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बुधवार, 9 जनवरी 2013

स्वामी विवेकानंद ,युवा प्रेरणा के स्त्रोत ....




        स्वामी विवेकानंद ,युवा प्रेरणा के स्त्रोत 




दोस्तों ,

हमारी जिंदगी में ऐसी बहुत सी चीजें होती हैं जो हमारी जिंदगी को सही दिशा देती हैं ,मार्गदर्शन  देती हैं ,फिर वो चाहे कोई book हो ,इंसान हो ,कथन हो या कोई cotation .युवाओं के प्रेरणा स्रोत   स्वामी विवेकानंद ने  मुझे भी बहुत प्रभावित और प्रेरित किया है ! 
स्वामी जी से मेरा परिचय करवाया  "डॉ नरेन्द्र कोहली जी" के  स्वामी जी की जीवनी के रूप में लिखे उपन्यास ---  "तोड़ो कार तोड़ो " ने !

अपने कॉलेज के समय में जब में थोडा हताश और निराश महसूस कर रहा था ,तब मेरे एक गुरु सम अग्रज ने मुझे इस उपन्यास को पढने  के लिए प्रेरित किया !

दोस्तों ,सच मानिए इस उपन्यास ने मेरे जीवन की दिशा ही बदल दी ,मैं जब भी  हताश या निराश महसूस करता हूँ तब इसको पढने से मुझमे एक नई ऊर्जा और विश्वास का संचार हो जाता है !

दोस्तों , मैं पूरे आभार सहित डॉ नरेन्द्र कोहली जी के इस उपन्यास  "तोड़ो कार तोड़ो " से कुछ सूत्र इस आशा में प्रस्तुत कर रहा हूँ की जिस तरह इस book और इसकी लाइनों ने मुझे प्रेरणा दी है वैसे ही ये आप सब के लिए भी प्रेरणादायक हों  ----------

  • अपने आप सीख सब कुछ ! अपना काम स्वयं ही करना चाहिए !

  • नरेन्द्र हंसा ,'दान तो मूल्यवान वस्तुओं का ही होता है ! कबाड़ का त्याग तो त्याग नहीं ,स्वार्थ होता है न माँ !'

  • अच्छा लगने और हितकर होने में अंतर है !

  • जीवन को सदा आशावादी दृष्टि से देखना चाहिये !

  • संसार में पाप ,झूठ तथा लोगों के भ्रष्ट आचरण को देख कर अपनी नेतिकता कभी नहीं छोडनी चाहिए ! जीवन को कभी अपवित्र नहीं करना चाहिये ,पुत्र !

  • किन्तु जब परिस्थितियां अपने वश में न हों ,अपने किये समस्या का समाधान संभव न हो ,तब सच्चे मन से ईश्वर की शरण में जाना चाहिये ! जीवन को कभी अपवित्र नहीं करना चहिये पुत्र !

  • पर भागना ,किसी समस्या का समाधान तो था नहीं !

  • माँ ! मैं किसी बात को केवल इसलिए स्वीकार नहीं कर सकता ,क्योंकि वह पहले से प्रचलित है !

  • असफलता की लज्जा क्या किसी कोड़े से कम होती है ?

  • अपने सुख को त्याग ,किसी और के सुख का निमित्त बनने का आनंद ,अपने सुख से बहुत बड़ा होता है !

  • इतिहास के खंडहरों से अधिक महत्वपूर्ण जीवित मनुष्य की पीड़ा है ! खंडहर प्रतीक्षा कर सकते हैं ,पीड़ा की ओर तो तत्काल ध्यान देना होगा !

  • कैसा मूर्ख है तू की किसी ने कहा और तूने मान लिया !

  • किसी भी बात को केवल इसलिए स्वीकार मत करो ,क्योंकि किसी ने तुमसे कहा है , या तुमने उसे किसी पुस्तक में पढ़ा है ! तुम स्वयं उस सत्य को खोजो ! अपनी आँखों से उसे देखो  और तब उस पर विश्वास करो !

  • चुनोती को छोड़ कर पीछे हटना भी उसके मनोनुकुल नहीं था !

  • मैं स्वयम पढता हूँ ! मैं प्रातः भरपूर पढ़कर ही घर से निकलता हूँ ,पढाई को अधूरी छोड़ ,खेलने के लिए नहीं निकलता !

  • किन्तु अपने सम्मान की रक्षा तो करनी ही चहिये  ! बस इस बात का ध्यान रखो की तुम्हारी सत्य-निष्ठा से दूसरों का सम्मान आहत ना हो !  सामान्यतः नियम तो येही है की व्यक्ति को शान्त रहना चाहिए ;किन्तु आवश्यकतानुसार उसे कठोर भी हो जाना चाहिये !

  • अपने अपराधी को क्षमा करना ,बहुत बड़ा गुण है पुत्र ! 

  • जो मनुष्य दूसरों को दुःख देता है ,उसे स्वयं ही उसका फल भोगना पड़ता है !

  • असल में मनुष्य के असंतोष का कारण मोह के सिवा और कुछ नहीं है !

  • कोई भी असाधारण कार्य करने के लिए हमें अपने मस्तिष्क और शरीर का विकास करना है !

  • दूसरों की भूलों को क्षमा कर देना चाहिये ,क्योंकि उन भूलों के पीछे भी उनकी कोई -न -कोई कुंठा होती है !

