तस्मै श्री गुरुवः नमः
दोस्तों वैसे तो गुरु पूर्णिमा ३ जुलाई को निकल गई है ,लेकिन जिस तरह सूरज की importance को हम किसी एक दिन विशेष मै नहीं बाँध सकते है ! उसी तरह माता-पिता और गुरु की महत्ता को भी हम father's day ,mother's day या गुरु पूर्णिमा के दिन उत्सव मना कर ही नहीं छोड़ सकते! जिस तरह सूर्य की importance हमारी पूरी जिन्दगी मै रहती है, उसी तरह माता,पिता और गुरु की महत्ता और मार्गदर्शन भी हमारी जिंदगी के हर पल मै रहता है!
दोस्तों माता पिता तो हमें भगवान देते हैं, पर गुरु तो हमे ही बनाना पड़ता है! गुरु का आशय सिर्फ ये नहीं है की जिनकी बाल दाडी बढ़ी हो जो किसी आश्रम या कही एकांत मै रहते हो ! गु का मतलब होता है-अन्धकार और रु अर्थात प्रकाश ! जो इंसान हमे अँधेरे से उजाले ,गलत से सही और निराशा से विश्वास की ओर ले जाए वही गुरु होता है ,ये गुरु अब आपके teacher भी हो सकते हैं, आपके अच्छे दोस्त,पडोसी,कोई जानवर ,पेड़ नदी या कुछ भी जो आपको कोई दिशा दे , वही आपका गुरु होता है ! basically गुरु एक नाव की तरह होता है जो आपको जिंदगी के एक किनारे से दुसरे किनारे तक ले जाता है , नदी के भंवर मैं आपको बचने की दिशा दिखाता है!
दोस्तों जिंदगी मै गुरु का होना बहुत जरूरी है ! एकलव्य ने भी धनुर्विद्या सिखने के लिए , मिटटी के ही सही पर गुरु बनाये थे ! जब हम किसी tension या परेशानी मै होते हैं तब गुरु ही हमे उससे बाहर निकलने का रास्ता दिखाते हैं! जो लोग ये मानते हैं की हमे जीवन मै किसी गुरु या मार्गदर्शक की जरुरत नहीं है , वो उस कार की तरह होते हैं जो यह मानती है की वो बिना ड्राईवर के भी चल सकती है !
एक बार नारद जी भगवान विष्णु से मिलने गए, बातो बातो मै भगवन ने नारद जी से उनके गुरु के बारे मे पूछा तो नारद जी ने कहा प्रभु मुझे गुरु की कहा जरुरत है , विष्णु जी ने कहा की गुरु तो बहुत जरूरी होता है, इसलिए इंसान तो इंसान , देवताओं के भी गुरु होते हैं, फिर आपका गुरु कैसे नहीं है! नारद जी ने अहंकार भरी वाणी से कहा , मै अपने आप मे सक्षम हूँ मुझे गुरु की क्या जरुरत है..............! उनकी दंभ भरी बातो से नाराज होकर विष्णु भगवान ने उन्हे श्राप दे दिया की जाओ और हमारी बनाई हुई 84 लाख योनियों मे भ्रमण करो ! ये बात सुन कर नारद जी के पेरों से जमीन निकल गयी , उन्होंने कहा ,प्रभु एक योनी मे ही 70 -80 साल निकल जाते हैं तब 84 लाख योनियों मै तो ???? और सिर्फ आदमी की योनी ही नहीं सारी योनियों मे से (जिनमे हाथी , घोडा कुत्ता बिल्ली पक्षी इत्यादि )मुझे गुजरना पड़ेगा ! उन्होंने विष्णु जी से क्षमा मांगी और इस श्राप से निकलने का उपाय पूछा ! तब विष्णु जी ने कहा की जाओ और जो भी पहला इंसान तुम्हे दिखे उसे अपना गुरु बनाओ ! फिर वही तुम्हे इससे निकलने का रास्ता दिखाएगा !
नारद जी बड़े मायूस से चल दिए , तभी उन्हें सबसे पहले एक मछुआरा दिखा जो नदी मे जाल डाल कर मछली पकड़ रहा था ! नारद जी ने जाकर उस मछुआरे से कहा महोदय क्या आप मेरा गुरु बनना पसंद करेंगे , मै आपको अपना गुरु बनाना चाहता हूँ ! मछुआरे ने नजर उठा कर नारद जी को देखा और कहा ,' जाओ बाबा टाइम खोटी मत करो मुझे मछली पकड़ने दो ! तब नारद जी ने बड़े ही याचना भरे शब्दों मे अपनी पूरी बात उस मछुआरे को बताई और कहा की मेरे गुरु बन कर अब आप ही मुझे कोई रास्ता दिखा सकते हैं!
तब मछुआरे ने उनका गुरु बनना स्वीकार किया और कहा की देखिये नारद जी , ऐसा है की अब आप विष्णु जी के पास वापस जाइए और उनसे कहिये की प्रभु, मै आपकी 84 लाख योनियों मे जरूर भ्रमण करूँगा , लेकिन पहले मे उन सभी 84 लाख योनियों की जानकारी चाहता हूँ ! मुझे पता तो हो की मुझे किन किन योनियों मे जाना है ! नारद जी ने जाकर विष्णु जी से कहा प्रभु मैंने गुरु बना लिया है और उनके कहे अनुसार मै ये जानकारी लेना चाहता हूँ ! भगवान विष्णु मुस्कुराये और उन्होंने 84 लाख योनियों की जानकारी देने वाली अलोकिक किताब (encyclopedia ) नारद जी को दे दी! नारद जी उस book को लेकर वापस उस मछुआरे गुरु के पास आये ! और कहा गुरु जी ये रही 84 लाख योनियों की किताब ! तब उस मछुआरे ने कहा ,' देख क्या रहे हो इसे जमीन पर रखो और इसके चारो तरफ भ्रमण करो, इसका एक चक्कर लगाओ , हो गया तुम्हारा 84 लाख योनियों का भ्रमण ! नारद जी ने ऐसा ही किया और जब वो उस book को वापस लेकर विष्णु जी के पास गए तब उस book को खोल के देख कर मुस्कुराते हुए विष्णु जी ने कहा , नारद तुम्हारा तो 84 लाख योनियों का भ्रमण तो पूरा होगया!नारद जी बहुत खुश हुए और उन्होंने गुरु की महत्ता को स्वीकार किया !
दोस्तों इस कहानी को कहने का सिर्फ इतना सा ही मकसद है की जिन्दी मे गुरु रुपी torch का होना बहुत जरूरी है ! जिंदगी मे गुरु जरूरी है लेकिन एक सही गुरु को ढूढना , वो आपकी काबिलियत है........कहा भी है...
पानी पीजिये छान कर और गुरु कीजिये जान कर