बिटिया की सीख......
पिछली गर्मियों की बात है ,गर्मी अपने पूरे शबाब पर थी ! सूरज अपनी धधकती आग से सारे वातावरण को जलाये जा रहा था ! तापमान 45 *c से भी ज्यादा हो रहा था ! ऐसे में एक दिन मैं भरी गर्मी में अपनी duty से घर आया ,पसीने में लथपथ ,गर्मी से बेहाल ! घर आते ही पंखा चला कर पसीना सुखाने लगा ! तभी मेरी साढ़े तीन साल की बेटी मेरे पास आई , बोली --पापा,आपको बोहत पसीना आ रहा है , मैं आपकी हवा कर देती हूँ ! मैंने कहा --बेटा पंखा चल रहा है, पसीना अभी सूख जाएगा ! बिटिया बोली --नहीं पापा मैं कर देती हूँ ना ! वो मेरे पास आई और अपने छोटे से मुंह से मेरे मुंह पर फूँक से हवा करने लगी ,और अपनी छोटी छोटी हथेलियों से मेरे माथे का पसीना पोछने लगी !
सच मानिए ,उसके छोटे से मुँह से दी गई वो हवा AC की हवा से कहीं ज्यादा ठंडी और तृप्तिदायक थी ,उस हवा की ठंडक मेरी आत्मा तक पहुंची ! बेटी ने सहज ही अपनी बालसुलभ निस्वार्थ अपनेपन से मुझे दो बातों का अहसास करा दिया !
पहला ये की हम लोग भी अपने बड़ो का ,माता-पिता ,दादा-दादी आदि का ध्यान तो रखते हैं, उनके घर आते ही उन्हें पानी पेश करते हैं ,चाय बनाते हैं ,लेकिन ये सब यंत्रवत करते हैं ! हमारी इस क्रिया में जिम्मेदारी का अहसास दिखता है लेकिन वो जो प्यार ,अपनेपन और आपसी संवाद का भाव है ,उसे express नहीं करते ,अपनेपन को उजागर नहीं करते ! है ना ?
दूसरा ये की जननी तो जननी ही होती है ! प्रकृति ने नारी को बनाया ही ऐसा है ,उसका निर्माण ही कुछ ऐसे तत्वों से किया है जो उसमे समवाय सम्बन्ध से सदा ही विद्यमान रहते हैं , जैसे अपनापन ,वात्सल्य , दूसरों का ध्यान रखना , दुसरे की पीड़ा को महसूस करना ! और आज की छोटी सी बिटिया में भी भविष्य की माँ होने का jean छुपा है ! लड़कों में भी कई गुण होते हैं लेकिन जो ध्यान रखने का ,पालने का भाव ,सहकार और ममत्व का भाव स्त्री में जन्मजात होता है वो पुरुष में उतना नहीं होता !
और आज के वर्तमान समय में माता-पिता का जितना ध्यान बेटियाँ रखती हैं ,उतना बेटे नहीं रख पाते , हकीकत है !
बेटियां वो अनमोल हीरा हैं ,जिन्हें कांच के चमकते हुए टुकड़े के लिए उपेक्षित कर दिया जाता है !
आपकी माँ भी एक बेटी ही है ,और आपकी पत्नी भी किसी की बेटी ही है ! और तो और आप भविष्य में अपने लाडले ,कुलदीपक के लिए जो बहू लायेंगे वो भी किसी की बेटी ही होगी !
दोस्तों, आपने चाक देखा है या बैलगाड़ी का पहिया ? ये दोनों एक कील (धूरी ) पर घूमते हैं ,देखने में पूरा पहिया घूमता दिखता है सिवाय कील के ! लेकिन उस कील उस धूरी के बिना उस पूरे समग्र पहिये का कोई अस्तित्व ही नहीं है !
दोस्तों, स्त्री,माँ ,बेटी भी वही धूरी है और बाकी का समग्र पहिया है सारा समाज , सारा संसार !
बिना धूरी के हम पहिये के चलने की कल्पना नहीं कर सकते ,उसी तरह बिना स्त्री ,जननी के हम समाज और परिवार की भी कल्पना नही कर सकते ,है ना ?
अंत में यही कहूँगा ---बेटियाँ अनमोल हैं ,उनकी कद्र कीजिये !
डॉ नीरज .....
--------------------------------------------------------------------------------------------------