may14

गुरुवार, 27 सितंबर 2012

geeta saar in hindi




                 करिष्ये वचनं तव .....

 दोस्तों महाभारत आज भी जारी है हमारे मन मे !  आज भी अर्जुन यानी हम  मोहग्रस्त है !  मन हमे अपने कर्त्तव्य पथ से पीछे खींच रहा है ! आलस और डर हमे कर्त्तव्य पथ पर आरूढ़ नहीं होने दे रहे हैं !   दुर्बलता हम पर हावी हो रही है !   काम से ज्यादा उसके परिणाम की चिंता हमे खाए जा रही है !   मन जकड रहा है , तन निढाल है !  सामने कामों का पहाड़ है !    अवसर हाथ से निकला जा रहा हैं !   हम चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं !   है ना ?
उठिए ,  हताशा छोड़िये,  गीता के वचनों से अपने आप को चार्ज कीजिये और चल पड़िए अपने लक्ष्य की तरफ ,  जल्दी कीजिये   समय हाथ से रेत की तरह फिसला जा रहा है ................


कुरुक्षेत्र के मैदान मे कोरवों और पांडवों की सेनायें आमने -सामने आ चुकी थी !   युद्ध प्रारंभ होने ही वाला था !   पांडवों की कमान अर्जुन के हाथों मे थी !   तभी सामने  कोरवों की सेना मे अपने पितामह भीष्म ,  गुरु द्रोणाचार्य ,  कृपाचार्य,  और अपने कोरव भाइयों को देख कर अर्जुन अचानक मोहग्रस्त हो गया ,  उसका मनोबल कमजोर पड़ने लगा ,  मन पलायनवादी होने लगा ! सात अक्षोहिनी सेनाओं का महाबली केवट  विकलता के क्षण मे पतवार फ़ेंक नौका को मझधार मे छोड़कर पलायन करने को तत्पर हो उठा !
कातर अर्जुन अपने सारथि श्री कृष्ण से गुहार कर उठा ---  "केशव ,मुझे ये राज्य नहीं चाहिये !   मुझे विजय नहीं चाहिये !   मुझे सुख नहीं चाहिये !   मुझे कुछ नहीं चाहिये !   मै अपने बंधुओं को नहीं मार सकता !   मैं युद्ध नहीं कर सकता ! मैं युद्ध नहीं करूँगा .........!

निर्णय के इन क्षणों मे अर्जुन की ऐसी कायरता और हताशा को देख पार्थसारथी विस्मय से भर अर्जुन को फटकार उठे -----
"असमय ऐसी क्लीवता !   ऐसा तो कोई श्रेष्ठ वीर नहीं करता !   ऐसे आचरण से तू स्वर्ग पाना चाहता है ?  हृदय की यह कैसी अनुचित दुर्बलता ! छोड़ दे ,  छोड़ दे ,  पार्थ  मन की इस तुच्छ दुर्बलता को छोड़ दे !   और हुंकार कर   उठ खड़ा हो वीरों की भांति   युद्ध करने ! "

  व्याकुल अर्जुन ने वेदना से भरे स्वर मे कहा -- ,'मधुसुदन !   पितामह और गुरुवर!  मै इन पर बाण कैसे चलाऊंगा ?  नहीं माधव ! नहीं !     असंभव !    मै  भिक्षा मांग कर अपना जीवन चला  लूँगा   पर युद्ध नहीं करूँगा !

"पार्थ भयभीत ना हो  ! मृत्यु से भयभीत ना हो !  तू सोचता है की अपने पितामह .गुरु और बंधुओं का वध यदि तू करेगा तो ही वे मृत्यु को प्राप्त होंगे ! और यदि तू उनका वध नहीं करेगा तो ये चिरायु हो जाएंगे ?  कितना बड़ा भ्रम है तेरा अर्जुन !   यह स्पष्ट समझ ले ,हर मनुष्य अपने कर्मफल के अनुसार मृत्युवरण करता है !   तू किसी की मृत्यु का कारण नहीं !   पार्थ तू मात्र निमित्त है ..........! 

कर्म कर !  किन्तु परिणाम मे आसक्ति मत रख !   जय-पराजय जैसे कर्मफल से मुक्त होकर   अपना कर्त्तव्य पालन कर ! 

करना है इसलिए कर !
 कर्म के लिए कर्म कर ,  फल के लिए नहीं !  
 निर्विकार और निरपेक्ष भाव से कर्म कर !  
 यह मत सोच की कर्म का कर्ता तू है !   स्वयं को कर्म मे लिप्त ना कर क्योंकि तू करने वाला नहीं है !  
तू सोचता है की तू अपनी इच्छा से जो चाहे कर लेगा ,  तो यह तेरा भ्रम है !   जो तू चाहेगा वो ना होगा  और जो ना चाहेगा वो हो जाएगा !   क्योंकि नियामक तू नहीं !  तू पूरी शक्ति से चाह कर भी किसी को मार नहीं सकता और ना चाह कर भी तू मारेगा !

इसलिए अपने मन से अहंकार को निकाल दे कि  तू कर्ता है ! अतः अनासक्त भाव से अपना कर्त्तव्य पूरा कर !   परिणाम पर मत जा !   फल पर मत जा !

पार्थ !   यदि तू ईश्वर की उपासना करना चाहता है तो अपने कर्मों के द्वारा ही कर !   समर्पित कर दे अपने समस्त कर्म ईश्वर को !   जल मे रह कर भी जैसे कमल पत्र जल से ऊपर रहता है ,  उसी प्रकार कर्म करते हुए भी तू कमल पत्र की तरह कर्म से ऊपर उठा रह ......!

मै ही महाकाल हूँ अर्जुन ?  जो आज दिखाई देता है ,  वह कल ना रहेगा !  
 इसलिए तू उठ ,  खड़ा हो !   समय को पहचान और यशस्वी बन !

पार्थ ! मोह ,ममता ,संकोच ,डर सब त्याग दे !   यदि त्याग ना सके तो अपनी ये दोष दुर्बलताएँ मुझे सोंप दे !
आज तेरे सामने उज्जवल भविष्य का द्वार खुला हुआ है !   भाग्यवान मनुष्य ही ऐसा स्वर्ण अवसर पाते हैं !  और तू स्वर्ग द्वार पर पहुँच कर भी पलायन करना चाहता है ?

