पूर्वाग्रह छोडें ....
दोस्तों,
ऐसा अधिकतर होता है की हम किसी व्यक्ति विशेष के बारे मे अपनी कोई धारणा बना लेते हैं ! और वो धारणा इतनी मजबूत बनाते हैं कि वो व्यक्ति चाहे कितनी भी कोशिश कर ले ,हम हमारी धारणा नहीं बदलते ! या नहीं बदलना चाहते !हम पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो जाते हैं !
सामने वाले के द्वारा की गई हजार अच्छाईयां भी हमारी उसके प्रति अपनी धारणा को बदल नहीं पाती हैं ! बल्कि उसकी किसी एक बुराई को ही हम आधार बना कर उसका मूल्यांकन कर लेते हैं ,है ना ?
चाहे वो पति-पत्नी का रिश्ता हो ,दोस्तों का या कोई और व्यावसायिक संबंध ! सामने वाले इंसान से जाने अनजाने हुई गलती को हम इतना जीवन्त बना लेते हैं ,कि उसकी आड़ में उस बिचारे इंसान की लाखों अच्छाईयां भी दब जाती हैं !
एक बार 2 पहाड़ थे ,एक शक्कर का और एक नमक का ! दोनों पहाड़ पर एक-एक चींटी रहती थीं ! नमक वाली चींटी शक्कर वाली चींटी से किसी पुरानी बात पर खफा थी ! एक दिन शक्कर वाली चींटी ने नमक वाली चींटी को अपने यहाँ दावत पर बुलाया ! कहा --बहन ,ये शक्कर का पहाड़ है ,चाहे जितनी मिठास तुम यहाँ से लो ,जी भर कर शक्कर खाओ ! आशा है तुम्हें ये पसंद आएगा !
नमक वाली चींटी ने मुह बना कर कहा , --ठीक है ,देखती हूँ कितनी मिठास है तुम्हारे पहाड़ में और तुम्हारी मेहमाननवाजी में !
वो दिन भर पूरे शक्कर के पहाड़ को घुमती हुई खाती रही ! शाम को वापस जाने के समय शक्कर वाली चींटी ने पूछा --तो बहन ,कैसी लगी मिठास ?
मिठास ! काहे की मिठास , झूठ बोलने की भी हद है बहन , मुझे तो सब जगह खारापन (नमकीन ) ही महसूस हुआ ! मीठे का तो कहीं भी स्वाद ही नहीं आया !
ये सुन कर शक्कर वाली चींटी हतप्रभ रह गई ! बोली -ये क्या कह रही हो बहन ,पूरा पहाड़ ही शक्कर का है और तुम कह रही हो की तुम्हें मीठे की जगह खारा लगा ?
तो क्या में झूठ बोल रही हूँ ? मीठी चींटी की सारी मेहमाननवाजी को धता बता कर नमक वाली चींटी वापस चली गई !
दोस्तों, आप जानते हैं कि उसे शक्कर का पहाड़ खारा क्यों लगा ? क्योंकि वो शक्कर के पहाड़ पर आने के पहले अपने मुह में नमक का एक ढेला (टुकड़ा ) रख कर लाई थी ! इसीलिए उसे शक्कर में भी नमक का स्वाद आया !
क्या हम ने भी किसी अपने के प्रति नमक रूपी कडवाहट का पूर्वाग्रह तो नहीं रख रखा ?? जो उस सामने वाले इंसान की मिठास के पहाड़ को हम पर जाहिर नहीं होने दे रहा ,जरा सोचिएगा ??
आज के यथार्थ को स्वीकार करना और पूर्वाग्रह को छोड़ संबंधो को नए सिरे से नए रूप में स्वीकार करना ही बड़प्पन है !
केरी खट्टी होती है लेकिन पक कर आम बन कर वो ही बहुत मीठी भी हो जाती है ! अब ऐसे में हम कहें की इसे पहले हमने चखा था जब ये हरी थी ,अब ये पीली हो गई है (आम बन गई है ) लेकिन मुझे लगता है की ये अभी भी खट्टी ही होगी ......! (बेचारा आम )
ये ही पूर्वाग्रह है !
तो पूर्वाग्रह छोडिये ,कई नए और अच्छे सम्बन्ध आपका इन्तजार कर रहे हैं !
डॉ नीरज ........
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किसी भी पुर्वाग्रह से ग्रसित होकर किसी की भलाई नही की जा सकती,बेहतरीन आलेख.
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जवाब देंहटाएंसुंदर कल्पना गहन अनुभूति
बधाई
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आभार