगा की हर  इंसान अपनी दुनिया  अपनी भावना ,अपनी सोच के हिसाब से ही गढ़ता है और यदि वो चाहे तो पुराने को समेट  कर अपने पेट में रख लेना और नया वातावरण बना लेना भी उसके लिए संभव है !


  • भ्रंग कीड़ा --भ्रंग कीड़ा एक झींगुर को पकड़ लाया और अपनी भुनभुनाहट से प्रभावित कर उसे अपने जैसा बना लिया ! यह देख कर मेने सोचा एकाग्रता और तन्मयता के द्वारा मनुष्य अपना शारीरिक और मानसिक कायाकल्प कर डालने में भी सफल हो सकता है !इस प्रकार भ्रंग भी मेरा गुरु बना !


24 गुरुओ का वृत्तान्त सुना कर दत्तात्रय ने राजा से कहा  --गुरु बनाने का उद्देश्य जीवन के प्रगति पथ पर अग्रसर करने वाला प्रकाश प्राप्त करना ही तो है ! और यह कार्य अपनी विवेक बुद्धि के बिना संभव नहीं है !  इसलिए सर्वप्रथम गुरु है -विवेक ! उसके बाद ही अन्य सब ज्ञान पाने के आधार बनते हैं !

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रविवार, 4 नवंबर 2012

अवधूत दत्तात्रेय के 24 गुरु ...






              अवधूत दत्तात्रेय के 24 गुरु ...


परम तेजस्वी अवधूत दत्तात्रेय का दर्शन पाकर राजा  यदु ने अपने को धन्य माना और विनयावनत होकर पूछा --" आपके शरीर ,वाणी और भावनाओं से प्रचंड तेज टपक रहा है ! इस सिद्धावस्था को पहुँचाने वाला ज्ञान आपको जिन सदगुरु द्वारा मिला हो उनका परिचय मुझे देने का अनुग्रह कीजिये "!


अवधूत ने कहा --"राजन! सदगुरु किसी व्यक्ति विशेष को नहीं मनुष्य के गुणग्राही दृष्टिकोण को कहते हैं !  विचारशील लोग सामान्य वस्तुओं और घटनाओं से भी शिक्षा लेते और अपने जीवन में धारण करते हैं ! अतएव उनका विवेक बढ़ता जाता है ! यह विवेक ही सिद्धियों का मूल कारण है !

अविवेकी लोग तो ब्रह्मा के समान गुरु को पाकर भी कुछ लाभ उठा नहीं पाते !इस संसार में दूसरा कोई किसी का हित साधन नहीं करता ,उद्धार तो अपनी आत्मा के प्रयत्न से ही हो सकता है !


मेरे अनेक गुरु हैं ,जिनसे भी मैंने ज्ञान और विवेक ग्रहण किया है  उन सभी को मै अपना गुरु मानता हूं !पर उनमे 24 गुरु प्रधान हैं ,ये हैं ---



  • पृथ्वी (धरती )-- सर्दी ,गर्मी ,बारिश को धेर्यपूर्वक सहन करने वाली ,लोगों द्वारा मल -मूत्र त्यागने और पदाघात जैसी अभद्रता करने पर भी क्रोध ना करने वाली ,अपनी कक्षा और मर्यादा पर निरंतर ,नियत गति से घूमने वाली पृथ्वी को मैंने गुरु माना है !


  • वायु (हवा)--  अचल (निष्क्रिय ) होकर ना बेठना ,निरंतर गतिशील रहना ,संतप्तों को सांत्वना देना ,गंध को वहन तो करना पर स्वयं निर्लिप्त रहना ! ये विशेषताएं मैंने पवन में  पाई और उन्हें सीख कर उसे गुरु माना !


  • आकाश (गगन)--  अनंत और विशाल होते हुए भी अनेक ब्रह्मांडों को अपनी गोदी में भरे रहने वाले ,ऐश्वर्यवान होते हुए भी रंच भर अभिमान ना करने वाले आकाश को भी मैंने गुरु माना  है !


