डर के आगे जीत है ----
'चल छोटे '
नहीं भैया ,मुझसे नहीं होगा ,मैं यहीं ठीक हूँ !
पर हम यहीं रहने के लिए तो नहीं बने हैं ! हमें बाहर निकलना है ,आगे बढ़ना है ,आकाश की ऊँचाइयों को छूना है ! इसके लिए बाहर तो निकलना ही होगा ! अपने इस सुरक्षित खोल में रह कर हम अपना विकास कैसे कर सकते हैं ! बड़े ने कहा
पर भईया ,बाहर निकलते ही हो सकता है कोई जानवर हमको खा जाए ' !
बिलकुल हो सकता है !
या फिर कोई पैरों से हमें रोंद दे ?
ये भी संभव है !
और अगर इनसे बच भी गए तो तेज धूप ,आंधी के थपेड़े ,बरसात के पानी की मार ,इन सबको मैं कैसे सह पाऊंगा ! छोटा गिडगिडाया ,मैं यहीं ठीक हूँ भैया
छोटे ध्यान से सुन , ये सही है जो तुम कह रहे हो ,बाहर निकलने में बहुत चुनोतियाँ हैं ,खतरे भी हैं ,परेशानियाँ भी हैं !
लेकिन अगर जिंदगी में कुछ बड़ा बनना है तो इन सब चुनोतियों ,खतरों से तो पार जाना ही होगा ,इनका सामना भी करना ही होगा !
वो जीवन ही क्या ,जिसमे चुनोतियाँ ,खतरे न हों ! बिना जीवट वाला जीवन तो लुंज-पुंज पोचा ही रहता है , उसमे कोई प्रखरता की धार ही नहीं होती !
आओ,जमीन के बाहर निकलें ,देखें प्रकृति कितनी सुन्दर है ! अपने को विकसित करें ! जूझें ,संघर्ष करें ,डटे रहें तब ही तो हम भी हमारे पूर्वजों की तरह बन पाएंगे , विशालकाय आम के छायादार और फलदार वृक्ष !
जिसके फल (आम) जाने कितने लोगों की क्षुधा को तृप्त करेंगे ,जिसकी घनी छाँव में जाने कितने मुसाफिर भरी गर्मी में अपनी थकान उतारेंगे !
जाने कितने पक्षियों का हम आश्रय बनेंगे ! हमारा वजूद समाज के लिए होगा ! हम अपनी एक अच्छी पहचान बनाएँगे और जब मरेंगे तो हमारी लकड़ी अनगिनत लोगों का भला करेगी ,है ना ?
इसके लिए हमें इस जमीन के नीचे से ,अपने इस सुरक्षित खोल से तो बाहर निकलना ही होगा छोटे ! आम की बड़ी गुठली ने छोटी गुठली से कहा
पर भईया ,क्या हम यहीं नहीं रह सकते ?
छोटे ये सही है कि हम इस गुठली के अन्दर सुरक्षित हैं पर हम इसके अन्दर रहने के लिए ही तो नहीं बने हैं ! हममे विकास की,प्रगति की अनन्त संभावनाएं हैं ,जिसे हम अपने इस सुरक्षित खोल से बाहर जाकर ही पा सकते हैं !
इसमें रह कर तो हम कुंद हो जाएंगे ,जंग लग जाएगी ,यहीं गल जाएंगे ,मरना तो वैसे भी होगा !
तो क्यों न पुरे शबाब पर आकर ,पूरी तरह सफल जिंदगी जी कर ,अपना वजूद बना कर कुछ हासिल कर के मरें !
चल , बाहर चल ,अनंत आकाश हमारा इन्तजार कर रहा है !
पर भईया ,मुझे डर लगता है ,छोटी गुठली ने कहा
अरे छोटे ,तुझे पता है ,डर के आगे ही जीत होती है ! जो अपने डर से पार पा लेता है ,अपनी कमजोरियों और दुर्बलताओं को पीछे छोड़ अज्ञात में छलांग लगा देता है ,सफलता के ,उन्नति के मणि-मुक्तक तो उसे ही मिलते हैं !
कुछ समय बाद दो छोटी-छोटी कोंपलों ने जमीन से बाहर अपनी आँखें खोलीं ! अब वो तैयार थीं ,भविष्य का विशाल वृक्ष बनने के लिए !
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डॉ नीरज यादव ,
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बहुत बढ़िया कहानी.....
जवाब देंहटाएंआभार
अनु
प्रेरणादायक कहानी.
जवाब देंहटाएंnice one....thanks
जवाब देंहटाएंgood one
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