सोभाग्यशाली वीर !   उठ खड़ा हो ,  क्योंकि आज आत्मिक उन्नति भी तेरी मुट्ठी मे है और भोतिक प्रगति भी तेरी मुट्ठी मे है ,यश भी तेरी मुट्ठी मे है !  उठा ले लाभ इस पवित्र अवसर का !

उठ जा ! खड़ा हो जा ! गांडीव धारण कर ! युद्ध कर ! 

अर्जुन कर्मपथ पर दृढ चरणों से शिला के सामान खड़े हो चुके थे !  नेत्रों मे ज्वाला थी !   हाथों मे गांडीव और गांडीव मे टंकार !   उनके अधरों से एक दृढ स्वर निकला   "करिष्ये वचनं तव "
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ये आर्टिकल पूज्य गुरुदेव के ज्ञान के सागर की कुछ बूँदें हैं !
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यह भी देखें ---geeta saar in hindi -2  

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मंगलवार, 25 सितंबर 2012

The secret of happy married life



                      सुखी दाम्पत्य जीवन का रहस्य 

एक व्यक्ति संत कबीर के पास पहुंचा और उनसे प्रश्न किया की   -'सुखी दाम्पत्य जीवन का क्या रहस्य है ?'    कबीर बोले -अभी थोड़े समय मे समझाता हूँ !   कुछ समय बाद कबीर ने अपनी पत्नी को आवाज लगाई--'यहाँ बड़ा अँधेरा है ,जरा दीपक तो रख जाओ !   उनकी पत्नी आईं और एक दीपक चोखट पर रख गईं !   उस आदमी को बड़ा आश्चर्य हुआ की दिन के समय मे काफी प्रकाश होते हुए भी कबीर ने पत्नी को बुलाया और वो भी बिना किसी प्रतिवाद के दीपक रख कर चली गईं !   थोड़ी देर बाद पत्नी ने दोनों के लिए भोजन परोसा !  जब दोनों ने खाना आरम्भ किया तो कबीर की पत्नी ने पुछा --;खाने मे कोई कमी तो नहीं है ?    कबीर ने कहा ,  बिलकुल नहीं ,खाना बहुत ही स्वादिष्ठ बना है !    उस आदमी को फिर आश्चर्य हुआ की सब्जी मे नमक कम होते हुए भी कबीर ने भोजन की तारीफ़ की ! 
अब संत कबीर ने उस व्यक्ति को सम्बोधित करते हुए कहा ---अब समझ मे आया की सुखी दाम्पत्य जीवन का क्या रहस्य है ?
वो रहस्य है की हम एक दुसरे के साथ तालमेल बिठाना सीखें !   एक दुसरे की कमियाँ निकाल कर उसको नीचा दिखाने  के बजाए   यदि हम उसके गुणों को सराहें ,  उसकी तारीफ़ करें तो गृहस्थी एक तपोवन बन जाए ! 

सुखी दाम्पत्य जीवन के सूत्र ----
  • एक दुसरे का सम्मान करें ! क्योंकि जो सामने वाले को देंगे वो ही आपको वापस मिलेगा ! 
  • आपस मे विश्वास करना सीखें ! शक की बुनियाद पर सुखी गृहस्थी की इमारत कभी खड़ी नहीं होती !
  • 100% perfect कोई नहीं है ,आप भी नहीं ! इसलिए अपने spouse की कमियों को नजर अंदाज करना सीखें !
  • spouse को अपना quality time दें !      कभी कभी हम अपने काम मे इतने व्यस्त हो जाते हैं की हम अनजाने ही अपने जीवनसाथी को नजरंदाज करने लगते हैं !    उसके हिस्से का समय अपने काम मे खर्च करने लगते हैं !   वो आपसे बात करने के लिए तरस जाते हैं ,धीरे धीरे उनकी ये तड़प आक्रोश मे बदल जाती है !  फिर इसका परिणाम लड़ाई ,बहस के रूप मे सामने आता है ! इसलिए  अपने साथी को समय दें !
  • जब किसी कारण से दूसरा गुस्से मे हो ,बहस के मूड मे हो तो आप वहां से हट जाएँ ,या चुप हो जाएँ ,ये बात कहने मे जितनी आसान है ,अमल करने मे उतनी ही मुश्किल ,है ना ? फिर भी कोशिश करें ,क्योंकि गुस्से की  आग को आग से नहीं बुझाया जा सकता ,उसके लिए सब्र और शांति का पानी जरूरी है ! 
  • सुन्दरता तलाशें लेकिन तन की नहीं ,मन की गुणों की !  क्योंकि आदमी का सम्मान उसके रंगरूप से नहीं उसके गुणों से होता है ! कागज का गुलाब कितना भी सुन्दर हो ,लेकिन भगवान को अर्पित तो असली गुलाब ही होता है !
  • अपने गृहस्थी के पहिये पर जीवनसाथी की प्रशंसा और तारीफ़ की ग्रीस समय समय पर लगाते रहे ताकि गृहस्थी का पहिया बिना आवाज के smoothly चलता रहे !

थियोडोर पारकर ने अपने विवाह केसमय  अपनी पत्नी के साथ अपने सम्बन्ध  स्नेहपूर्ण और दोस्ताना रखने के लिए एक आचार सहिंता बनाई!उसने शादी के  दिन ही अपनी diary मे 10 निश्चय लिख लिए और संकल्प किया की वो दोनों इनका कड़ाई के साथ पालन करेंगे ---

1 .आवश्यक कारण ना हो तो जीवनसाथी की इच्छा का कभी विरोध ना करना !
2 . उसके प्रति अपने सभी कर्तव्यों का उदारता से पालन करना !
3 .  कभी कटु व्यवहार ना करना !
4 . उसके स्वाभिमान को किसी भी प्रकार ठेस नहीं पहुँचाना !
5 .  उस पर कभी हुकुम नहीं चलाना ,आखिर वो आपका जीवनसाथी है   गुलाम नहीं !
6 .  उसकी शारीरिक निर्मलता को प्रोत्साहन देना ! तारीफ़ करना !
7 .  उसके काम मे हाथ बटाना!
8 .  उसके छोटे मोटे दोषों को नजरअंदाज करना !
9 .  उसके प्रति अपने दायित्व और कर्तव्यों का पालन करना !
10 . उसके लिए भी परमात्मा से प्रार्थना करना ! आखिर दो पहिये की गाडी मे दोनों पहियों का सही होना जरूरी है ,है ना ?