  • जल (पानी)-- सब को शुद्ध बनाना ,सदा सरल और तरल रहना ,आतप को शीतलता में परिणित करना ,वृक्ष ,वनस्पतियों तक को जीवन दान करना ,समुद्र का पुत्र होते हुए भी घर घर आत्मदान के लिए जा पहुंचना -इतनी अनुकरणीय महानताओ के कारण जल को मैंने गुरु माना !


  • यम -- वृद्धि पर नियंत्रण करके संतुलन स्थिर रखना ,अनुपयोगी को हटा देना ,मोह के बन्धनों से छुड़ाना और थके हुओं को अपनी गोद में विराम देने के आवश्यक कार्य में संलग्न यम  मेरे गुरु हैं !


  • अग्नि -- निरंतर प्रकाशवान रहने वाली , अपनी उष्मा को आजीवन बनाये रखने वाली , दवाव पड़ने पर भी अपनी लपटें उर्ध्वमुख ही रखने वाली ,बहुत प्राप्त करके भी संग्रह से दूर रहने वाली ,स्पर्श करने वाले को अपने रूप जैसा ही बना लेने वाली ,समीप रहने वालों को भी प्रभावित करने वाली अग्नि मुझे आदर्श लगी ,इसीलिए उसे गुरु वरण कर लिया !


  • चन्द्रमा -- अपने पास प्रकाश ना होने पर भी सूर्य से याचना कर पृथ्वी को चांदनी का दान देते रहने वाला परमार्थी चन्द्रमा मुझे सराहनीय लोक-सेवक लगा !         विपत्ति में सारी  कलाएं क्षीण हो जाने पर भी निराश होकर ना बेठना  और फिर आगे बढ़ने के साहस को बार -बार करते रहना  धेर्यवान चन्द्रमा का श्रेष्ठ गुण कितना उपयोगी है ,यह देख कर मैंने उसे अपना गुरु बनाया !



  • सूर्य -- नियत समय पर अपना नियत कार्य अविचल भाव से निरंतर करते रहना ,स्वयं प्रकाशित होना और दूसरों को भी प्रकाशित करना ,नियमितता ,निरंतरता ,प्रखरता और तेजस्विता के गुणों ने ही सूर्य को मेरा गुरु बनाया 1



  • कबूतर -- पेड़ के नीचे बिछे हुए जाल में पड़े दाने को देखकर लालची कबूतर आलस्यवश अन्यत्र ना गया और उतावली में बिना कुछ सोचे विचारे  ललचा गया और जाल में फँस पर अपनी जान गवां बैठा ! यह देख कर मुझे ज्ञान हुआ की लोभ से ,आलस्य से और अविवेक से पतन होता है ,यह मूल्यवान शिक्षा देने वाला कबूतर भी मेरा गुरु ही तो है !


  • अजगर -- शीत ऋतु में अंग जकड जाने और वर्षा के कारण मार्ग अवरुद्ध रहने के कारण भूखा अजगर मिटटी खा कर काम चला रहा था और धेर्य पूर्वक दुर्दिन को सहन कर रहा था ! उसकी इसी सहनशीलता ने उसे मेरा गुरु बना दिया !



  • समुद्र (सागर) -- नदियों द्वारा निरंतर असीम जल की प्राप्ति होते रहने पर भी ,अपनी मर्यादा से आगे ना बढ़ने वाला ,रत्न राशि के भंडारों का अधिपति होने पर भी नहीं इतराने वाला , स्वयं खारी होने पर भी बादलों को मधुर जल दान करते रहने वाला  समुद्र भी मेरा गुरु है !


  • पतंगा -- लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपने प्राणों की परवाह न करके अग्रसर होने वाला पतंगा  जब दीपक की लौ पर जलने लगा तो आदर्श के लिए ,अपने लक्ष्य के लिए उसकी अविचल निष्ठा ने मुझे बहुत प्रभावित किया ! जलते पतंगे को जब मैने गुरु माना तो उसकी आत्मा ने कहा इस नश्वर जीवन को महत्त्व ना देते हुए अपने आदर्श और लक्ष्य के लिए सदा त्याग करने को उद्धत रहना चाहिये !



दोस्तों ,आज बस इतना ही ,बाकी 12 गुरु अगली पोस्ट पर ........     आभार 

एक निवेदन --please comment जरूर कीजिएगा ........

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