प्रभु, तुम्हारा विश्वास शक्ति बने ,याचना नहीं ....
- हे प्रभु ! मेरी केवल यही कामना है की में संकटों से घबरा कर भागूं नहीं ,उनका सामना करूँ ! इसलिए मेरी ये प्रार्थना नहीं है की संकट के समय तुम मेरी रक्षा करो ,बल्कि में तो इतना ही चाहता हूँ की तुम ,मुझे उनसे जूझने का बल दो !
- मैं ये भी नहीं चाहता की जब दुःख -संताप से मेरा चित्त व्यथित हो जाए ,तब तुम मुझे सांत्वना दो ! मैं अपनी अंजलि के भाव -सुमन तुम्हारे चरणों में अर्पित करते हुए इतना ही मांगता हूँ की तुम मुझे अपने दुखों पर विजय प्राप्त करने की शक्ति दो !
- जब किसी कष्ट दायक संकट की घडी में मुझे कहीं से कोई सहायता न मिले तो मैं हिम्मत न हारूँ ! किसी और स्रोत से सहायता की याचना न करूँ ,न उन घड़ियों में मेरा मनोबल क्षीण होने पाए !
- हे प्रभो ! मुझे ऐसी द्रढ़ता और शक्ति देना जिससे की मैं कठिन से कठिन घड़ियों में भी ,संकटों और समस्याओं के सामने भी दृढ रह सकूँ और तुम्हें हर पल अपने साथ देखते हुए मुसीबतों ,परेशानियों को हंसी खेल समझ कर अपने मन को हल्का रख सकूँ ! मैं बस यही चाहता हूँ !
- मेरे आराध्य ! तुम्हारा विश्वास हमेशा मेरे ह्रदय -मंदिर में दीपशिखा की तरह अखंड ,अविराम प्रज्वलित रहे ! मेरे प्रारब्ध के प्रबल झंझावत ,परिस्थितियों की भयावह प्रतिकूलताएँ ,स्वयं मेरी अपनी मनोग्रंथियाँ इस ज्योति को बुझा तो क्या ,कंपा भी ना सकें !
- विश्वास की ये ज्योति हर पल मेरे अस्तित्व में आत्मबल की उर्जा और तात्कालिक सूझ का प्रकाश उड़ेलती रहे ! यह विश्वास मेरे लिए शक्ति बने -याचना नहीं ,संबल बने -क्षीणता नहीं !
- कहीं ऐसा न हो की स्वयं के तमो गुण से ,आलस से घिर कर ,तुम्हारे विश्वास का झूठा आडम्बर रख कर कर्म से विमुख हो जाऊं ,अपने कर्त्तव्य से मुख मोड़ लूँ !
- चाहे जैसी भी प्रतिकूलताएं हों लेकिन प्रभु मुझे इतना कमजोर मत होने देना की मैं आसन्न संकटों को देख कर हिम्मत हार बैठूं और ये रोने बैठ जाऊं की अब क्या करूँ ,मेरा सर्वस्व छिन गया !
- मैं न अहंकारी बनूँ और न ही अकर्मण्य ! स्वयं को तुम्हारे चरणों में समर्पित करते हुए मेरी इतनी ही चाहत है की जीवन संग्राम में रणबांकुरे योद्धा की तरह जुझारू बनूँ ! तुम्हारे विश्वास की शक्ति से भयावह संकटों के चक्रव्यूहों का बेधन करूँ ,उन्हें छिन्न-भिन्न करूँ !
- प्रभु ! तुम्हारा विश्वास मेरे लिए वीरता का पर्याय बने , आलस्य नहीं ! वीरता का संबल बने ,आतुरता का आकुलाहट नहीं ! बस इतनी ही कृपा करना !
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