और सबसे जरूरी बात ,अपने आपस के झगड़ों मे ,आपस के मतभेदों मे कभी किसी तीसरे को शामिल नहीं करना ,चाहे वो कोई भी हो ,आखिर ये आपके आपस का मामला है ! 
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एक निवेदन --- कृपया अपने comments के माध्यम से ये जरूर बताएं ,की आपको ये लेख कैसा लगा ! बताईएगा   जरूर !
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शनिवार, 22 सितंबर 2012

osho quotes in hindi -mahaveer vaani




osho quotes in hindi -mahaveer vaani

दोस्तों   ओशो रजनीश ने इस संसार के करोड़ों व्यक्तियों के विचार और जीवन को प्रभावित किया है ! आपके दिए प्रवचनों ने जीवन को एक नई दिशा दिखाई है ! ओशो के अनमोल वचनों को किसी एक आर्टिकल या किसी एक किताब मे नहीं बाँधा जा सकता ! मेरी कोशिश रहेगी की ओशो की जिन बातों ने मुझे प्रभावित किया,मार्गदर्शन दिया ,उन्हें मे आप सब के साथ share करूँ !
दोस्तों ,प्रस्तुत आर्टिकल ओशो की book--महावीर वाणी (संकल्प साधना ) से है ! 

ओशो के अनमोल वचन ---
  • हम अनुकरण से जीते हैं ! एक आदमी पेशाब करने चला जाए तो कई लोगों को ख्याल हो जाएगा की पेशाब करने जाना है ! संक्रामक है ! हम एक दूसरे के हिसाब से जी रहे हैं ! 

  • काल निर्दयी है ' इसका अर्थ यह है की समय आपकी चिंता नहीं करता ! इसलिए ,इस भरोसे मत बैठे रहना की आज नहीं कल कर लेंगे ,कल नहीं परसों कर लेंगे ! पोस्टपोन मत करना ,स्थगित मत करना ! क्योंकि जिसके भरोसे स्थगित कर रहे हो ,उसको जरा भी दया नहीं है ! 

  • कल कभी भी नहीं होता है ! जब भी हाथ मे आता है, तो आता है आज ! और उसको भी कल पर छोड़ देते हैं ! हम जीते ही नहीं ,स्थगित किये चले जाते हैं ! कल जी लेंगे ,परसों जी लेंगे !

  • जो भी किया जा सकता है ,उसी वक़्त किया जा सकता है ! जिसे आप कल पर छोड़ रहे हैं ,जान लें ,आप करना नहीं चाहते हैं !

  • अनुभव सदा सही रहेगा ,जानकारी सदा सही नहीं रहेगी !

  • शरीर की दो तरह की जरूरतें हैं --भरने की और निकालने की ! जो चीज नहीं है  उसे भरो ,जो चीज ज्यादा हो जाए उसे निकालो ! यह शरीर की कुल दुनिया है ! 

  • एक क्षण को भी बेहोश मत जी ! उठ ,तो ये जानते हुए उठ ,की तू उठ रहा है ! बैठ तो जानते हुए बैठ ,की तू बैठ रहा है ! तेरे भीतर कुछ भी ना हो पाए जो तेरे बिना जाने हो रहा है !

  • जो मांगता है उसे मिलता नहीं  और जो नहीं मांगता उसे बहुत मिल जाता है !

  • मोह के बिना दुःख होता ही नहीं !  जब भी दुःख होता है ,मोह से होता है ! 

  • दूसरे को दुःख देना मेरे हाथ मे कहाँ है ,जब तक दूसरा दुखी होने को तैयार ना हो ! 

  • मै आपको  कहीं और ध्यान ले जाने को नहीं कह रहा हूँ ! आप जो कर रहे हैं उसको ही ध्यान बना लें ! इससे आपके किसी काम मे बाधा नहीं पड़ेगी ,बल्कि सहयोग बनेगा ! क्योंकि जितने ध्यान पूर्वक काम किया जाए ,उतना कुशल हो जाता है !

  • प्रयास तो करना ही होगा ,लेकिन उस प्रयास को एक बोझिलता जो बनाएगा,वह हार जाएगा !

  • आदमी एक कदम चलता है एक बार मे ,कोई मीलों की छलांग नहीं लगाता ! और एक एक कदम चल कर आदमी हजारों मील चल लेता है ! लेकिन जो आदमी ये देखता है की अगर एक कदम चल लेता हूँ तो एक कदम हजार मील मे कम हुआ ! और अगर जरा सा भी कम होता है तो एक दिन सागर को भी चुकाया जा सकता है ! 

  • जिसने पहला उठा लिया है ,वह अंतिम भी उठा लेगा ! पहले मे ही अड़चन है ,अंतिम मे अड़चन नहीं है !

  • पहला कदम आधी यात्रा है ,चाहे यात्रा कितनी ही बड़ी क्यों ना हो !

  • आदमी बीतता है ! समय नहीं बीतता !  हम खर्च होते हैं,समय खर्च नहीं होता !

  • लेकिन कल तो कभी आता नहीं ,जब भी आता है ,आज ही आता है ! कल भी आज ही आएगा ! 

  • हम जो हैं वही हम सोच पाते हैं ! हम अपने ढंग से सोचते हैं !


  • भूल भी ठीक की तरफ ले जाने का मार्ग है ! इसलिए भूल करने से डरना नहीं चाहिये ,नहीं तो कोई आदमी ठीक तक कभी पहुँचता नहीं ! भूल करने से जो डरता है वह भूल मे ही रह जाता है ! खूब दिल खोल कर भूल करनी चाहिये ! एक ही बात ध्यान रखनी चहिये की एक ही भूल दुबारा ना हो !

  • जो कल हो चुका ,उससे सीखें और पार जायें ,दुहरायें मत ! जहाँ से गुजर गए वहां से गुजर ही जाएँ ,उसको पकडे मत रखें ! 

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साभार --संकल्प साधना (महावीर वाणी ) पुस्तक से 
 सौजन्य: ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन
 प्रकाशक -- डायमंड पॉकेट बुक्स

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मंगलवार, 18 सितंबर 2012

निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येषु सर्वदा .....




                                   निर्विघ्नं कुरु में देव  सर्व कार्येषु सर्वदा .....


