दोस्तों, ऐसा अधिकतर होता है की हम अपने ज्ञान के अहंकार मे अपने आप को सामने वाले से श्रेष्ठ समझने लगते हैं ! हमे लगता है की हम ही ज्ञानी हैं , बाकी लोगों मे हम जैसा ज्ञान कहाँ ! कुछ इंसान ये सोचते हैं की पूरी दुनिया मे 1 .5 अक्ल (mind ) है जिसमे से 1 उसके और बाकी आधी सारी दुनिया के पास है ! मै यहाँ सब इंसानों की बात नहीं कर रहा ,लेकिन अधिकतर लोग इसी category मे आते हैं जो अपने आगे किसी की सुनते ही नहीं ! विश्वास ना हो तो अपने आस पास देख लीजिये , आपको अनेक field के कई expert मिल जाएंगे जो अपने ज्ञान के मद मे आपसे बात करना तो दूर आपको अनदेखा कर देंगे ! है ना ? एक कहावत है की चूहे को हल्दी की गाँठ मिल जाए तो वो अपने आप को पंसारी समझने लगता है ! या फिर थोथा चना बाजे घना ! लेकिन कभी कभी ये सीख इसलिए भी अनिवार्य हो जाती है की इंसान अपने व्यर्थ के अहंकार मे ,अपनी knowledge के मद मे चूर भूल जाता है की वह अभी अपूर्ण है !
उज्जैन के महाकवि माघ को अपने पांडित्य का बड़ा अभिमान था ! अधिकतर उनके आचरण से उस अहंकार की झलक भी मिलती रहती थी, पर उनको छेड़ने का किसी को साहस नहीं होता था !
एक बार माघ राजा भोज के साथ वन से लोट रहे थे ! रास्ते मे एक झोपडी पड़ी , एक वृद्धा उसके पास बेठी चरखा काट रही थी ! माघ नें अपने अहंकार को दिखाते हुए पुछा ,' यह रास्ता कहाँ जाता है ? उस वृद्धा ने माघ को पहचान लिया और हंसकर बोली ,'बेटा ,रास्ता कहीं नहीं आता जाता ! उस पर आदमी आया जाया करते हैं ! आप लोग कौन हैं ? ' हम यात्री हैं '-माघ ने कहा !
मुस्कुराते हुए उस वृद्धा ने कहा, यात्री तो सूर्य और चन्द्रमा 2 ही हैं ! आप लोग कौन हैं ? माघ थोडा चिंतित होकर बोले-- ,माता ,हम क्षण भंगुर मनुष्य हैं ! वृद्धा थोडा गंभीर होकर बोली --बेटा ! "योवन और धन " क्षण भंगुर तो ये ही २ हैं , पुराण कहते हैं , इन पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिये ! माघ की चिंता थोड़ी और बढ़ी उन्होंने कहा -हम राजा हैं ! उन्हें लगा शायद इससे बुढ़िया डर जाए ! पर उसने बिना डरे उनसे कहा --- नहीं भाई , आप राजा कैसे हो सकते हैं ? शास्त्रों ने तो "यम और इन्द्र" इन दो को ही राजा माना है!
अपनी हेकड़ी छुपाते हुए माघ ने फिर कहा हम तो सब को क्षमा करने वाली आत्मा हैं ! वृद्धा ने कहा -"पृथ्वी और नारी" की क्षमा शीलता की तुलना आप कहाँ कर सकते हैं , आप तो कोई और ही हैं ?
निरुत्तर माघ ने कहा ,---माँ ,हम हार गए , अब रास्ता बताओ ,please .
पर वृद्धा इतनी आसानी से उन्हें मुक्त करने वाली नहीं थी , बोलीं--"जो किसी से कर्ज लेता है या अपना चरित्र बल खो देता है" , हारते तो येही २ कोटि के लोग हैं !
अब माघ कुछ ना बोले ,सर झुका कर चुपचाप खड़े रहे ! तब वृद्धा ने कहा --- 'महापंडित! मै जानती हूँ की आप माघ हैं , आप महाविद्वान हैं, पर विद्वत्ता की शोभा अहंकार नहीं विनम्रता है ! ये कह कर बुढ़िया चरखा काटने लगी और लज्जित माघ आगे चल पड़े !
भरे बादल और फले वृक्ष नीचे झुकते हैं ,उसी तरह expert भी knowledge पाकर विनम्र बनते हैं !
नीम भी गुणों से भरपूर है और शहद भी ,लेकिन आप भी जानते है दुनिया किसे ज्यादा और ख़ुशी से खाना पसंद करती है
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