जीवन की गाडी ....
दोस्तों ,
जाहिर है आप कार या bike भी चलाते ही होंगे ?है ना
कैसे चलाते हैं ? सीधा पैर accelerator पर और उल्टा पैर brake और clutch के पास ,है ना ? Most of the time आपका सीधा पैर accelerator को दबाता है और कभी कभी सामने कोई अवरोध आने पर उल्टा पैर brake का use करता है ,बाकी समय नहीं !
जरा अब कल्पना कीजिये ,आपका सीधा पैर लगातार accelerator पर है लेकिन उल्टा पैर भी brake पर है और बार बार brake को दबाये जा रहा है !
अब बताइये क्या आपका सफ़र आसान, सहज और सुरक्षित होगा ? नहीं होगा दोस्तों ! speed के साथ साथ बार बार brake लगाने पर इंजन बेबजह गर्म हो जाएगा ,उसकी capacity कम हो जाएगी ,गाडी smoothly और speed से नहीं चल पाएगी ,और समय से पहले ही वो (आपकी गाडी ) खराब (खटारा ) भी हो जाएगी ! है ना ?
तो समझदारी इसी में ही है कि हम हमारी गाडी पूरे ध्यान से ,सहजता से चलायें , accelerator से speed maintain रखें और जब ,जहाँ जरुरी है तब ही brake का use करें ,बाकी समय नहीं !
तो जरा सोचिये दोस्तों ,ये समझदारी हम हमारे जीवन की गाडी को चलाने में क्यों नहीं दिखाते हैं ??
हमारा जीवन भी एक गाडी चलने के सामान ही है ! accelerator है --हमारे कार्य ,हमारे कर्म और brake हैं --रोजमर्रा की चिंताएं ,तनाव,डर,आलस,लापरवाही ,पूर्वाग्रह इत्यादि !
हम हमारे कर्म रूपी accelerator को दबाने के साथ साथ चिंता,डर,तनाव रूपी brake भी बराबर से लगाये जाते हैं ! जिसकी वजह से 10 मिनट में सहजता से पूरा होने वाला कर्म 10 घंटे में भी अच्छे से पूरा नहीं हो पाता ! डर,तनाव,आलस का brake उसे समय से और अच्छे से पूरा नहीं होने देता !
गाडी यानी हमारा शरीर और मन बेबजह गर्म (खराब)और tension में हो जाता है ,खराब (बीमार ) हो जाता है !
जब हम जानते हैं की brake लगा लगा कर गाडी चलाना गाडी को खराब करना है तो फिर यही गलती ,बेबकूफी या नादानी हम हमारे जीवन की गाडी को चलाने में क्यों करते हैं ?
और एक खास बात दोस्तों , गलत तरीके से चलाई हुई गाडी फिर भी मेकेनिक ठीक कर सकता है या हम दूसरी नई खरीद सकते हैं ! पर हमारी शरीर रूपी जीवन की गाडी अनमोल है ये एक बार ख़राब हो जाये तो फिर पूरी तरह से सही भी नहीं होती और इसे नई खरीदने का तो सवाल ही नहीं है !
और दोस्तों बार बार brake लगाने से brake जल्दी गर्म हो जाते हैं ,खराब हो जाते हैं ! उसी तरह काम करने से ज्यादा उसकी चिंता ,तनाव , ज्यादा सोच विचार करने से हमारे मन मस्तिक्ष के नाजुक तंतु भी गर्म हो जाते हैं ,थक जाते हैं और बिना कुछ काम किये ही हमारा मन थका थका निढाल सा हो जाता है ! चिंता ,तनाव रूपी दीमक हमारे कर्म रूपी लकड़ी को खा जाता है !
तो चिंता ,तनाव रूपी brake से पैर हटाइये ! कर्म रूपी accelerator पर द्रद्ता से पैर जमाइए ! और बढाइये अपने जीवन की गाडी अपने लक्ष्य की तरफ .....
डॉ नीरज .....
---------------------------------------------------------------------------------------------------