दोस्तों ,
गणेश चतुर्थी  के पावन अवसर पर आप सभी को हार्दिक मंगल कामनाएं ! 

दुआ है   
रिद्धि सिद्धि के दाता,विघ्नहर्ता ,सुखकर्ता ,सदबुद्धि के दाता गजानन
        achhibatein के सभी सुधि पाठक जनों  और 
                                         इस संसार के सभी प्राणियों को 
                                                             अपने आशीष से नवाजें !

सृष्टी के सर्वप्रथम पूज्य देव गणेश  जी हैं !  गजानन जी रिद्धि -सिद्धि ,शुभ -लाभ ,बुद्धि के दाता हैं !  गणेश जी का हर अंग प्रत्यंग हमे जीने का सही ढंग बताता है ! 

गज  मुख --गज अर्थात ब्रह्म !  बड़ा सर बड़ी सोच को दर्शाता है !  हमे जीवन मे हमेशा बड़ा और श्रेष्ठ ही चिंतन करना चाहिये !

चार भुजाएं --ये हमे चार विशेषताओं को अपने पुरुषार्थ से पाने का इशारा करती हैं , वे हैं --समझदारी ,इमानदारी ,जिम्मेदारी  और बहादुरी !  ये 4 भुजाएं धर्म ,अर्थ ,काम  और मोक्ष की भी परिचायक हैं !

इन 4 भुजाओं मे गजानन 4 चीजें धारण करते हैं --पाश ,अंकुश दन्त और वर !

पाश --मोहनाशक है !  हमे हमेशा सजग रहना चाहिये , कभी भी किसी भी परिस्थिति मे मोह ग्रस्त नहीं होना चाहिये , अपना विवेक बनाये रखना चाहिये ! 
अंकुश --यानी रोक !  हमे अपनी बुरी आदतों ,आलस्य, प्रमाद ,लोभ ,अहंकार ,वासना  इर्ष्या पर अंकुश रखना चाहिये ! 
दन्त --दुष्ट नाशक ,शत्रु विनाशक है !  हमे अपने उपरोक्त आलस,डर,तनाव, भय जैसे शत्रुओं का विनाश कर देना चाहिये !
वर --यानी अभिष्ट की प्राप्ति !  अच्छाई की ,सफलता की ,श्रेष्टता की ,सुख की प्राप्ति का वर हमे पाना चाहिये ! 

लम्बोदर --अच्छी पाचन शक्ति होने के कारण गणेश जी को लम्बोदर भी कहते हैं !  जो सारी  सृष्टी की सभी चीजें अपने उदर मे समा लेते हैं ! हमे भी लम्बोदर सा होना चाहिये  , दूसरों की कमी ,बुराई ,अपनी अच्छाई ,अहंकार , कटाक्ष ,जैसी बातों को अपने अन्दर ही रखना चाहिये !

सूप  जैसे कान -- सूप असली को  नकली से अलग करने का कार्य करता है !  चीजो को छान कर ,कचरा हटा कर फिर उन्हें रखता है !  हमे भी सूप की तरह अच्छी और श्रेष्ठ बातों को ही अपने कान के अन्दर जाने देना चाहिये !  गलत और खराब बातों को बाहर ही फटक देना चाहिये ! 

वाहन मूषक (चुहा)-- चूहा विवेचक ,विभाजक ,भेद्कारक और बुद्धि का सूचक है !
गणेश अर्थात----विवेक             चुहा अर्थात ----बुद्धि 
चुहे  पर गणेश जी का बिराजना यह दर्शाता है की हमे भी अपनी बुद्धि को विवेक तले ही रखना चाहिये !  क्योंकि  बांसुरी बनाने वाली बुद्धि कब बन्दूक बना दे ,पता नहीं ! 

पुनः आप सभी को गणेश चतुर्थी की शुभ कामनाएं ..........

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रविवार, 16 सितंबर 2012

आज पेट की छुट्टी है ....




                                            आज पेट की छुट्टी है ....

दोस्तों कहते हैं जब परमात्मा ने दुनिया की रचना की तब 6 दिन उन्होंने इस पूरे ब्रह्माण्ड को बनाया और सातवें दिन आराम किया ! उसी तर्ज पर इस संसार मे 7 दिन के सप्ताह की रचना हुई , जिसमे 6 दिन काम के और एक दिन आराम का रखा गया !

सोचिये अगर sunday की छुट्टी ना हो तो ?  सोचने मे ही घबराहट होती है ना ?  तब आपको लगातार काम करना पड़ेगा  क्योंकि  7 दिन  के  बाद वापस पहला दिन ही आ जाएगा !  इसीलिए ये व्यवस्था की गई है की 6 दिन आप खूब काम करें और सातवें दिन relex रहे ,आराम करें ! अपने 6 दिन की थकान दूर करें !  और अपनी energy वापस gain करें ताकि monday morning आप वापस  energetic रहें पूरे week work  करने के लिए !

दोस्तों आपके पेट का स्वभाव भी आप जैसा ही है ,सप्ताह मे अगर आप को sunday की छुट्टी ना मिले तो आप नाखुश और चिडचिडे हो जाएंगे ! है ना ?

अब आप अपने पेट पर हाथ रख कर ईमानदारी से अपने आप को ये बतायें की पिछली बार आपके पेट ने sunday (छुट्टी)  कब मनाया था !बल्कि sunday के दिन तो पेट को कहीं ज्यादा काम करना पड़ता है !  है ना ?

जिस  तरह बिना आराम  लगातार काम करने से आप चिडचिडे,थके हुए ,उनींदे और बेमन से काम करते हैं !  उसी तरह बिना पेट को आराम दिए उसे लगातार खाना पचाने के काम मे लगाये रखने पर आपको अजीर्ण ,बदहजमी ,कब्ज गैस ,भूख ना लगाना ,मोटापा जैसी परेशानियाँ होने लगती हैं ! 

इसलिए कृपा कर 15 दिन नहीं तो एक महीने मे एक बार तो अपने पेट को छुट्टी दीजिये ! उसे अपने आप को ,अपनी cells को recharge करने का समय दीजिये ! ताकि वो पुनः आपके खाने को अच्छे से पचाने का काम कर सके ! 

जिस दिन पेट की छुट्टी करें उस दिन पानी और liquid ज्यादा लें ! चाहें तो नीबू पानी शहद  मिला कर ले सकते हैं !  नारियल पानी रसीले फल ,मोसमी ,नारंगी ,अनार ,पपीता  जैसे फलों का सेवन करें !  दूध पियें !

