चन्दन का पेड़
एक बार एक बहुत घना जंगल था ,जिसमे एक गरीब किसान रहा करता था ! वो रोज लकड़ी काट कर उसको जला कर कोयला बनाता था और उसे जंगल के बाहर एक गाँव में जाकर बेच देता था , कोयला बेच कर जो भी पैसे मिलते थे ,उससे घर का सामान खरीदता था , इसी तरह उसकी जिंदगी चल रही थी ! एक दिन उस राज्य का राजा शिकार करते हुए रास्ता भटक कर उस घने जंगल में उस किसान की झोंपड़ी के पास आ पहुंचा ! किसान और उसकी पत्नी ने राजा का अपनी सामर्थ्य अनुसार बहुत सत्कार किया ! उनकी निश्छल सेवा से खुश होकर राजा ने उस किसान को एक चन्दन के पेड़ का बाग़ उपहार में दे दिया !
किसान अपनी रोज की आदत की तरह रोज चन्दन का एक पेड़ काटता उसे जला कर कोयला बनाता और उसे बाजार में ओने-पोने दाम में बेच आता ! ऐसे ही उसने लगभग पूरा बाग़ कोयला बना कर बेच दिया ! देव योग से एक बार बारिश कई दिनों तक हुई ,धूप नहीं निकली ! मजबूरी में किसान को चन्दन की लकड़ी को ही बाजार में ले जाना पड़ा ! वो रस्ते में सोचता हुआ जा रहा था की इस बार तो में कोयला भी नहीं बना पाया , पता नहीं इस लकड़ी के मुझे क्या दाम मिलेंगे ,वैसे भी ये गीली हो चुकी है !
ये ही सोचते सोचते गाँव का बाजार आ गया ,वो जैसे ही बाजार में घुसा ,बहुत सारे लोगों ने उसे घेर लिया ! कहा ऐसी खुशबू वाली लकड़ी हमने आज तक नहीं देखी ! बाजार में आये कई रईसों ने उस लकड़ी के गट्ठर को हजारो रुपये में खरीद लिया ! किसान ढगा सा खड़ा रह गया वो न ढंग से खुश हो पा रहा था और न दुखी ! वो खुश था की उसे एक ही दिन में हजारों रुपये मिल गए लेकिन उसे बहुत अफ़सोस हो रहा था की उसने अब तक सोने के मोल वाले पेड़ों को मिटटी के मोल बेच दिया ! बेचारा किसान .......
दोस्तों क्या आप को नहीं लगता की वो किसान और कोई नहीं हम ही हैं ! है ना ? जो इस सुर दुर्लभ अनमोल काया और मनुष्य जीवन को मिटटी की तरह बर्बाद किये जा रहे हैं !
हम अपनी पूरी जिंदगी को यूँ ही गँवा देते हैं बिना कुछ सार्थक हासिल किये , फिर अंत में समझ आता है और पछतावा भी होता है की अरे मैंने इस जीवन को यूँ ही बर्बाद कर दिया , कुछ हासिल ही नहीं कर पाया ! ये मेरा जीवन जो चन्दन की तरह इस संसार में महक सकता था ,कोयले की तरह ही बन कर रह गया !
ये जीवन और ये शरीर जिसमे पूरी सामर्थ्य थी विश्व विजेता बनने की , इंदिरा गाँधी , बिल गेट्स , अभिताभ बच्चन ,ओबामा,नेपोलियन , विवेकानंद या ऐसा ही कोई चन्दन सा पेड़ बनने की , इसे मैंने अपने आलस्य ,प्रमाद ,भय ,दुर्बलता की अग्नि में जला कर कोयले सा बना दिया !
बजाये जीवन के अंत में पछताने के क्यों न हम अभी से ही अपनी महक (सुगंध ) इस धरा पर फैला दें ! क्योंकि भले ही हमें याद नहीं या हम भूल चुके हैं अपनी सामर्थ्य और एक मनुष्य होने के मूल्य को ,फिर भी आखिर हम है तो एक चन्दन का पेड़ ही ,है ना ??
डॉ नीरज यादव
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प्रेरक कहानी .
जवाब देंहटाएंgood one
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