ज़िन्दगी में तनाव (दवाब ) भी जरुरी है ,इसे स्वीकार करें.....
दोस्तों ,
आजकल जिसे देखिये बेइन्तेहा तनाव में,दवाब में जी रहा है ! ये तनाव उसके जीवन को , उसके स्वास्थ्य को धीरे धीरे खत्म कर रहा है ! समय की मांग को देखते हुए तनाव कम करना सिखाने की कई classes और कई गुरु आ गए हैं ,जो आपको जिंदगी से तनाव कम करना सिखाते हैं अलग अलग तरीकों से ,है ना ?
देखा जाए तो सारी दुनिया ही तनाव और दवाब के चारों ओर वर्तुल की तरह घूम रही है !
तनाव --काम का ,लक्ष्य पूरा करने का ,पैसे कमाने का ,पैसे बचाने का ,तरक्की का ,उपलब्धि पाने का ,परिवार को खुश रखने का …….
अनगिनत दवाबों और तनावों के बीच आज का इंसान जी रहा है ,है ना ?
लेकिन दोस्तों ,एक अच्छी जिंदगी के लिए तनाव भी जरुरी है !
आप जानते हैं कि किसी वीणा ,सितार या guitar के तारों में अगर तनाव नहीं होगा तो वो बेकार हैं ,क्योंकि उनसे फिर सुर ही नहीं निकलेंगे ! तबले पर तना चमड़ा ही सुरीली ताल निकालता है ! एक नट का करतब बंधी रस्सी के तनाव पर ही निर्भर है ! और आप अपनी गाडी भी तभी चला पाते हैं जब आपकी गाडी के टायर में हवा का तनाव (दबाव ) होता है !
और तो और आप जिन्दा ही इसीलिए हैं क्योंकि आपके रक्त ( blood ) में दवाब है ,blood pressure है ! जिस वजह से वो पूरे शरीर में घूमता है ,और आपको जिन्दा रखता है ! रक्त में दवाब ख़तम तो जिंदगी ख़तम !
लेकिन एक ख़ास बात कि तनाव जरुरी तो है पर एक सीमा तक ही !
तनाव का न होना भी उतना ही घातक है जितना ज्यादा तनाव का होना !
as a doctor अगर कहूँ तो हमारे शरीर के रक्त का स्वाभाविक दबाव होता है 120/80 mmHg
यह एक स्वस्थ व्यक्ति के blood pressure का पैमाना है ! अगर blood pressure इससे कम होता है तो low BP और ज्यादा होने पर HIgh BP की बीमारी कहलाती है !
अगर आपके जीवन में काम का तनाव है तो खुश होइए ,ये सबूत है कि आप जिन्दा हैं ,कार्यरत हैं ! पर जरुरत है कुछ सावधानियों की ,जिससे ये तनाव आपकी उपलब्धियों में सहायक बने ,घातक नहीं ! वरदान बने अभिशाप नहीं !
तनाव कम करने के अनमोल सूत्र ---
- तनाव को तनाव मानना छोडिये !
- तनाव वो अवसर है जो किसी काम को जल्दी और समय से पूरा करने के लिए आपको प्रेरित करता है , motivate करता है !
- बिना काम के तनाव के तो हम आलसी ,लापरवाह और टालमटोल करने वाले हो जाएंगे !
- ये काम का तनाव ही है जो हमको active और कार्यरत रखता है !
- तनाव उतना ही रखिये जितना जरुरी है ! ज्यादा तनाव high bp का कारण और उसकी तरह घातक होता है !
- अगर आप काम के ,परिस्थितियों के तनाव या दवाब तले दबे जा रहे हैं तो जरा ठहरिये ,रुकिए ,शान्ति से बेठिये ,2-4 मिनट गहरी साँसे लीजिये ,मन शांत कीजिये !
- फिर अपनी दिनचर्या ,कार्य-योजना पर एक नजर डालिए ,कि कहाँ गलती है ,वो क्या कारण है जिस वजह से मैं तनाव का दवाब सहन नहीं कर पा रहा !
- कभी कभी हमारी गाडी चलते चलते बार बार गर्म हो जाती है ! तो हम रुकते हैं ,उसे check करते हैं ,देखते हैं कि क्या खराबी है ! coolant कम है या engine oil कम है ! इसीलिए गाडी बार बार और जल्दी जल्दी गर्म हो रही है ,आप coolant और engine oil डालते हैं ! गाडी सही, और आप अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर ,है ना ?
- उसी तरह काम का दवाब आपके दिमाग को गर्म किये जा रहा है ,जिंदगी को अस्त-व्यस्त ,परेशान किये जा रहा है ! तो जरा रुकिए ,कारण ढूँढिये और फिर उसको दूर कीजिये !
तो अपने तनाव रूपी हाथी को भी विवेक रूपी अंकुश से काबू कीजिये ,फिर देखिये कि ये तनाव रूपी हाथी कितने काम का है !
डॉ नीरज यादव
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भगवान ने हमे जीवन भी इतना छोटा इसलिए दिया है ताकि हम ज्यादा काम करें अगर 1000 साल का दिया होता तो शायद तनाव नाम की चीज न होती और आलस का राज होता तो क्या हम आज यहाँ तक पहुँच पाते
जवाब देंहटाएंGood article on such a hot topic of today's time ie "stress".This term has been unnecessarily over-glamourised because dealing with affairs of every day of life can not or should not cause stress to anyone,albeit, it is mere perception of an individual who feel stressed out even in trivial issues of daily life.
जवाब देंहटाएंDr Abhilasha
डॉ नीरज जी
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम |
आपके आर्टिकल बहुत ही प्रेरक और हमारी जिंदगी के बहुत करीब होते हैं |
मैं तो बस इतना कहूँगा -
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ज़िन्दगी हुस्न है , रानाई है , दिलदारी भी है
हकीक़त है , दर्द -दुःख भी है , ज़िम्मेदारी भी है.....
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{रानाई = सौन्दर्य , खूबसूरती , लालित्य , लावण्यता , मनहारी , मोहक , मुग्ध करने वाली सुन्दरता }
वैसे स्ट्रेस से होने वाले नुक्सान पर मैं भी लेख लिख रहा हूँ |जिसमे कुछ एलोपैथिक दवाओं से नुक्सान व किस हद तक हमारे ब्रेन कों स्ट्रेस प्रभावित कर सकता हैं ,इस पर फोकस करूँगा |
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डॉ नीरजजी,आपने बहुत ही प्रेरक और सुन्दर लेख लिखा है.
जवाब देंहटाएंकाश हर कोई समझ पाता की जरुरत से ज्यादा कोई भी चीज हमेशा तन और मन दोनों के लिए नुक्सानदेह ही है.
-पारितोष