एक   बात और ,पेट के rest के बाद उसे light diet ही दें ,बहुत ज्यादा और बहुत heavy food ना लें नहीं तो पेट का सारा आराम ,हराम हो जाएगा ! 

सोचने की बात है 6 दिन अपनी कार चला  कर sunday को उसे wash करते हैं ,उसका oil air check करते हैं !  आप अपने computer को भी काम करने के बाद shut down कर देते हैं ,है ना !  तो क्यों नहीं अपने पेट को भी relex करते ! 

तो   आइये आज से ही हम अपने पेट को भी sunday मानाने की छुट्टी दें !   
         तो ..........दे रहे है ना छुट्टी 

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शनिवार, 15 सितंबर 2012

पर उपदेश कुशल बहुतेरे ...



                               पर उपदेश कुशल बहुतेरे ...


दोस्तों ,ये कहावत आपने अक्सर सुनी होगी !   इसका आशय है की दूसरों को ज्ञान देना बहुत आसान है !  लेकिन खुद अमल करना उतना ही मुश्किल !   हम आज उस समाज मे रह रहे हैं  जहाँ हर कोई एक दुसरे को ज्ञान देने पर तुला है !  जहाँ उपदेश देने वालों की भी कमी नहीं है , वहीँ उपदेश सुनने वाले भी बहुत हैं !  उपदेश दिए भी जा रहे हैं ,उपदेश लिए भी जा रहे हैं ,लेकिन उन पर अमल कोई नहीं कर रहा ! 

ऐसा अधिकतर होता है की किसी को परेशानी मे देख  बजाए उसका दुःख बांटने के हम उसे उपदेश देने लग जाते हैं !   किसी की छोटी सी गलती हमे अक्षम्य लगती है , लेकिन हमारी बड़ी से बड़ी गलती पर भी हम ये बर्दाश्त नहीं कर पाते की कोई हमे कुछ कह भी दे !

 सामने वाले का हाथ भी कट जाए तो उसे भी हम ज्ञान देने से नहीं चूकते ,'  क्यों चिल्ला रहा है ?  हाथ ही तो कटा है !  कोनसा पहाड़ टूट गया ! सही हो जाएगा !  क्या कमजोर आदमी है !  जरा होसला रख !   लेकिन वहीँ हमे जरा सी एक सुई भी चुभ जाए फिर देखिये सारा आसमान हम सर पर उठा लेते हैं !
एक सच्चा इंसान वही है जो वो अपनाता है ,वही दूसरों को बतलाता है ! 

एक बार एक बहुत बड़े महात्मा थे !  रोज उनके पास सेंकडों लोग  प्रवचन सुनने आते थे !  महात्मा जी भी खूब ज्ञान ,ध्यान की बातें उनको बताते थे !  उनकी समस्याओं का समाधान करते थे !  मोह माया से दूर रहने का उपदेश देते थे !  एक बार गाँव मे एक व्यक्ति का जवान बेटा मर गया ! उस व्यक्ति पर तो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा !  रो रो कर उसका बुरा हाल हो गया !  वो अपनी सुध बुध खो बेठा !   उसकी ऐसी अवस्था देख गाँव के लोगों ने महात्मा जी से कहा !  महात्मा जी उसके घर गए , उसको समझाया , उपदेश दिया ,"बेटा ,दुनिया तो आनी -जानी  है , जो आया है वो तो जाएगा भी !  शरीर तो नश्वर है ,आत्मा अमर है !  मोह माया व्यर्थ है ! अपने को मजबूत बनाओ ,इस दुःख से बाहर निकलो !   ऐसे जरा सी बात पर ऐसे रोना चिल्लाना अच्छा नहीं है ! 
महात्मा जी के उपदेश और प्रवचनों को सुन कर वह आदमी थोडा सही हुआ !  उसने अपनी भावनाओं को काबू मे किया !  महात्मा जी को प्रणाम कर बोला , आपने मेरी आँखें खोल दी!  मुझे दुःख से निकलने का रास्ता बता दिया !  महात्मा जी के भक्तों की संख्या मे एक का इजाफा हो गया ! वो रोज महात्मा जी के दर्शन के लिए जाने लगा !
एक दिन जब वो दर्शन के लिए गया तो देखा ,महात्मा जी बुरी तरह दहाड़े मार कर रो रहे हैं !  छाती पीट रहे हैं !  आंसू बह बह कर उनकी दाड़ी को गीला किये जा रहे हैं !  लोगों का हुजूम महात्मा जी को घेरे खड़ा है !  उसने अपने पास खड़े व्यक्ति से पूछा ,'क्या हुआ भाई , ये महात्मा जी ऐसे क्यों रो रहे हैं ?   उसने कहा ,"देखता नहीं , सामने महात्मा जी की बकरी मरी पड़ी है !   उस आदमी को बड़ा आश्चर्य  हुआ ! वो महात्मा जी के पास गया और बोला  ,"महात्मा जी ,आपको यूँ एक बकरी के लिए रोना चिल्लाना शोभा नहीं देता !  उस दिन मेरे लड़के के मरने पर आप मुझे मोह माया से दूर रहने का उपदेश दे रहे  थे !  और आज एक बकरी के लिए आप पछाड़ खा कर रो रहे हैं ?
तब महात्मा जी ने रोते हुए कहा ,"अरे भाई ,लड़का तो तेरा था ,पर   बकरी तो मेरी थी !   


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सोमवार, 10 सितंबर 2012

Lokmanya Bal Gangadhar Tilak Quotes in hindi






स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा ' इस नारे को देने वाले बाल  गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई ,1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के एक गाँव में हुआ था।  आप भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता थे !   आपने सर्वप्रथम पूर्ण स्वराज्य की मांग उठाई थी !   गीता पर लिखी आपकी टीका और गणेश महोत्सव इस देश को आपकी देन हैं !   पूर्ण स्वराज्य के लिए लड़ते हुए  1 अगस्त, सन 1920 ई. में बंबई में तिलक की मृत्यु हो गई।   आपको  श्रद्धांजलि देते हुए महात्मा गाँधी ने उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता और नेहरू जी ने भारतीय क्रांति के जनक की उपाधि दी।

लोकमान्य बल गंगाधर तिलक के अनमोल कथन ---

  • एक बहुत प्राचीन सिद्धांत है की ईश्वर  उनकी ही सहायता करता है ,जो अपनी सहायता आप करते हैं ! आलसी व्यक्तियों के लिए  ईश्वर अवतार  नहीं लेता ! वह उद्योगशील व्यक्तियों के लिए ही अवतरित होता है ! इसलिए कार्य करना शुरु कीजिये !

