विडम्बना...
सालों पहले की बात है ! एक बहुत बड़ा जंगल था लेकिन जिसमे कोई पेड़ नहीं था ! सारे जानवर और पक्षी वहाँ रहा करते थे ! लेकिन तेज धुप,बारिश ,आंधी से उन्हें बड़ी परेशानी होती थी ! खाने -पीने के लिए भी कुछ ढंग का नहीं मिल पाता था !
एक सुबह सबने देखा कि जंगल के बीचोंबीच किसी पेड़ का एक अंकुर उग आया है ! सब उत्सुकतावश उसके चारों तरफ खड़े हो गए ! अचानक उन सबको उस कोंपल में से एक आवाज सुनाई दी --भाइयों,बहनों ,मुझसे आप सबकी परेशानी देखी नहीं गई इसीलिए मैं धरती से बाहर आया हूँ ! आप मुझे खाद ,पानी, संरक्षण देना और फिर एक समय बाद मैं बड़ा होकर आप सबको फल,छाँव, लकड़ी ,रहने की जगह दूंगा !
जानवर और पक्षी खुश !
सुनहरे भविष्य की आस में वे बड़े जतन से उस पेड़ को बड़ा करने लगे ! यह देख कर और दूसरे कई पेड़ों के अंकुर भी जमीन से बाहर आ गए !
उनका भी वही वादा ……
जंगलवासी जानवर,पक्षी और खुश कि चलो अब तो इतने सारे सेवादार पेड़ हो गए हैं कि सबको रहने की जगह, लकड़ी, फल ,छाँव सब कुछ मिलेगा !
समय गुजरा ,सारे पेड़ बड़े हुए, फलदार भी हुए ,घने भी हुए ,लेकिन विडम्बना यह हुई कि वो जमीन से इतने ऊँचे और घने हो गए कि बेचारे मासूम जानवर उन तक चाह कर भी नहीं पहुँच पाये ! उस पर भी कोढ़ में खाज ये हुई की कुछ गिद्ध,चील ,चमगादड़ जैसे पक्षियों ने उन पर डेरा डाल लिया ! और गलती से भी अगर कोई जानवर उन पेड़ों के पास आने की कोशिश भी करता तो ये उसे बड़ी बुरी तरह से डरा कर भगा देते !
बेचारे जानवर सालों की तपस्या और इन्तजार के बाद भी वहीं के वहीं ! समय के थपेड़ों से वे सब रूखे व्यवहार वाले ,वहमी ,जल्दबाज हो गए ! समय गुजरता गया !
एक दिन सुबह अचानक सबने देखा कि सालों बाद फिर एक मासूम सा अंकुर जमीन से बाहर आया है ! फिर सब जानवर उसको घेर कर खड़े हो गए ! कुछ आश्चर्य ,खुश गुस्से ,कुछ शक़ ,कुछ हिराकत से वहीँ कुछ आशा भरी नजरों से उसे देखने लगे !उस अंकुर से उन्हें एक आवाज सुनाई दी ! भाइयों ,मैं एक बहुत छोटा सा "आम" के बीज का अंकुर हूँ ! आप लोगों की परेशानी को मैं इतने सालों से जमीन के अंदर से देख रहा था ! बाहर आने की कोशिश भी कर रहा था ! लेकिन इन घने पेड़ों का झुण्ड इतना विशाल हो चूका है ! कि किसी आम से पेड़ को पैदा ही नहीं होने देता ! फिर भी आप सब की पीड़ा और प्रार्थना कि वजह से शायद परमात्मा ने मुझे धरती से बाहर आने का मौका दिया है ! अगर आप मुझे सहयोग,खाद,पानी देंगे तो मैं आपके काम आने की कोशिश करूँगा !
सालों से धोखा खाये ,ठगे गए जानवरों की मिली-जुली प्रतिक्रिया हुई ! कुछ ने कहा --अरे छोड़ो ! ये भी उन घने पेड़ों में से एक ही होगा ,क्या भरोसा !
कुछ ने कहा इसे अभी जमीन से ही उखाड़ दो ताकि एक और घने पर स्वार्थी पेड़ से हमें मुक्ति मिले !
लेकिन कुछ बुजुर्ग जानवरों ने कहा कि नहीं ,इसे भी एक मौका दो ,समय दो , क्या पता ये अपने वचन का पक्का हो ! वैसे भी अभी तो इसकी आँखों में हमें सच्चाई और मासूमियत दिख रही है !
बाकी जानवरों ने उसे एक मौका देना स्वीकार कर लिया !
विडम्बना अब शुरू होती है ! अभी उस छोटे से आम के अंकुर को जमीन से बाहर आये 5-7 दिन ही हुए थे ,2-4 नए पत्ते ही उसमे और खिले थे ! कि एक दिन सुबह जैसे ही उसने आँखें खोलीं ,देखा कि लोमड़ी ,लकड़बग्गा ,कौआ,सियार ,गीदड़ आदि जानवर उसे घेर कर खड़े हैं ! उसकी आँख खुलते ही सवालों की बौछार उस पर होने लगी !
हमने तुम्हारा वजूद स्वीकार किया ,अब बताओ --
फल कब दोगे ?
छाँव कब दोगे ?
लकड़ी कब दोगे ?
हम तुम पर अपने घोंसले कब बनाएंगे ?
कब? कब ? कब ?
नेपथ्य से यह सब देख रहे बूढ़े हाथी ने ठंडी सांस भर कर कहा ,प्रभु ,क्या विडम्बना है ! जो पेड़ फलों से लड़े पड़े हैं ,घने हैं ,टनो-टन लकड़ी वाले हैं ! उनसे पूछने की किसी की हिम्मत नहीं है !और यह बेचारा 5-6 दिन का पौधा ,इनके सवालों और आकांक्षाओं के बोझ तले दब कर कहीं समय के पहले दम न तोड़ दे !
क्या विडम्बना है !
डॉ नीरज यादव
बारां
Interesting story
जवाब देंहटाएं