  • जैसे मैं अपने मानसिक विकास के लिए अध्ययन तथा अन्य प्रकार के मानसिक व्यायाम करता हूँ ,वैसे ही शरीर के विकास के लिए भी मैं यह व्यायाम कर रहा हूँ  और फिर यदि शरीर है तो उसे निरोग भी होना चहिये ,बलिष्ठ भी और सुन्दर भी ! रोगी ,दुर्बल अथवा कुरूप शरीर लेकर क्यों जिया जाए ?

  • जीवन को उसके उच्चतम धरातल पर जीना चाहिए --निम्नतर धरातलों पर नहीं ......!

  • जब इतनी दूर आये हैं ,समय लगाया है ,उर्जा व्यय की है ,तो बिना पूरा प्रयत्न किये लौट तो नहीं जाना चाहिए ना ?

  • यदि हम अपने सम्मान की रक्षा के लिए कठोर नहीं होंगे तो कोई दूसरा हमारे सम्मान की रक्षा क्यों करेगा ?

  • जो प्रभु की इच्छा ! मेरी चिंता से न यह संसार चक्र थमेगा ,न लोगों की प्रकृति बदलेगी और न हमारा भाग्य ही बदलेगा !

  • शिक्षा तो प्रेरणा में है आरोपण में नहीं !

  • चाहे जो हो ,पर मैं अपना कर्तव्य नहीं भूल सकता ,फिर दुनिया रहे या जाए ......!

  • हर समय पढ़ते ही नहीं रहना चहिये ! बहुत पढने से भी आदमी बौरा जाता है !

  • अरे कुछ जीवन से भी सीखो ! कभी-कभी जीवन पुस्तकों से भी कुछ अधिक ही सिखाता है ! जीवन नहीं सिखाता ,जीवन का अनुभव सिखाता है !

  • हाँ ! साधना के बिना कहीं भी सिद्धि नहीं है !

  • बल प्रयोग से न विवादों का निर्णय हो सकता है और न सत्य तक पहुंचा जा सकता है !

  • क्यों यह समाज नहीं समझता की समाज की उन्नति का अर्थ समग्र की उन्नति होता है ! किसी एक वर्ग को पीछे छोड़ ,उसका दमन अथवा शोषण कर ,उसके साथ अन्याय कर ....सम्पूर्ण समाज आगे नहीं बढ़ सकता !

  • मैं पढ़ रहा हूँ ज्ञान के लिए ! प्रतिभा को ज्ञान चहिये ! अंक दूसरों को प्रभावित करने के लिए हैं ,ज्ञान अपने परितोष के लिए है !

  • उसने अपना ध्यान पुस्तक पर केन्द्रित किया ! व्यर्थ की बातें सोचने का क्या लाभ ?

  • और यदि सामने वाले में कोई दुर्गुण है भी तो मेरी इच्छा के विरुद्ध तो वह दुर्गुण अपने -आप मुझ में प्रवेश नहीं कर जाएगा !

  • यदि गंतव्य निश्चित हो तो लम्बी से लम्बी यात्रा करने का धेर्य रखता हूँ !

  • पहले कूदना होगा तभी खोज जा सकता है , पहले खोज कर कूदा नहीं जा सकता !

  • पत्नी का पालन पति का दायित्व है ,और संतान का पालन पिता का ..!

  • तुम ईश्वर के किस रूप में आस्था रखते हो ,यह महत्वपूर्ण नहीं है ! महत्वपूर्ण यह है की तुम ईश्वर को अपने कितने निकट अनुभव करते हो ! तुम उसके अस्तित्व को कितनी तीव्रता से अनुभव करते हो !

  • आस्था और विश्वास से बढ़कर और कुछ नहीं है !

  • ध्यान करते समय ईश्वर में डूब जाना चाहिये ! ठाकुर बोले ,"ऊपर ऊपर तैरने से क्या जल की तह में पड़े रत्न मिल जाएंगे ?

  • आलस मत करो !

  • हरी दास ने कहा ,;नरेन् अब B. A. की परीक्षा निकट आ गई है .............! तो इसमें डरने की क्या बात है ! नरेन् ने कहा ," जमकर पढाई करो ! परीक्षाएं तो होती ही इसीलिए हैं की व्यक्ति की क्षमताएँ उभर कर सामने आयें ! सक्षम लोग परीक्षाओं से डरा नहीं करते !

  • उसका आत्मविश्वास लौटा और उसने अपनी खिन्नता को जैसे बलात पीछे धकेल दिया ! इतनी जल्दी हतोत्साहित हो जाना उसकी प्रकृति नहीं थी !

  • बिना कष्ट के तो कभी कोई उपलब्धि हो नहीं सकती !

  • प्रत्येक उपलब्धि का कोई न कोई मूल्य होता है !

  • अपना मार्ग स्वयं अपने पैरों पर चलना होता है रे ! ठाकुर ने कहा ,"किसी के कंधे पर चढ़ कर कितनी यात्रा हो सकती है !......


आशा है दोस्तों ये सूत्र आपके लिए भी उतने ही प्रेरणा दायक रहेंगे जितना मेरे लिए रहे हैं ! 
                     
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साभार -- डॉ नरेन्द कोहली 
सोजन्य --तोड़ो कारा तोड़ो 
प्रकाशक --किताबघर 

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