  • मानव प्रकृति ही ऐसी है की हम बिना उत्सवों के नहीं रह सकते ! उत्सव प्रिय होना मानव स्वाभाव है ! हमारे त्यौहार होने ही चाहियें !

  • आप कठिनाइयों ,खतरों और असफलताओं के भय से बचने का प्रयत्न मत कीजिये ! वे तो निश्चित रूप से आपके मार्ग मे आनी ही हैं!

  • कर्त्तव्य  पथ पर गुलाब-जल नहीं छिड़का होता है  और ना ही उसमे गुलाब उगते हैं !

  • आप केवल कर्म करते जाइए ,उसके परिणामों पर ध्यान मत दीजिये !

  • प्रातः काल मे उदित होने के लिए ही सूर्य  संध्या काल मे अन्धकार के गर्त मे चला जाता है !  अन्धकार मे जाए बिना प्रकाश प्राप्त नहीं हो सकता !  गर्म हवा के झोंकों मे जाए बिना ,कष्ट उठाये बिना ,पैरों मे छाले पड़े बिना ,स्वतन्त्रता नहीं मिल सकती !

  • बिना कष्ट के कुछ नहीं मिलता !

  • जनमत जैसी एक  चीज होती है जिससे स्वेच्छाचारी और तानाशाह भय खाते हैं !

  • अपने हितों की रक्षा के लिए यदि हम स्वयं जागरूक नहीं होंगे तो दूसरा कोन होगा ? हमे इस समय सोना नहीं चाहिये ,हमे अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिये !

  • दुसरे के मुह से पानी नहीं पिया जा सकता ,हमे पानी स्वयं पीना होगा ! वर्तमान व्यवस्था (अंग्रेजी हुकूमत ) हमे दुसरे के मुह से पानी पीने के लिए मजबूर करती है ! हमे अपने कुवें से अपना पानी खीचना और पानी पीना चाहिये !

  • आपको ये नहीं मानना चाहिये की आप जो श्रम करेंगे उससे उत्पन्न फसल को आप ही काटेंगे !   सदेव ऐसा नहीं होता ! हमे अपनी पूर्ण शक्ति  से श्रम करना चाहिये और उसका परिणाम आने वाली पीढ़ी के भोगने के लिए छोड़ देना चाहिये ! याद रखिये ,आप जो आम आज खा रहे हैं  उनके पेड़ आपने नहीं लगाये थे !

  • अगर आप नहीं दोड़ सकते तो ना दोडें,लेकिन जो दोड़ सकते हैं , उनकी टांग क्यों खींचते हैं ?

  • महान उपलब्धियां सरलता से नहीं मिलतीं और सरलता से मिली उपलब्धियां महान नहीं होतीं!

  • आपके लक्ष्य की पूर्ती स्वर्ग से आये किसी जादू से नहीं हो सकेगी !  आपको ही अपना लक्ष्य प्राप्त करना है ! कार्य करने और कढोर श्रम करने के दिन यही हैं !

  • कायर ना बनें ,शक्तिशाली  बनें और विशवास रखें की ईश्वर आपके साथ है !

  • आपका दोष क्षमता की कमी या साधनों की कमी की दृष्टि से नहीं है , वरन दोष इस बात मे है की आपमें संकल्प का अभाव है !  आपने उस संकल्प को अपने मे उत्पन्न नहीं किया है जो आपको पहले ही उत्पन्न कर लेना था ! संकल्प ही सब कुछ है ! आपको संकल्प शक्ति इतना साहस दे सकती है की आपको लक्ष्य पाने से कोई नहीं रोक सकता !

  • जब  लोहा गरम हो  तभी उस पर चोट कीजिये और आपको निश्चय ही सफलता का यश प्राप्त होगा !

  • मराठी मे एक कहावत है -घोडा अड़ा क्यों ? पान सडा क्यों ?  और रोटी जली क्यों ? इन सबका एक ही उत्तर है -पलटा ना था !

  • आपके विचार सही हों ,आपके लक्ष्य ईमानदार हों ,और आपके प्रयास संवेधानिक हों तो मुझे पूर्ण विश्वास है की आपको अपने प्रयत्नों मे सफलता मिलेगी ! 

  • मनुष्य का प्रमुख लक्ष्य भोजन प्राप्त करना ही नहीं है ! एक कौवा भी जीवित रहता है और जूठन पर पलता है ! 
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शनिवार, 8 सितंबर 2012

कुछ प्रेरणादायक शेर .............



                                                    कुछ प्रेरणादायक शेर .............

दोस्तों ,
जंगल के दावानल के लिए सिर्फ इक चिंगारी ही जरुरी होती है ,उसी तरह हमारी प्रतिभा और शक्ति के प्रस्फुटन के लिए भी   सिर्फ कोई इक विचार ,लेख,वाक्य ,मंत्र,या किसी की कही कोई बात ही काफी होती है जो हमारे जीवन को u-turn दे देती है ,है ना ?
दोस्तों येही सोच कर मै कुछ अपने और कुछ संकलित शेर (आभार सहित) आप सब की नजर कर रहा हूँ ..... 

  •           इक पत्थर की भी तक़दीर संवर सकती है, 
                    शर्त ये है,की सलीके से तराशा जाए !

  •          आइना बनने से बेहतर है की पत्थर बनो,
                   जब तराशे जाओगे ,तो देवता कहलाओगे 

  •          आदमी वो नहीं ,हालात बदल दे जिनको,
                   आदमी वो है,जो हालात बदल देते हैं!

  •          काम आओ दुसरो के ,मदद गैर की करो,
                  ये कर सको अगर तो इबादत है जिंदगी!

  •         हम तो दरिया हैं ,कोई राह बना ही लेंगे,
                 आप पत्थर हो ,बता दो किधर जाओगे?

  •        वही है जिन्दा ,जिसकी आस जिन्दा है,
                 वही है जिन्दा ,जिसकी प्यास जिन्दा है,
                 श्वास लेने का नाम ही जिंदगी नहीं,
                 जिन्दा वही है ,जिसका 'विश्वास'जिन्दा है!


