अवधूत दत्तात्रेय के गुरु
दोस्तों पिछली पोस्ट में हमने दत्तात्रेय के 12 गुरु के बारे में जाना , आइये बाकी बचे 12 गुरु को भी जाने और उन्हें अपने जीवन में माने भी --
- मधुमक्खी -- फूलों का मधुर रस संचय कर दूसरों के लिए समर्पित करने वाली मधुमक्खी ने मुझे सिखाया की मनुष्य को स्वार्थी नहीं परमार्थी होना चाहिये !
- भौंरा -- राग में आसक्त भोंरा अपना जीवन -मरण न सोच कर कमल पुष्प पर ही बैठा रहा ! रात को हाथी ने वो पुष्प खाया तो भोंरा भी मृत्यु को प्राप्त हुआ ! राग ,मोह में आसक्त प्राणी किस प्रकार अपने प्राण गँवाता है ! अपने गुरु भोंरे से यह शिक्षा मैंने ली !
- हाथी -- कामातुर हाथी मायावी हथनियों द्वारा प्रपंच में फँसा कर बंधन में बाँध दिया गया और फिर आजीवन त्रास भोगता रहा ! यह देख कर मैंने वासना के दुष्परिणाम को समझा और उस विवेकी प्राणी को भी अपना गुरु माना ?
- हिरण (मृग)-- कानों के विषय में आसक्त हिरन को शिकारियों के द्वारा पकडे जाते और जीभ की लोलुप मछली को मछुए के जाल में तड़पते देखा तो सोचा की इंद्रियलिप्सा के क्षणिक आकर्षण में जीव का कितना बड़ा अहित होता है ,इससे बचे रहना ही बुद्धिमानी है ! इस प्रकार ये प्राणी भी मेरे गुरु ही ठहरे !
- पिंगला वेश्या -- पिंगला वेश्या जब तक युवा रही तब तक उसके अनेक ग्राहक रहे ! लेकिन वृद्ध होते ही वे सब साथ छोड़ गए ! रोग और गरीबी ने उसे घेर लिया ! लोक में निंदा और परलोक में दुर्गति देखकर मैने सोचा की समय चूक जाने पर पछताना ही बाकी रह जाता है ,सो समय रहते ही वे सत्कर्म कर लेने चाहिये जिससे पीछे पश्चाताप न करना पड़े ! अपने पश्चाताप से दूसरों को सावधानी का सन्देश देने वाली पिंगला भी मेरे गुरु पद पर शोभित हुई !
- काक (कौआ )-- किसी पर विश्वास ना करके और धूर्तता की नीति अपना कर कौवा घाटे में ही रहा ,उसे सब का तिरस्कार मिला और अभक्ष खा कर संतोष करना पड़ा !यह देख कर मेने जाना की धूर्तता और स्वार्थ की नीति अंतत हानिकारक ही होती है ! यह सीखाने वाला कौवा भी मेरा गुरु ही है !
- अबोध बालक -- राग ,द्वेष ,चिंता ,काम ,लोभ ,क्रोध से रहित जीव कितना कोमल ,सोम्य और सुन्दर लगता है कितना सुखी और शांत रहता है यह मैंने अपने नन्हे बालक गुरु से जाना !
- स्त्री -- एक महिला चूडियाँ पहने धान कूट रही थी ,चूड़ियाँ आपस में खड़कती थीं ! वो चाहती थी की घर आये मेहमान को इसका पता ना चले इसलिए उसने हाथों की बाकी चूड़ियाँ उतार दीं और केवल एक एक ही रहने दी तो उनका आवाज करना भी बंद हो गया !यह देख मेने सोचा की अनेक कामनाओ के रहते मन में संघर्ष उठते हैं ,पर यदि एक ही लक्ष्य नियत कर लिया जाए तो सभी उद्वेग शांत हो जाएँ ! जिस स्त्री से ये प्रेरणा मिली वो भी मेरी गुरु ही तो है !
- लुहार -- लुहार अपनी भट्टी में लोहे के टूटे फूटे टुकड़े गरम कर के हथोड़े की चोट से कई तरह के औजार बना रहा था ! उसे देख समझ आया की निरुपयोगी और कठोर प्रतीत होने वाला इन्सान भी यदि अपने को तपने और चोट सहने की तैयारी कर ले तो उपयोगी बन सकता है !
- सर्प (सांप)-- दूसरों को त्रास देता है और बदले में सबसे त्रास ही पाता है यह शिक्षा देने वाला भी मेरा गुरु ही है जो यह बताता है की उद्दंड ,आतताई, आक्रामक और क्रोधी होना किसी के लिए भी सही नहीं है !
- मकड़ी -- मकड़ी अपने पेट में से रस निकाल कर उससे जाला बुन रही थी और जब चाहे उसे वापस पेट में निगल लेती थी ! इसे देख कर मुझे लगा की हर इंसान अपनी दुनिया अपनी भावना ,अपनी सोच के हिसाब से ही गढ़ता है और यदि वो चाहे तो पुराने को समेट कर अपने पेट में रख लेना और नया वातावरण बना लेना भी उसके लिए संभव है !
- भ्रंग कीड़ा --भ्रंग कीड़ा एक झींगुर को पकड़ लाया और अपनी भुनभुनाहट से प्रभावित कर उसे अपने जैसा बना लिया ! यह देख कर मेने सोचा एकाग्रता और तन्मयता के द्वारा मनुष्य अपना शारीरिक और मानसिक कायाकल्प कर डालने में भी सफल हो सकता है !इस प्रकार भ्रंग भी मेरा गुरु बना !
24 गुरुओ का वृत्तान्त सुना कर दत्तात्रय ने राजा से कहा --गुरु बनाने का उद्देश्य जीवन के प्रगति पथ पर अग्रसर करने वाला प्रकाश प्राप्त करना ही तो है ! और यह कार्य अपनी विवेक बुद्धि के बिना संभव नहीं है ! इसलिए सर्वप्रथम गुरु है -विवेक ! उसके बाद ही अन्य सब ज्ञान पाने के आधार बनते हैं !
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सार्थक पोस्ट गुरूदेव। इस का प्रचार हमारा पहला कर्तव्य है।
जवाब देंहटाएंnice information
जवाब देंहटाएंBAHUT BAIDYA SIR, KEEP IT UPPPP
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