शिवत्व की साधना
' शिव ' का अर्थ कल्याण होता है ! जो इंसान इस देवता के तत्त्व दर्शन को समझ कर उसके आदर्शों को जीवन में उतार लेता है ,उसका अमंगल कभी नहीं होता ! वह धीरे धीरे आत्मोन्नति करता हुआ चरम लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है ! "महाशिवरात्रि " पर्व का वास्तविक उद्देश्य यही है !
हर साल यह पर्व फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है ! समझा जाता है की इस अवसर पर कोई भी उत्तम कार्य करने से उस पर भगवान शिव की दृष्टि पड़ती है ,जो करने वाले के लिए कल्याणकारी सिद्ध होती है !
शिवजी का स्थान हिन्दू धर्म में बहुत ऊँचा है ! पुराणों में एक शिवजी ही ऐसे देवता बतलाए गए हैं ,जो संपत्ति और वैभव के बजाय त्याग और अकिंचनता का वरण करते हैं ! वे सर्वशक्तिमान हैं ! उन्हीं के इशारे पर संसार में प्रलय उपस्थित होती है और उनका तीसरा नेत्र बड़ी से बड़ी शक्ति को जला कर राख करने की क्षमता रखता है ! इतने पर भी वे सदा नंगे , भूखे, दीन -हीन ,भूत -प्रेतों के साथी बने रहते हैं ! उन्होंने अमृत का त्याग कर गरल को पिया , हाथी तथा घोड़े को छोड़ कर बैल की सवारी स्वीकार की और हीरे-मोती जैसे रत्नों को त्याग कर सर्प को गले लगाया !
इस प्रकार शिवजी का स्वरुप हमको इस बात की शिक्षा देता है की हमें प्रकृति ने यदि विशेष शक्ति या योग्यता प्रदान की है तो उसका मतलब ये नहीं की हम स्वार्थी बन जाएँ और अपनी शक्ति का उपयोग अपने निजी सुख और भोगों के लिए ही करें !
शिवजी का आदर्श बतलाता है कि जिसको जितनी अधिक शक्ति मिली है ,उसका उत्तरदायित्व भी उतना ही महान है !
शिवजी का दिगंबर रूप अपरिग्रह का प्रतीक है ! संसार में भोग -सामग्रियों का कोई अंत नहीं ! वह मनुष्यों के ज्यों-ज्यों समीप आती जाती हैं ,त्यों-त्यों उनकी लालसा भी बढती जाती है ! भगवान् का उक्त स्वरुप हमें अपरिग्रही बनने और सीमित में संतोष करने की प्रेरणा देता है !
वे बाघम्बरधारी हैं और प्रेत-पिशाच के संग रहते हैं ! उनकी यह मनोदशा वैराग्य को दर्शाती है !
शिव तत्व का बोध कराते हुए माँ महेश्वरी के वचन हैं ----
देवादिदेव प्रभु जगत के आदि हैं ,फिर उनके वंश का वृतांत कौन जान सकता है !
समस्त जगत उनका स्वरुप है ,इसीलिए वे दिगंबर हैं !
वे त्रिगुणात्मक शूल धारण करते हैं ,इसीलिए उन्हें शूली कहते हैं !
वे पंचभूतों से बद्ध नहीं ,बल्कि सर्वथा मुक्त हैं ,इसीलिए वे भूत गणों के अधिपति हैं !
उनकी विभूति (राख) ही सबको विभूति (ऐश्वर्य ) प्रदान करती है ! इसीलिए वे विभूति को अपने शरीर पर धारण करते हैं !
धर्म ही वृष है और उस पर आरूढ़ होने के कारण वे वृष वाहन हैं !
क्रोधादि दोष ही सर्प हैं ,शिव इन सबको वशीभूत करके इन्हें भूषण के रूप में धारण करते हैं !
विविध क्रियाकलाप ही जटाएं हैं ,इन्हें धारण करने के कारण वे जटाधारी हैं !
त्रिगुणमय शरीर ही त्रिपुर है ,इसे भस्मसात करने के कारण ही प्रभु त्रिपुरारी हैं !
जो सूक्ष्मदर्शी पुरुष इस प्रकार के भगवान् महाकाल के स्वरुप को जानते हैं ,वे भला उन्हें छोड़ कर और किसकी शरण में जाएंगे !
आप सभी Achhibatein के सुधि पाठकजनों को महा शिवरात्री पर्व की अनेकों शुभ-कामनायें ...........
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ये artical पूज्य गुरुदेव के ज्ञान के सागर की कुछ बूंदें हैं !
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बहुत ही सार्थक प्रतुतिकरण,आभार.आपको महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंआपको भी राजेंद्र जी ....
जवाब देंहटाएंसार्थक टिप्पणी---जय भोले नाथ
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें
आग्रह है मेरे भी ब्लॉग में सम्मलित हों
प्रसन्नता होगी---आभार