  •       हो के मायूस ना यो शाम से ढलते रहिये,
                जिंदगी और है ,सूरज से निकलते रहिये,
                 एक ही पाँव पे ठेरोगे तो थक जाओगे ,
                 धीरे धीरे ही सही पर,चलते rahiye!


  •      दोस्ती का भी है ,मोसम से ताल्लुक कितना ,
               रुत बदलती है ,तो कुछ लोग बदल जाते हैं!


  •      में तो अकेला ही चला था ,जानिबे मंजिल मगर ,
               लोग साथ आते गए ,और कारवा बनता गया !


  •       अहसास मर ना जाए ,तो इंसान के लिए ,
                काफी है इक राह की ,ठोकर लगी हुई !


  •       खूबियाँ भी उसमे कुछ होंगी जरूर,
               क्यों किसी के एब ही देखा करूँ ?


  •      सोच कर कोई ताल्लुक तोडना ,
               टूट कर पत्ते ,हरे होते नहीं,


  •      है जान के साथ काम इंसान के लिए,
               बनती नहीं है जिंदगी में बे काम किये ,
               जीते हो तो कुछ कीजिये ,जिन्दो की तरह.
               मुर्दों की तरह जिए ,तो क्या ख़ाक जिए!


  •       ना सोचो अकेली किरण क्या करेगी ,
                तिमिर में अकेली ,किरण ही बहुत है! है ना 
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बुधवार, 5 सितंबर 2012

HAPPY TEACHER'S DAY...


HAPPY TEACHER'S DAY...
  दोस्तों,
 आज शिक्षक दिवस पर आप सभी को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनायें ! 
दुआ है की जिंदगी एक अच्छे और RESPONSIBLE  TEACHER की तरह आपको जिंदगी मे अच्छे अच्छे अनुभव और ज्ञान दे ! 
TEACHER  वो नहीं होता जो स्कूल या कॉलेज की चार दिवारी के अंदर आपको किताबों का ज्ञान कराता  है !  शिक्षक शिक्षा देता है ,लेकिन गुरु ज्ञान देता है !  और दोस्तों गुरु की महत्ता तो भगवन से भी ऊँची मानी गई  है !  लेकिन गुरु की शिक्षा से कही ज्यादा जरूरी है शिष्य की पात्रता ! अगर आप मे काबिलियत है ,सीखने का जज्बा है मेहनत करने का माद्दा है ,सच्चा समर्पण है ,निष्ठा है तो एक मिटटी का गुरु भी आप को कहीं ज्यादा काबिल बना सकता है ! गुरु अपना ज्ञान हर student को बराबर ही देता है लेकिन ये शिष्य की पात्रता है की वो उस ज्ञान को कितना ग्रहण करता है ! 
संसार की हर वस्तु और घटना आप को ज्ञान और राह दिखाती है ! अवधूत दत्तात्रेय के चींटी ,मक्खी, गणिका जैसे 24 गुरु थे ! ज्ञान तो कही भी मिल सकता है ,लेने वाला होना चाहिये !     गुरु एक नाव की तरह होता है जो  संसार के भंवर रूपी सागर मे आपको सुरक्षित एक किनारे से दुसरे किनारे तक पार लगाता है !

दोस्तों पहले   गुरु शिष्य का संबंध आत्मिक होता था ,गुरु ना सिर्फ किताबी ज्ञान देता था बल्कि अपने student के व्यक्तित्व का निर्माण भी करता था ,students के मन मे भी अपने गुरु के प्रति आदर और सम्मान होता था ! लेकिन आज परिपेक्ष्य बदल गए हैं !  शिक्षा सेवा नहीं अब व्यवसाय हो गई है ! teacher भी अब गुरु जैसे नहीं (सब नहीं पर अधिकतर ) व्यापारी जैसे हो गए हैं , जो की ----rupee/hour के हिसाब से पढ़ाते हैं ! student का कोर्से पूरा करना ही जिनका मकसद है , उसकी गलतियों को सुधारने ,उसको अच्छे संस्कार देने का  ना तो उनके  पास समय है और ना ही इच्छा !
आज ना teacher के मन मे अपने students के लिए वो अपनापन है और ना हीं students के मन मे  गुरु के लिए वो सम्मान और अदब ,है ना?
लेकिन आज भी कुछ गुरु हैं जो गुरु की सच्ची गरिमा को बरकरार रखे हुए हैं ,और कुछ शिष्य भी हैं जो अपना शिष्यत्व बनाये हुए हैं ! 
एक जमाना था जब रास्ते मे गुरु के मिलने पर शिष्य दौड़कर    उनके पास जाता था , उनसे मिलता था   और एक आज का समय है की अगर teacher रास्ते मे सामने से आ भी रहा होगा तो student मिलना तो दूर नमस्ते करना भी जरूरी नहीं  समझेगा ! पीड़ादायक है पर यही हकीकत है ! आज teacher 's day पर आइये थोडा आत्म चिंतन करें ! और कोशिश करें ना सिर्फ एक अच्छा शिष्य बनने की बल्कि एक गरिमामय ,अच्छा गुरु बनने की भी ! 
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रविवार, 2 सितंबर 2012

जीवन मे सफलता के10 जरूरी नियम---




                जीवन मे सफलता के10 जरूरी  नियम  ---


दोस्तों सफलता संकल्पवानों   के संकल्प मे निवास करती है !  सफलता का मूल मंत्र है आत्मविश्वास  ! आत्मविश्वास उस दूरदर्शिता का दूसरा नाम है जिसके साथ अटल संकल्प और अदम्य साहस जुडा रहता है !   आत्मविश्वास यानी अपने  ऊपर प्रबल आस्था और गहन निष्ठां!  ये  स्वयं में आस्था और निष्ठा ही सफलता का मार्ग दिखाती हैं !  जीवन मे सफलता कैसे मिले ?आत्मबल कैसे बढे ?
आइये देखते हैं वे 10 सूत्र जो जीवन मे आत्मबल बढाने और सफलता पाने के लिए जरूरी हैं --------------

1 . सहजता का नियम (law of SIMPLICITY )-----
शांत मन और सहज रूप से किया गया हर काम सफल होता है !   बिना वजह जल्दीबाजी काम को बनाने की अपेक्षा बिगाडती अधिक है !अस्त व्यस्त दिनचर्या ,जल्दीबाजी ,अव्यवस्था ,दूसरों से आगे निकलने की आपाधापी से हमे सफलता नहीं   तनाव और परेशानी ही मिलती है ! जीवन मे सफलता पाने के लिए हर परिस्थिति मे शांत और सहज रहिये !

