तनाव का बोझ...
दोस्तों,
एक बोध कथा है !
एक गरीब ब्राह्मण था ! एक सुबह वो अपने सामान की गठरी अपने सर पर लादे राजपथ से जा रहा था ! तभी वहाँ पीछे से राजा का रथ आ गया ! राजा ने देखा कि एक बुजुर्ग आदमी बोझ उठाये पैदल चल रहा है ! उसने रथ को रोक कर बुजुर्ग ब्राह्मण को रथ पर बैठने के लिए कहा ! ब्राह्मण सकुचाया ,बोला-नहीं महाराज,मैं पैदल ही ठीक हूँ ! राजा ने विनम्रता से कहा ,कोई बात नहीं ब्राह्मण देव ,मैं भी उसी रस्ते जा रहा हूँ ,आपको आपकी मंजिल पर उतार दूंगा ,आ जाइये ! बड़ी सकुचाहट के साथ वो राजा के रथ पर बैठ गया ! थोड़ी देर बाद राजा की उस पर नजर पड़ी तो देखा कि उसने अपनी गठरी को अपने सर पर ही रखा हुआ है !
राजा ने कहा --ब्राह्मण देव ,आप अपना ये बोझ क्यों उठाये हुए हैं ! इसे नीचे रख दीजिये ! वो बोला -- नहीं महाराज, आपने मुझ नाचीज इंसान को अपने रथ पर जगह दी ,यह ही बहुत है मेरे लिए ! अब मैं अपनी गठरी भी नीचे रख कर रथ पर और वजन नहीं बढ़ाना चाहता !
राजा मुस्कुराया ,बोला --ब्राह्मण देव ,आप नाहक ही अपने बोझ को उठाने का श्रम कर रहे हैं ! आप इसे नीचे रखें या सिर पर, रथ पर तो यह है ही ! और आपके सिर पर इसे रखने से रथ के वजन में कोई अंतर नहीं आ रहा ! आप नाहक ही अपने को कष्ट दे रहे हैं ! उतार दीजिये इस बोझ को ,नीचे रख दीजिये !
दोस्तों,
क्या आपको नहीं लगता कि हम भी कुछ कुछ उस ब्राह्मण की तरह ही हैं ! हम हर छोटी से छोटी बात में परेशान हो जाते हैं ! दुनिया भर की फ़िक्र ,तनाव ,डर ,काम का बोझ और भी पता नहीं क्या क्या अपने ऊपर हावी कर लेते हैं ! हमें लगता है कि अगर हम नहीं करेंगे ,तो होगा ही नहीं ! बड़ी भूल है हमारी
इस ब्रह्माण्ड को ,पृथ्वी को उस परमपिता ने बनाया है ! आप उसे ईश्वर ,अल्लाह ,जीजस या फिर प्रकृति ही कह लीजिये ! कोई है ,जिसने ये दुनिया बनाई है ,दुनिया की हर चीज बनाई है ! सृष्टि की हर चीज उसके नियमो से बंधी है ! समय से सूरज निकलता है ,समय से पृथ्वी सूरज का चक्कर लगाती है ! हर चीज समय से उसके निर्देशन में होती है !
इस अनन्त ब्रम्हाण्ड में हमारा वजूद क्या है ? और हमारी तथाकथित परेशानियों ,तनावों का वजूद ?
जब कोई Architect किसी मकान का नक्शा बनाता है तो उसे पता रहता है कि कोनसी चीज कहाँ लगानी है ! ईंट कहाँ लगेगी ,टाइल कहाँ लगेगी और झूमर कहाँ लगेगा ! हर चीज उसके दिमाग में स्पष्ट होती है !
अब ये ईंट ,टाइल ,और झूमर इसी बात का तनाव लेकर बैठ जाएँ कि पता नहीं हम कहाँ use होंगे ,कहाँ हमें लगाया जाएगा , कब लगाया जाएगा ,हमारा कैसे क्या होगा ! इसी सोच में अगर वो घुलते रहे तो ये उनकी बेवकूफी है ,है ना ?
आँख में पड़ा हुआ छोटा सा तिनका भी संसार से बड़ा दिखाई देता है ! उसी तरह हमारी छोटी सी परेशानी भी हमें पृथ्वी के वजन से ज्यादा भारी लगती है ! रोज के अनगिनत तनाव ,चिंताओं का बोझ हम अकारण ही अपने सिर पर लाद लेते हैं !
ऊपर वाले ने उस परमपिता ने हमें इतना विवेक तो दिया ही है कि हम अपनी तथाकथित परेशानियों को अपने ऊपर लादें या उसी के चरणों में अर्पित कर दें !
कहें ,जैसे मेरा बोझ तेरा ,वैसे ही मेरी परेशानियां भी तेरी ! और वो परमपिता तो कहता ही है कि अरे मेरी नाव पर जब तू सवार है तो तेरी चिंता ,परेशानियां भी तो मेरी ही हैं ! तू क्यों व्यर्थ ही उन्हें अपने दिमाग पर लादे रखता है !
मैं हूँ ना ,अगर माने तो ! एक बार सच्चे मन और खुले अन्तःकरण से अपनी चिंताएं मुझे दे के तो देख !
भगवान् श्री कृष्ण ने गीता में कहा भी है --
कर्ता का अहंकार छोड़ ,सिर्फ कर्म कर ,फल की चिंता मत कर ! तेरे किये से ना कुछ हुआ है ,और तेरे बिना किये भी दुनिया में बहुत कुछ हो गया है ! व्यर्थ ही अपने को तनाव और चिंता में मत रख ! कर्म कर ,सिर्फ कर्म !
दोस्तों मेरा ये लेख तनाव मुक्त हो काम करने के बारे में है ,न की काम न करने के बारे में ! करना तो होगा ही ,उसके बिना चारा नहीं है ,पर बिना तनाव के करें तो ज्यादा अच्छा ,है ना ?
डॉ नीरज यादव ,बारां
----------------------------------------------------------------------------------------------------
बहोत बढ़िया ज्ञानवर्धक बात है इसे सच में अमल में लाने की आवश्यकता है धन्यवाद सर जी।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन आठ साल का हुआ ट्विटर - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत ही अच्छा लेख. एक अध्ययन के अनुसार तनाव के कारण हमारी उत्पादक्ता 50 % तक कम हो जाती है
जवाब देंहटाएंBahut achha ..
जवाब देंहटाएंagar amal kar liya jaye to kabhi takleef hi na ho . bhahut bhadiya
जवाब देंहटाएं