काम नहीं ,कर्मयोग कीजिये....
दोस्तों,
एक बार एक मूर्तिकार था ! वो बहुत सुन्दर मूर्तियां बनाता था ! उसकी मूर्ति 10-20 रुपये में बिक जाती था ! उसने अपने बेटे को भी मूर्ति बनाना सिखाया ! उसका बेटा भी सुन्दर मूर्तियां बनाने लग गया ! एक समय बाद उसकी मूर्ति अपने पिता की मूर्ति से भी महँगी बिकने लगी !
फिर भी उसका पिता रोज उसे मूर्ति में सुधार करने और पहले से भी अच्छी बनाने कि सीख देता ! एक दिन झल्ला कर उसने अपने पिता से कहा ,--पिताजी ,आपको पता है मेरी बनाई मूर्तियां आपसे महँगी बिकती हैं ! मैं अब बहुत अच्छी मूर्तियां बनाता हूँ ! आप मुझे और सुधार करने की ना कहें ! मैं अपनी मूर्तियों से संतुष्ट हूँ !
पिता अपना सर पकड़ कर बैठ गया ! बोला--- बेटा , अब तेरी तरक्की रुक गई ! मैं तो तुझे और आगे और सफल देखना चाहता था ! इसलिए तुझमे सुधार की लौ जलाये रखने के लिए रोज टोकता था ! लेकिन अब तेरी तरक्की कि आग बुझ गई है ! तेरे में ठहराव आ गया है ! बेटा ,जहाँ संतुष्टि हो जाती है ,वहाँ फिर प्रगति नहीं होती !
दोस्तों, हम भी कुछ उस लड़के की तरह ही हैं ! हमें लगता है कि जो जैसा चल रहा है ,ठीक है ! हम उसमे सुधार की, बदलाव की कोशिश नहीं करते ! अनमने भाव से बस करना है इसीलिए किसी तरह काम किये जाते हैं !
एक होता है काम , जो हम शरीर से करते हैं ,मज़बूरी में करते हैं ! हमें रोज-रोज office या school जाना पसंद नहीं है ,लेकिन बेमन से जाते हैं !
जिसे करने में कोई उमंग ,उत्साह या ख़ुशी महसूस न हो ,जिसे फिर भी करना मज़बूरी हो ,वह काम है !
और कर्मयोग वो होता है ,जो न सिर्फ शरीर बल्कि पूरे मनोयोग से किया जाता है ! हम पुरे दिल से ,उत्साह से जिस काम को करते हैं ! और उसे करते हुए हमारा यह भाव रहता है कि इसे और ज्यादा अच्छे से कैसे किया जाए !
जिसे दिन भर करने के बावजूद भी हमें रत्ती भर भी थकान नहीं होती ! जिसे अगले दिन करने के लिए हम पुनः पूरी उमंग और उत्साह से जुट जाते हैं ,वो कर्म योग है !
किसी ने कहा भी है ,काम क्या है ? काम इबादत है ,काम पूजा है ! पूजा भी अगर काम समझ कर की जाए तो व्यर्थ है ! जबकि सच्चे मन और उत्साह से किया गया काम ही असली पूजा के समान है !
जिस काम में मन ,दिल, और भाव न जुड़े हों ,तो वो कर्म तो वैसे ही निष्प्राण सा है ,है ना ?
तन्मयता,तत्परता ,उमंग,उत्साह से किया गया कर्म सिर्फ काम नहीं रह जाता ,कर्मयोग बन जाता है ! और आपकी मनः स्थिति का प्रभाव आपके कर्म पर साफ़ दिखता भी है !
एक कहानी है ,शायद आपने पढ़ी हो.......
एक मंदिर बन रहा था ,3 कारीगर उसके लिए पत्थर तराश रहे थे ! किसी राहगीर ने पहले कारीगर से पूछा ,भाई क्या कर रहे हो ? उस कारीगर ने झल्लाकर बेरुखी से कहा --दिखता नहीं है क्या ? पत्थर तोड़ रहा हूँ !
राहगीर ने दूसरे से पूछा तो उसने कहा --अपनी रोजी-रोटी कमा रहा हूँ ,काम कर रहा हूँ भाई !
तीसरे कारीगर के पास जब वो गया तो वो बड़ी मस्ती में कोई गाना गुनगुनाते हुए पत्थर तराश रहा था ! उससे पूछने पर वो बड़े उल्लासपूर्ण स्वर में बोला --भाई, प्रभु के लिए मंदिर बना रहा हूँ ! मुझे ख़ुशी है कि इस भव्य मंदिर में मेरा भी योगदान हो रह है !
काम तीनो कर रहे हैं ! पैसे भी तीनों लगभग एक समान ही कमा रहे हैं ! लेकिन जो सच्चा कर्मयोगी है ,वो तीसरा वाला है ,जिसके लिए काम, काम नहीं एक आनंद है ,मस्ती है ,पूजा है ,है ना ?
डॉ नीरज यादव
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इस विशाल ब्रह्मांण्ड में जिन्दगी हमें एक ही बार मिली है अगर इसी में थोड़ा सा काम करके संतुष्ट हुए तो इस ब्रह्मांण्ड में आपकी मौजुदगी व्यर्थ है.
जवाब देंहटाएंसाहिल कुमार
You are right....don't be santusht...thoda aur wish karo....
जवाब देंहटाएंNice article Neeraj Ji
Thanks....gopal ji
जवाब देंहटाएंhttp://hindibloggerscaupala.blogspot.in/ की शुक्रिवारिय २९/११/२०१३ चौपाल पर आपकी रचना शामिल की गयी हैं कृपया अवलोकन हेतु पधारे ......धन्यवाद
जवाब देंहटाएंयही है अलग अलग दृष्टिकोण -सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट तुम
बहुत खूब
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