2.कर्म का नियम (law of Work)-----
दोस्तों सिर्फ सोचने या प्लान बनाने से ही सफलता नहीं मिलती उसके लिए कर्म भी करना पड़ता है !  किसान सिर्फ सोच कर ही फसल नहीं  उगाता   उसके लिए उसे बीज बोने  उनकी देखभाल करने जैसा कर्म भी करना पड़ता है ! आपकी इच्छा रुपी गाडी अपने आप मंजिल तक नहीं जा सकती ,उसे कर्म रुपी tyre पर चलना ही पड़ता है ,  तभी वो अपनी मंजिल तक जा पाती  है ! काम जितना सहज ,नियमित और श्रेष्ठ होगा सफलता की दर भी उतनी ही ज्यादा होगी !

3.कामना का नियम (law of Hopes)----
सफलता पाने के लिए पहले आपको मन मे सफल होने की कामना करनी होगी ,  तभी आप यथार्थ मे भी सफल हो पाएँगे !  क्योंकि काम भी मन की इच्छा से ही पूरे होते हैं , मनमाफिक काम हम बड़े आराम और जल्दी से पूरा कर लेते हैं   जबकि जिस काम मे हमारा मन नहीं होता वो हमे भारी और उबाऊ लगता है , है ना ?   इसलिए जो जरूरी है उस काम की कामना भी मन के लिए जरूरी है !

4.परवाह का नियम (law of Care)----
हमे जितनी अपनी सफलता और विकास की परवाह होती है उतनी ही दूसरों के लिए भी होनी चाहिये  !  परवाह की ये भावना हमे उदार बनती है और  JEALOUSY,ENMITY,MALICE जैसी बुरी भावनाओ से हमें दूर भी रखती है !  और अगर हम दूसरों की परवाह करेंगे ,  तो जाहिर है दुसरे भी हमारी परवाह करेंगे !  कहावत भी है की "जो दूसरे को एक गुलाब देता है ,थोड़ी खुशबू देने वाले के हाथ मे भी रह जाती है "!

5.विश्वास का नियम (law of Trust)---
आत्मविश्वास सफलता का UNERRING WEAPON है!   ये अगर हमारे अन्दर हो तो इंसान कुछ भी कर सकता है , कुछ भी बन सकता है ,दुनिया का इतिहास ऐसे ही  उन  थोड़े से व्यक्तियों का इतिहास है  जिनमें आत्मविश्वास कूट कूट कर भरा था !  असफलता तभी मिलती है जब हमे अपने ऊपर ,  अपनी क्षमताओं पर विश्वास नहीं होता !  नास्तिक वो नहीं जिसका परमात्मा मे विश्वास  नहीं है ,नास्तिक वो है जिसमे आत्मविश्वास ही नहीं है !

6.आदर का नियम(law of Respect )----
एक गाना है ,'प्यार दो प्यार लो ' है ना ,  उसीतरह दोस्तों जीवन मे 'आदर दो आदर लो '!   दूसरी बात लोग आपकी उतनी ही इज्जत करेंगे जितनी की आप अपने स्वयं की इज्जत करते हैं !  अगर आप खुद को ही हीन ,inferior मानते हैं तो दुसरे भी आपको inferiority की नजर से ही देखेंगे !  इसलिए सफलता के लिए जरूरी है की आप खुद का भी आदर करें और दूसरों का भी !

7 .सक्रियता का नियम (law of Activity   )----
जो जीवन मे सफलता पाना चाहते हैं वो भाग्य और भविष्य के भरोसे हाथ पर हाथ धरे बेठे नहीं रहते , बल्कि वो कुछ करते रहने मे विश्वास रखते हैं! और सफलता के प्रति सक्रिय हो जाते हैं !  उनकी यह सक्रियता उन्हें प्रबल प्रयास और प्रचंड पुरुषार्थ के लिए प्रेरित करती है , जिससे उनमें साहस और बल का संचार होता है !  और असफलता के भंवर मे भी असीम धेर्य का परिचय देते हुए ऐसे व्यक्ति सक्रियता से उस भंवर को पार कर जाते हैं ,और सफलता तक पहुँच जाते हैं!

8 .परोपकार का नियम (law of Benevolence )----
दूसरों के लिए बिना किसी स्वार्थ के कुछ करने की भावना ही परोपकार है !  परोपकार खेत मे बोये  जाने वाले बीज के सामान है ! जब परोपकार किया जाता है तो कुछ भी दिखाई नहीं देता पर जब उसकी फसल पक जाती है तो वो सदभावना और प्रेम के रूप मे लहलहाने लगती है !

9.कृतज्ञता का नियम (law of  Gratitude )----
दूसरों के परोपकार का बदला केवल कृतज्ञता से ही चुकाया जा सकता है !  क्योंकि कृतज्ञ होने से विनम्रता आती है , और ऐसे इंसान का सभी सहयोग करते हैं ,और वह सफल हो जाता है !  किसी ने हमारे लिए कुछ भी अच्छा  किया हो ,हमे सदा उसके प्रति कृतज्ञ होना चाहिये !  किसी का धन्यवाद करने से हम छोटे नहीं हो जाते  बल्कि वो हमारे बढ़प्पन को ही दिखाता है ! 

10 .बलिदान का नियम(law of Sacrifice )---
ये सफलता का आखिरी  और जरूरी नियम है!  सफल वो ही हो सकते हैं जो त्याग ,बलिदान और समर्पण की भावना रखते हैं !  बलिदान अपने आलस्य का , अपनी सुख सुविधाओं का , अपने आराम का ! बिना  Sacrifice के, बिना समर्पण के सफलता मुश्किल नहीं असंभव भी होती है ! 
 ये आत्मविश्वास के Igneous सूत्र हैं !
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दोस्तों ये article पूज्य गुरुदेव पंडित श्री राम शर्मा आचार्य जी के ज्ञान के समुद्र की कुछ बूँदें हैं ,जो हमे सफलता के मार्ग पर चलने की दिशा दिखाती हैं !